जुगलबंदी
एक ओर धोखे और विश्वासघात तथा दूसरी ओर ईमानदारी और विश्वास में से किसी एक को अपनाने की चुनौती सामने होती है तो आमतौर से लोग पहला विकल्प चुनते हैं। यह एक कड़वा सच है क्योंकि इससे खुशहाली जल्दी आती है जबकि दूसरे रास्ते पर चलने के लिए अभाव और कठिनाइयों के दौर से गुजरना पड़ता है तब जाकर कहीं खुशहाली की डगर सामने दिखाई देती है।
धोखाधड़ी को जीवन जीने का तरीका अपनाने वालों को अपनी कही या की हुई बात अक्सर याद ही नहीं रहती इसलिए वे इस तरीके को बारबार अपनाते हैं। इसके विपरीत ईमानदारी और सादगी को जीवन शैली की तरह स्वीकार करने वालों को हरेक बात याद रहती है और वे हमेशा सही आचरण को प्राथमिकता देते हैं।
एक उदाहरण है आपने दुकानदार से कुछ खरीदा और उसने कम तोल कर या ज्यादा पैसे लेकर या लेन देन में हेराफेरी कर आपको ठग लिया। दुकानदार बीमार पड़ा और वह अस्पताल गया तो उसे वहाँ इलाज के लिए बहुत सारा गैरजरूरी भुगतान करना पड़ा। अस्पताल के मालिक को अपने लड़के को स्कूल में दाखिल कराना है
तो वहाँ उससे तरह तरह के अनावश्यक भुगतान करने पड़े। स्कूल मालिक ने अध्यापकों को कम वेतन देकर ज््यादा पर दस्तखत कराए। अध्यापक ने विद्यार्थियों को ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया तो उनके माता पिता को ठगने जैसा लगा। उन्होंने अपने काम या दफ्तर में ठेकेदार से रिश्वत ले ली। ठेकेदार शराब की दुकान पर गया तो उससे तय कीमत से अधिक दाम लिए गए। ठेके वाला पुलिस के सिपाही को हफ्ता देता है। सिपाही अपने बॉस को उसका हिस्सा देता है।
बॉस अपने राजनीतिक आका को पैसे देता है ताकि मलाईदार थाने में पोस्टिंग बनी रहे। राजनीतिज्ञ चंदे या आपकी सेवा करने के नाम पर वसूली करता है। अब मान लीजिए आप हर चीज में नुक्ताचीनी करने लगें, मोलभाव करेंगे और बात बात पर बहस करेंगे यानि अन्याय सहने को तैयार नहीं होंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा और खाली हाथ घर लौट आएँगे।
हीरो या नायक होने का अहसास
जिस तरह स्कूल में टीचर के पीठ फेरते ही नकल करने लगना और फिर अच्छे अंकों से पास होने पर माता पिता की नजरों में हीरो बनने का अहसास होता है उसी तरह ही व्यक्ति इसी प्रकार के रास्ते पर चलकर सब कुछ आसानी से हासिल करने को अपना हक मान लेता है। यही कारण है कि समाज में अधिकतर वही लोग धोखाधड़ी करते पाए जाते हैं जो धनी मानी होते हैं, बहुत पढ़ाई लिखाई किए होते हैं और जिनका करियर बहुत शानदार होता है या फिर उन्हें विरासत के नाम पर सब कुछ मिल जाता है। इन सब के बीच ईमानदारी और मेहनत से अपना मुकाम हासिल करने वालों की गति बत्तीस दाँतों के बीच अकेली जीभ की तरह होती है।
यह भी सच है कि खाली दिमाग शैतान का घर होने से खाली वक्त में ही धोखा देने के मंसूबे बनते हैं। जो अपने को खतरों का खिलाड़ी मानते हैं वही लोग धोखाधड़ी के उस्ताद भी होते हैं। उनका आत्मविश्वास और मनोबल इतना मजबूत होता है कि आँखों में आँखें डालकर बात कर सकते हैं, हमेशा विश्वास से भरे नजर आते हैं और ऐसे लोगों के झुण्ड बना लेते हैं जो न केवल उन्हें पसंद करते हों बल्कि उनकी हर बात को पत्थर की लकीर समझते हैं चाहे वह कितनी भी बेतुकी या बेसिर पैर की हो।
हालाँकि झूठ बोलने में सच बोलने से ज्यादा मेहनत और ताकत लगती हैं लेकिन उससे भावनाओं को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। इसी के साथ झूठ और बेईमानी तनावग्रस्त बनाए रखती है क्योंकि कलई खुलने का डर हमेशा सिर पर भूत की तरह सवार रहता है।
