शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

अवसाद, तनाव और निराशा की शिकार होती युवा पीढ़ी

अवसाद, तनाव और निराशा की शिकार होती युवा पीढ़ी जीवन का सत्य

जीवन का सत्य 

अक्सर यह सुनने और देखने को मिलता है कि हमारा युवा वर्ग डिप्रेशन में रहता है, हर वक्त तनाव में जीता है और निराशा का दामन थाम लेता है। गनीमत है कि यह हकीकत अभी मुट्ठी भर अर्थात बहुत थोड़े से युवावर्ग तक सीमित है लेकिन इसे दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी भी बड़ी बीमारी की शुरुआत छोटी सी लापरवाही से ही होती है और अगर सही उपचार न हो तो परिणाम खतरनाक भी हो सकते हैं। 
असल में अवसाद या डिप्रेशन अनेक भावनाओं को जन्म देता है जैसे कुंठा, आक्रोश, क्रोध और इस तरह की सोच जिसमें व्यक्ति या तो अपने काबहुत छोटा समझने लगता है यानि हीन भावना का शिकार हो जाता है या फिर इसके विपरीत अपने को सब से ऊपर मानने लगता है यानि सुपीरियर काम्प्लेक्स का शिकार हो जाता है। दोनों ही हालात में उसके जीवन की डोर निराशा और तनाव के हाथ में आ जाती है और वह उनके वश में इस तरह आ जाता है कि उसके सोचने समझने और सही निर्णय लेने की क्षमता समाप्त होने लगती है।  
यही वह समय है जव उसे मार्गदर्शन और चिकित्सा की जरूरत होती है। अगर उसका उपचार समय रहते हो गया तब तो ठीक वरना हालात इतने बिगड़ सकते हैं कि वह हिंसक हो सकता है, अपनी जान स्वयं लेने की कोशिश कर सकता है और एक तरह की ऐसी मानसिक अवस्था आ सकती है जिसे हम सामान्य भाषा में विक्षिप्त या पागलपन का शिकार होना कह सकते हैं।  
आईना और अपनी छवि  
युवाओं को कुंठित और हताश होने की हालत में उनका उपचार करने और उन्हें उससे बाहर निकाल कर सामान्य बनाने के काम का बीड़ा एक युवा ने उठाया है और ‘आईना ‘ के नाम से अपनी संस्था शुरू की है जो युवाओं को मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के जरिए उन्हें डिप्रेशन से बाहर निकालने का काम कर रही है जिससे वे अपने को पहचान सकें और उनका व्यवहार वैसा हो जाए जैसा उनकी उम्र के एक सामान्य युवा का होता है। आइए आपको उनसे मिलवाते हैं। इनका नाम अकसीर सोढी है। पिता हरपालसिंह वायुसेना में उच्च पद पर हैं और माँ नीरजा अध्यापन और लेखन से जुड़ी हैं। वे स्वयं बायोपोलर नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित रही हैं जिससे बाहर निकलने में उन्हें सही चिकित्सा मिलने के बावजूद पाँच वर्ष लग गए। यहीं से उनके मन में यह बात आई कि जो उन्होंने भुगता है वह उनके जैसे युवाओं को न भोगना पड़े। इसके लिए ऑनलाइन तथा वेबसाइट और फोन के जरिए उनसे संपर्क किया जा सकता है ताकि निश्चित अवधि की थेरेपी से मानसिक चिकित्सा की जा सके। 
अकसीर का मानना है कि युवाओं में डिप्रेशन की शुरुआत तब होती है जब अपनी बात किसी से कह नहीं पाते और अपने अंदर ही घुटन पाल लेते हैं। अगर कोई ऐसा हो जिससे वह अपने मन की बात खुलकर कह सकें और उन्हें सही सलाह और चिकित्सा वक्त पर मिल जाए तो वे बहुत जल्दी सामान्य युवा की तरह फिर से व्यवहार करना शुरू कर सकते हैं। वैसे यह भी सत्य है कि डिप्रेशन का दौर प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक बार तो अवश्य ही आता है और यदि चिकित्सा न हो तो यह बार बार हो सकता है। अकसीर अपनी बेबसाईट- https://www.youthkiawaaz.com & aaina.reddit.com के जरिए ग्रुप बनाती हैं और पीड़ित युवाओं की चिकित्सा करती हैं।  
बीमारी का मूल कारण  
उपचार की तरफ बढ़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि किसी भी मानसिक या मनोवैज्ञानिक परेशानी की शुरुआत कब और कैसे होती है। 
