शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

जीवन जब एक बार, तो क्यों न हो हर दिन त्योहार







जुगलबंदी

हमारा आचरण और व्यवहार दो विपरीत शब्दों की जोड़ी के इर्द गिर्द घूमता रहता है। यह दोनों शब्द सार्थक भी हैं और शाश्वत सत्य भी। बानगी देखिए - जीवन मृत्यु , सुख दुःख ,लाभ हानि , मान अपमान , अपना पराया, अच्छाई बुराई, जय पराजय, मोल अनमोल, नया पुराना, सफल असफल, अमीर गरीब, मेरा तेरा आदि। अगर इनमें आए पहले शब्द के नजरिए से जिंदगी को देखें तो चारों तरफ खुशी दिखाई देगी और दूसरे को अपनायें तो निराशा हाथ लगेगी और हर वक्त एक प्रकार का भय छाया रहेगा। यह भय जानलेवा भी हो सकता है और अगर पहले को अपनाएँ तो चेहरे पर मुस्कान रहेगी जिसे जिंदादिली कह सकते हैं और दूसरे को मुर्दादिली। कहते हैं कि जब मन और सोच पर दुःख हावी हो जाए तो किसी भी चीज में मजा नहीं आएगा चाहे आसपास सुख के कितने ही क्षण बिखरे पड़े हों।

कोई भी यह नहीं कह सकता उसकी मृत्यु नहीं होगी। प्रति दिन लाखों लोग सुबह का सूरज नहीं देख पाते, हमेशा के लिए सो जाते हैं। इसी तरह लाखों लोग हर रोज सुबह उठ जाते हैं और दैनिक दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं। अगर यह कहें कि मौत कतई मूल्यवान नहीं और इसे अहमियत देना बिलकुल जरूरी नहीं तो गलत न होगा। हर कोई एक दिन मरता है और हर किसी का मौत का वक्त तय है तो फिर इस बात से क्यों डरा जाए कि मैं मर जाऊँगा और इस चक्कर में जीवन का आनंद लेना ही भूल जाएँ। एक बात और कि हमारे शरीर में ज्यादातर अंग दो की संख्या में हैं। क्या इसका यह अर्थ नहीं कि दुनिया बनाने वाले ने जन्म से यह विकल्प दिया हुआ है कि एक अंग काम करना बंद कर दे तो दूसरे से जिंदगी को जिया जा सकता है इसलिए जो नहीं रहा उसका अफसोस कैसा?

बहुत से लोग इस बात का मातम मनाते रहते हैं कि वे गरीब हैं और इस कारण वे अमीर से नफरत तक करने लगते हैं। हकीकत यह कि वे स्वयं बहुत अमीर हैं लेकिन इस बात को स्वीकार करना भूल जाते हैं कि उन्हें भी उतने ही अंग प्रत्यंग मिले हैं जितने दूसरे को और वे भी उसी दौलत से मालामाल है जो उनके जैसे ही किसी अन्य को जिसे अपनी ही गलतफहमी के कारण अमीर समझ लेते हैं।

जिंदगी को एक उत्सव, एक त्योहार, एक अनमोल खुशी की तरह जीने वालों के लिए मानो मृत्यु का कोई वजूद नहीं होता। एक उदाहरण है - अभिनेता अनुपम खेर के पिता का जब देहांत हुआ और मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए फोन किया तो जानते हैं उनकी क्या प्रतिक्रिया थी। उन्होंने कहा कि वे अपने पिता के देह गमन का उत्सव मना रहे हैं और संगीत से सेलीबरेट कर रहे हैं। जब मौत का उत्सव मनाया जा सकता है तो उससे पहले तो जिंदगी के प्रत्येक क्षण का आनंद एक त्योहार की तरह लेना ही चाहिए।

अभिवादन

अक्सर सुबह की सैर करते हुए या बाजार में खरीदारी करते या घूमते फिरते अचानक कोई अनजान व्यक्ति सामने आ जाने पर आपसे नमस्ते, गुड मॉर्निंग कहता हुआ आपके पास से गुजर जाए और आपकी नजर पड़ते ही वह मुस्कराता हुआ आगे निकल जाए तो क्या आपके मन में एक राहत का सी भावना नहीं आती कि एक व्यक्ति जो आपसे अनजान है उसने पल भर के लिए आपको खुश महसूस करा दिया जबकि कुछ लोग हर वक्त साथ रहने या अक्सर आमना सामना होने पर भी अनजानेपन का अहसास कराते रहते हैं। इसका क्या यह मतलब नहीं कि जिसने आपका अभिवादन किया उसके लिए जीवन का हरेक क्षण खुशनुमा है और वह आपको भी इसमें हिस्सेदार बना रहा है?

आप ही एक बार अनजान व्यक्ति से अनजान जगह में बिना किसी प्रयोजन के मुस्करा कर अभिवादन कर दीजिए और फिर देखिए आप कैसा महसूस करते है। इसी तरह अपने दफ्तर या काम करने के स्थान पर अपने साथ काम करने वालों का अभिवादन कर के देखिए और फिर उसके परिणाम स्वरूप उनकी प्रतिक्रिया को स्वीकार कीजिए। आपको लगेगा कि न केवल आप तनाव रहित हैं बल्कि आपके आसपास भी वातावरण कितना खुशनुमा है। अगर उस जगह कोई दिक्कत है भी तो वह आपके लिए आसानी का सबब हो जाएगी।

अपनी खातिरदारी कीजिए

आम तौर से हम किसी मेहमान की आवभगत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते और चाहते हैं कि उसे किसी तरह की शिकायत न हो। हम रसोई में खाने पीने की चीजों से लेकर बहुत समय से सहेज कर रखे हुए बर्तन और क्रॉकरी तक पहली बार या कभी कभार इस्तेमाल में आई चीजें निकालते हैं। परदे बदल देते हैं और वह ड्रेस पहनते हैं जो शायद ऐसे ही किसी मौके पर पहनने के लिए अलमारी में बंद थी। इसी तरह जब किसी के यहाँ मेहमान बनकर जाना हो तब भी ