प्यार किया तो डरना क्या
जब हमें किसी व्यक्ति, वस्तु, परिवेश और वातावरण से प्यार हो जाता तो उसका सबसे पहला असर हमारी अपनी आजादी पर पड़ता है। जिससे हम प्यार करते हैं हमारे जीवन में वह और उसकी प्राथमिकताऐं शामिल हो जाती हैं। हम उसके बारे में सोचना शुरू कर देते हैं और जरूरत पड़ने पर उसके लिए जो जरूरी हो वह करने भी लगते हैं।
यहाँ एक बात साफ है कि किसी के साथ वक्त गुजारने का मतलब यह नहीं कि हमें उससे प्यार है या लगाव हो गया है जब तक कि उसका ख्याल हमारे दिलोदिमाग पर हावी न हो जाए। कहने का अर्थ यह कि प्यार में ‘मैं’ से ‘स्वयं’ बनना पड़ता है और यह तब होता है जब कोई व्यक्ति या वस्तु हमारी सोच का हिस्सा बन जाए और अपने आप को उससे अलग करना असम्भव हो जाए। प्यार में हम लोक लिहाज के कारण मनभाती बातें नहीं करते बल्कि सच बोलते हैं
चाहे वह कितना भी कड़वा क्यों न हो। इसकी बजह यह कि हम कभी भी उसका अहित करने के बारे में नहीं सोचते जिससे प्यार करते हैं।
यह भी हकीकत है कि प्यार कभी भी लचीला नहीं होता वह अपनी उपेक्षा नहीं सह सकता इसलिए जरा सी ठेस या चोट लगने पर खंडित हो जाता है। इसे ही प्यार में दरार पड़ना कहते हैं। यह तब भी होता है जब आप किसी से उसकी सामथ््र्य से अधिक की अपेक्षा करने लगते हैं।
प्यार सरल बनाता है
प्यार अपने विभिन्न रूपों में हर क्षण हमारे सामने अपनी कलायें दिखाता रहता है। अपने परिवार या वंश से प्रेम है तो हम उसे ही सब जगह देखना चाहते हैं। अपने समाज से प्यार है तो हम उसे सभी जगहों पर छाया हुआ पाते हैं और यदि देश से मोहब्बत है तो उसे सिद्ध करने के लिए हमारे लिए कुछ भी कर गुजरना बहुत आसान हो जाता है। आजादी के लिए दी गयी कुरबानियाँ इसकी मिसाल हैं। प्रेम में नकली माल नहीं चलता और बनावटी प्रेम की धज्जियाँ उड़ने या उसकी बखिया उधड़ने में वक््त नहीं लगता, असलियत सामने आ ही जाती है।
प्यार हमें इतना सरल बना देता है कि हम आसानी से उसे निबाहते चले जाते हैं जब तक कि कोई ऐसी बात न हो जाए जो हमारा विश्वास तोड़ कर न रख दे।
मान लीजिए हमें अपने काम से प्यार है तो हमारे अंदर इतनी सरलता आ जाती है कि चौबीस घंटे काम के बारे में ही सोचते हैं। यह जो जब तब ऐसे उदाहरण आते हैं कि फलाँ व्यक्ति अठारह बीस घंटे काम करने पर भी थकता नहीं तो यह उसका काम के प्रति प्यार ही है जो उसे काम में लगाए रखता है।इसके विपरीत अगर प्यार नहीं तो तालमटोल और बोरियत या बस हाजिरी और खानापूरी करने तक ही हम काम करते है।
यही फॉर्म्युला सभी संबंधों पर लागू होता है। प्रेमी प्रेमिका, पति पत्नी, माता पिता - पुत्र पुत्री या भाई बहन के बीच अगर प्रेम में सरलता नहीं है तो वो बोझ बन जाता है और केवल दिखावे के लिए प्यार से बात करते हैं वरना एक दूसरे की शक्ल तक न देखना चाहें।
राजनीति में अगर नेता को जनता के सिर्फ वोट से नहीं बल्कि वोटर से प्यार है तो वह चुने जाने पर अपने चुनाव क्षेत्र की हालत बद से बेहतर कर देता है और प्यार नहीं तो उसे बदसूरत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। तो अगली बार वोट देने से पहले उम्मीदवार को प्यार की कसौटी पर परखिए।
एक फौजी को या पुलिस अधिकारी को जान पर खेलकर वीरता दिखाना कोई शौक नौकरी की मजबूरी या केवल कर्तव्य निष्ठा नहीं बल्कि ऐसे लोगों का अपने काम से दीवानगी की हद तक प्यार करना है।
अलौकिक प्रेम
जरूरी नहीं कि ईश्वरीय प्रेम, दिव्य प्रेम या अलौकिक प्रेम केवल संत महात्मा साधु सन्यासी या आराधना अथवा भक्ति में लीन स्त्री पुरुषों को ही हो सकता है। ऐसा प्रेम जिसमें उम्र, हैसियत, प्रतिष्ठा, धर्म, जाति और देश तक की सीमाएँ न हों वह भी अलौकिक होता है। इसमें अपने प्रिय के प्रति सम्पूर्ण समर्पण, सखा भाव, आचरण, व्यवहार में समानता, आशा और विश्वास आवश्यक है।