इसके लिए जन्म से लेकर शैशव काल यानि स्कूल जाने की आयु तक जाना होगा। इस समय न केवल बच्चा अपनी मर्जी का मालिक होता है बल्कि माता पिता और परिवार के लोग उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं तथा उसके सभी प्रश्नों के उत्तर भी देते है। मतलब यह कि उसकी बात सुनते और अपनी सुनाते हैं। 
स्कूल में उसे सिर्फ अध्यापकों और माता पिता की बात सुननी और माननी होती है। वह अपनी बात कहना चाहता है लेकिन ज्यादातर न केवल उसकी बात अनसुनी कर दी जाती है बल्कि झिड़की और फटकार से लेकर तमाचे भी उसे जड़ दिए जाते हैं। उसे लगता है कि कोई उसकी बात सुनने और समझने वाला ही नहीं है। इसके साथ ही कोई उसे चाहता नहीं प्यार नहीं करता और फिर वह या तो अंदर ही अंदर घुटता रहता है या फिर बात बात में गुस्सा करने लगता है। स्कूल की देहरी पार करने मतलब यौवन की दहलीज तक पहुँचने तक वह अकेलेपन का सामना करने लगता है जिससे निपटने के लिए वह आधुनिक साधनों जैसे मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, पार्नेग्राफी से लेकर सेक्स तक में रुचि लेने लगता है जो उसकी उम्र के लिए सही नहीं होता। वह प्यार के चक्कर में भी पड़ सकता है जो ज्यादातर नकली और ठगी होने जैसा होता है और फिर वह मानसिक तनाव और कुंठा से घिरने लगता है। कॉलेज या उच्च संस्थान में जाकर भी उसकी बात जब नहीं सुनी जाती तो वह और भी अधिक घुटन का शिकार हो जाता है। ऐसी अवस्था में उसका व्यवहार हिंसक और आत्मघाती प्रवृत्ति का होता जाता है। इसका नतीजा बहुत भयावह हो सकता है और तब परिवार यह कहता पाया जाता है कि अगर हम उसकी बात सुनते और उसके सवालों के जवाब देते तो उसका जीवन बच सकता था या वह जिंदगी के अंधेरों से बाहर निकल सकता था। 
सुनने और सुनाने की चिकित्सा  
आइना में अकसीर ने कुछ ऐसे विशेष कोर्स तय्यार किए हैं जो अलग अलग अवधि के हैं। इनके माध्यम से न केवल युवाओं को एक तरह की संजीवनी मिल रही है बल्कि ऐसे ट्रेनर भी तय्यार हो रहे हैं जो डिप्रेशन के शिकार युवकों और युवतियों के ग्रुप बनाकर उन्हें सही रास्ता दिखा सकें। 
आइना की वेबसाइट पर युवाओं की जो समस्याएँ आती हैं उनमें माता पिता से अनबन, अध्यापकों के ठीक व्यवहार न करने से उपजी पीड़ा से लेकर पुरुष या महिला मित्र के साथ बिगड़े सम्बंधों और अपनी रुचि के अनुसार काम न मिलने से हुई निराशा तथा कुंठा से बाहर निकलने की तरकीब मिलने की उम्मीद अधिक होती है। 
जब कोई सुनने वाला मिल जाए तो सुनाने वाले को अपने अंदर की नकारात्मकता समाप्त होती हुई लगती है और उसके साचेने का नजरिया सकारात्मक दिशा में बदलने लगता है। अपनी जिज्ञासा का समाधान होने और प्रश्नों के उत्तर मिलने से युवा लड़के और लड़कियाँ एक नई ताजगी से भर जाते हैं। उनके अंदर ऊर्जा का संचार होने लगता है और वे जो भी काम या व्यवसाय करते हों उसमें उन्हें सफलता मिलने लगती है। 
वक्त की जरूरत 
आज के दौर में जब परिवार सीमित हो रहे हैं, एक छोटे दायरे में सिमट रहे हैं, बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए घर में सब के लिए कमा कर लाना जरूरी हो गया हो और उस पर तुर्रा यह कि फोन और इंटर्नेट से ही चिपके रहना जीवनशैली बन जाए तो फिर भीड़ में भी अकेलेपन का एहसास होना लाजिमी है। डिप्रेशन या निराश होने की शुरुआत यहीं से होती है। 
इससे निजात पाने का रास्ता यही है कि आपस में बातचीत करना, मिल बैठकर हँसना हँसाना और अपने मन की बात उनसे बाँटना जो आपको जानते और समझते हों तथा एक ऐसा माहौल अपने आसपास बनाना जिसमें दुःख से ज्यादा सुख महसूस हो, गम की 
बरसात के बजाय खुशी की फुहार हो और काँटों की परवाह न करते हुए फूल की सुगंध का विस्तार होता हो, यही वक्त की जरूरत है और ‘आईना ‘ यही कर रहा है। 