झूठ बोल रहे लोग आँख मिचका कर बात करते हैं, बोलने में बारबार गलती कर जाते हैं क्योंकि उन्हें पहले कही बात याद नहीं रहती, किसी सवाल के जबाब के बजाय जबाब के सवाल ढूँढने लगते हैं। इसी तरह ऐसे लोग बिना सोचे समझे या किसी तरह की कोशिश किए बिना बड़ी आसानी से बड़े से बड़ा झूठ बोल देते हैं। ऐसे झूठ की न सिर्फ पड़ताल करना मुश्किल होता है बल्कि कोई भी टेक्नोलॉजी उनका झूठ पकड़ नहि सकती।
मिसाल के तौर पर राजीव गांधी ने सन 1985 में एक रुपए में से पंद्रह पैसे पहुँचने की बात कही थी जिसकी पुष्टि के लिए घोटालों की एक लम्बी कड़ी बनती गयी।
कांग्रेस की पहचान उसके विकास के कामों की बजाय धोखा देने वाली पार्टी से होने लगी। इसके बावजूद वह चुनाव जीत जाती है। इसी तरह जिन दलों की जड़ में भ्रष्टाचार समा गया है उनके प्रत्याशी भारी मतों से जीतते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होता। भारतीय समाज पर घोटालों या भ्रष्टाचार का ज्यादा असर इसलिए नहीं होता क्योंकि हर कोई इसमें अपने हाथ धोने की कोशिश में लगा रहता है। ऐसी सोच बन जाती है कि अगर हम किसी का शोषण नहीं करेंगे तो हमारा शोषण होना निश्चित है।
यही कारण है कि घोटालेबाज समाज के दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त और आदरणीय समझे जाते हैं।
समस्या बनाम लक्षण
जिस व्यक्ति या समाज के किसी तबके का स्वभाव ही धोखे, फरेब, लूट और भ्रष्टाचार को ही खुशहाली का रास्ता समझने का बन गया हो तो यह समस्या नहीं बल्कि उसका लक्षण है। हम चाहे जीवन भर इनके सुधार में लगे रहें इनका सुधारना असम्भव है। इन लक्षणों को समाप्त कर देने से ही इनसे पैदा होने वाली समस्या से बचा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति या दल ने एक बार धोखाधड़ी की, वायदा खिलाफी की उस पर कभी विश्वास न करें चाहे वह अपने आप को कितना भी दूध का धुला साबित करने की कोशिश करे।
इसकी वजह यह है कि छल करने वाला अपने को नियम कानून से ऊपर मानता है, जनता को बहकाए रखना और फरेब से उसका विश्वास जीतना उसका स्वभाव बन जाता है, सत्ता में बना रहना ही मकसद होता है। वह झूठ बोलने का इतना महारथी होता है कि जनता पूछती ही रह जाती है कि पहले ऐसा किया था तो क्या फिर वैसा ही नहीं करेंगे इस बात की क्या गारंटी है।ऐसे लोगों या दलों पर विश्वास न करना ही समस्या को जन्म देने से रोकना है।
आज हमारा देश जिस चुनौती से भरे माहौल से गुजर रहा है उसमें सही और गलत के बीच फैसला करना बहुत मुश्किल है। समस्या यह नहीं है कि हम इनसे कैसे निपटेंगे बल्कि यह है कि एक ईमानदार आदमी जो अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर आगे बढ़ना चाहता है वह तब मायूस हो जाता है जब वह देखता है कि उसका आकलन वे लोग करते हैं जिनमें न कोई काबलियत है, न कोई नीति उनके पास है और न ही ऐसी योजना है जिससे आम आदमी चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सके।
इस अवस्था में उसके लिए यही विकल्प बचता है कि वह स्वयं अपना पथ निर्माण करे और अपने प्रतिनिधियों का चयन करते समय बेहद सतर्कता से काम ले। उसकी जरा सी चूक भविष्य को अंधकारमय बना सकती है।
(भारत)
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