इसमें आत्म प्रेम यानि खुद से मोहब्बत करनी पड़ती है, तब ही किसी को किसी व्यक्ति या वस्तु से अलौकिक प्रेम हो सकता है। इसके लिए समझना होगा ‘मैं स्वयं अपना स्वामी हूँ, अपनी किस्मत का मालिक और अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार’ हूँ। ऐसे प्रेम से शांति की अनुभूति और सौंदर्य के दर्शन होते हैं। बच्चे की मुस्कराहट, माँ का प्यार, पिता की खुशी और दोस्ती में अपने को भूल जाना इसके लक्षण है। इसमें अकड़, कर्कशपन या हेकड़ी का कोई भाव नहीं होता। इसमें अपने प्रियतम में पूरे संसार का सुख मिल जाता है और एक दूसरे में आत्मसात होते ही यह जगत मिथ्या लगने लगता है। इसे ही शिद्दत से किया गया प्रेम कहते हैं।
प्रेम और नफरत
जब आप किसी से करते तो हों नफरत और अचानक प्यार का इजहार करने लगे जैसा कि पिछले दिनों संसद में राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी के सामने किया तो उसे क्या कहेंगे। कुछ मामलो इस तरह का व्यवहार हृदय परिवर्तन भी हो सकता है लेकिन अधिकतर नाटक होता है क्योंकि अगले ही क्षण या मौका मिलते ही ऐसे लोग पीठ पर वार करने से नहीं चूकते।
शायद युद्ध की तैयारी इसे ही कहते हैं क्योंकि इसके बाद से ही राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी पर झूठे सच्चे व्यक्तिगत आरोप लगाकर आक्रमण करना शुरू कर दिया। जैसा कि कहावत है कि युद्ध और प्रेम में सबकुछ जायज है तो उन्हांने इसी नीति पर चलते हुए ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि भाजपा के हाथ से दिन राज्य निकल गए। ऐसा लगता है कि नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने राहुल गांधी को हल्के में लिया इसका परिणाम यह हुआ कि इन चुनावों में चारों खाने चित हो गए।
महाभारत में तो इस तरह की कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं। आज भी यही सत्य है कि प्रेम में स्वार्थ हो तो शत्रु से हाथ मिलाने में देर नहीं लगती। घर का भेदी प्रेम के आवरण में पूरी लंका का सौदा कर सकता है, यह तब भी सत्य था और आज भी।
दूसरे से नफरत करने का मतलब यह भी है कि आप स्वयं से प्यार नहीं करते। यह तब होता है जब आपकी दूसरों से की गयी उम्मीदें असलीयत से दूर हों। पारिवारिक सम्बंधों में प्यार न होकर घृणा होना इसी बात का परिचायक है। यही नियम नौकरी और व्यवसाय पर भी लागू होता है।
इसमें तर्क या बहस का भी कोई असर नहीं होता। जब नफरत होती है तो कोई बेहतर निर्णय लिया ही नहीं जा सकता। ऐसी अवस्था में खुद से भी नफरत हो जाती है और व्यक्ति स्वयं को ही चोट पहुँचाने लगता है। नफरत की बजह से अपना उद्देश्य ही भूल जाते हैं जिसका उदाहरण बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद है।
प्रेम में निराशा का हल
जब लगे कि जीवन में प्रेम की जगह निराशा ने ले ली है या यह सोचने लगें कि आपसे कोई प्यार नहीं करता, यहाँ तक कि अपना अंत ही चाहने लगें और उस पर अमल करने के उपाय खोजने लगें तो एक बार यह अवश्य सोचें कि आप खुद में क्या बदलाव चाहते हैं क्योंकि इस अवस्था में हम खुद ही अपने दुश्मन होते हैं। उसके बाद तय करें कि क्या बदल सकते हैं और क्या नहीं।
आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए वर्तमान के प्रति आभार मानें और परिवार, समाज और देश के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें। यह मान लें कि कुदरत आपसे वही कराती है जो आपके हित में होता है।