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

धोखेबाजी और विश्वासघात खुशहाली का खतरनाक रास्ता है।








जुगलबंदी

एक ओर धोखे और विश्वासघात तथा दूसरी ओर ईमानदारी और विश्वास में से किसी एक को अपनाने की चुनौती सामने होती है तो आमतौर से लोग पहला विकल्प चुनते हैं। यह एक कड़वा सच है क्योंकि इससे खुशहाली जल्दी आती है जबकि दूसरे रास्ते पर चलने के लिए अभाव और कठिनाइयों के दौर से गुजरना पड़ता है तब जाकर कहीं खुशहाली की डगर सामने दिखाई देती है।

धोखाधड़ी को जीवन जीने का तरीका अपनाने वालों को अपनी कही या की हुई बात अक्सर याद ही नहीं रहती इसलिए वे इस तरीके को बारबार अपनाते हैं। इसके विपरीत ईमानदारी और सादगी को जीवन शैली की तरह स्वीकार करने वालों को हरेक बात याद रहती है और वे हमेशा सही आचरण को प्राथमिकता देते हैं।

एक उदाहरण है आपने दुकानदार से कुछ खरीदा और उसने कम तोल कर या ज्यादा पैसे लेकर या लेन देन में हेराफेरी कर आपको ठग लिया। दुकानदार बीमार पड़ा और वह अस्पताल गया तो उसे वहाँ इलाज के लिए बहुत सारा गैरजरूरी भुगतान करना पड़ा। अस्पताल के मालिक को अपने लड़के को स्कूल में दाखिल कराना है

तो वहाँ उससे तरह तरह के अनावश्यक भुगतान करने पड़े। स्कूल मालिक ने अध्यापकों को कम वेतन देकर ज््यादा पर दस्तखत कराए। अध्यापक ने विद्यार्थियों को ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया तो उनके माता पिता को ठगने जैसा लगा। उन्होंने अपने काम या दफ्तर में ठेकेदार से रिश्वत ले ली। ठेकेदार शराब की दुकान पर गया तो उससे तय कीमत से अधिक दाम लिए गए। ठेके वाला पुलिस के सिपाही को हफ्ता देता है। सिपाही अपने बॉस को उसका हिस्सा देता है।


बॉस अपने राजनीतिक आका को पैसे देता है ताकि मलाईदार थाने में पोस्टिंग बनी रहे। राजनीतिज्ञ चंदे या आपकी सेवा करने के नाम पर वसूली करता है। अब मान लीजिए आप हर चीज में नुक्ताचीनी करने लगें, मोलभाव करेंगे और बात बात पर बहस करेंगे यानि अन्याय सहने को तैयार नहीं होंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा और खाली हाथ घर लौट आएँगे।


हीरो या नायक होने का अहसास

जिस तरह स्कूल में टीचर के पीठ फेरते ही नकल करने लगना और फिर अच्छे अंकों से पास होने पर माता पिता की नजरों में हीरो बनने का अहसास होता है उसी तरह ही व्यक्ति इसी प्रकार के रास्ते पर चलकर सब कुछ आसानी से हासिल करने को अपना हक मान लेता है। यही कारण है कि समाज में अधिकतर वही लोग धोखाधड़ी करते पाए जाते हैं जो धनी मानी होते हैं, बहुत पढ़ाई लिखाई किए होते हैं और जिनका करियर बहुत शानदार होता है या फिर उन्हें विरासत के नाम पर सब कुछ मिल जाता है। इन सब के बीच ईमानदारी और मेहनत से अपना मुकाम हासिल करने वालों की गति बत्तीस दाँतों के बीच अकेली जीभ की तरह होती है।

यह भी सच है कि खाली दिमाग शैतान का घर होने से खाली वक्त में ही धोखा देने के मंसूबे बनते हैं। जो अपने को खतरों का खिलाड़ी मानते हैं वही लोग धोखाधड़ी के उस्ताद भी होते हैं। उनका आत्मविश्वास और मनोबल इतना मजबूत होता है कि आँखों में आँखें डालकर बात कर सकते हैं, हमेशा विश्वास से भरे नजर आते हैं और ऐसे लोगों के झुण्ड बना लेते हैं जो न केवल उन्हें पसंद करते हों बल्कि उनकी हर बात को पत्थर की लकीर समझते हैं चाहे वह कितनी भी बेतुकी या बेसिर पैर की हो।

हालाँकि झूठ बोलने में सच बोलने से ज्यादा मेहनत और ताकत लगती हैं लेकिन उससे भावनाओं को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। इसी के साथ झूठ और बेईमानी तनावग्रस्त बनाए रखती है क्योंकि कलई खुलने का डर हमेशा सिर पर भूत की तरह सवार रहता है।

झूठ बोल रहे लोग आँख मिचका कर बात करते हैं, बोलने में बारबार गलती कर जाते हैं क्योंकि उन्हें पहले कही बात याद नहीं रहती, किसी सवाल के जबाब के बजाय जबाब के सवाल ढूँढने लगते हैं। इसी तरह ऐसे लोग बिना सोचे समझे या किसी तरह की कोशिश किए बिना बड़ी आसानी से बड़े से बड़ा झूठ बोल देते हैं। ऐसे झूठ की न सिर्फ पड़ताल करना मुश्किल होता है बल्कि कोई भी टेक्नोलॉजी उनका झूठ पकड़ नहि सकती।

मिसाल के तौर पर राजीव गांधी ने सन 1985 में एक रुपए में से पंद्रह पैसे पहुँचने की बात कही थी जिसकी पुष्टि के लिए घोटालों की एक लम्बी कड़ी बनती गयी।

कांग्रेस की पहचान उसके विकास के कामों की बजाय धोखा देने वाली पार्टी से होने लगी। इसके बावजूद वह चुनाव जीत जाती है। इसी तरह जिन दलों की जड़ में भ्रष्टाचार समा गया है उनके प्रत्याशी भारी मतों से जीतते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होता। भारतीय समाज पर घोटालों या भ्रष्टाचार का ज्यादा असर इसलिए नहीं होता क्योंकि हर कोई इसमें अपने हाथ धोने की कोशिश में लगा रहता है। ऐसी सोच बन जाती है कि अगर हम किसी का शोषण नहीं करेंगे तो हमारा शोषण होना निश्चित है।

यही कारण है कि घोटालेबाज समाज के दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त और आदरणीय समझे जाते हैं।

समस्या बनाम लक्षण

जिस व्यक्ति या समाज के किसी तबके का स्वभाव ही धोखे, फरेब, लूट और भ्रष्टाचार को ही खुशहाली का रास्ता समझने का बन गया हो तो यह समस्या नहीं बल्कि उसका लक्षण है। हम चाहे जीवन भर इनके सुधार में लगे रहें इनका सुधारना असम्भव है। इन लक्षणों को समाप्त कर देने से ही इनसे पैदा होने वाली समस्या से बचा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति या दल ने एक बार धोखाधड़ी की, वायदा खिलाफी की उस पर कभी विश्वास न करें चाहे वह अपने आप को कितना भी दूध का धुला साबित करने की कोशिश करे।

इसकी वजह यह है कि छल करने वाला अपने को नियम कानून से ऊपर मानता है, जनता को बहकाए रखना और फरेब से उसका विश्वास जीतना उसका स्वभाव बन जाता है, सत्ता में बना रहना ही मकसद होता है। वह झूठ बोलने का इतना महारथी होता है कि जनता पूछती ही रह जाती है कि पहले ऐसा किया था तो क्या फिर वैसा ही नहीं करेंगे इस बात की क्या गारंटी है।ऐसे लोगों या दलों पर विश्वास न करना ही समस्या को जन्म देने से रोकना है।

आज हमारा देश जिस चुनौती से भरे माहौल से गुजर रहा है उसमें सही और गलत के बीच फैसला करना बहुत मुश्किल है। समस्या यह नहीं है कि हम इनसे कैसे निपटेंगे बल्कि यह है कि एक ईमानदार आदमी जो अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर आगे बढ़ना चाहता है वह तब मायूस हो जाता है जब वह देखता है कि उसका आकलन वे लोग करते हैं जिनमें न कोई काबलियत है, न कोई नीति उनके पास है और न ही ऐसी योजना है जिससे आम आदमी चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सके।


इस अवस्था में उसके लिए यही विकल्प बचता है कि वह स्वयं अपना पथ निर्माण करे और अपने प्रतिनिधियों का चयन करते समय बेहद सतर्कता से काम ले। उसकी जरा सी चूक भविष्य को अंधकारमय बना सकती है।


(भारत)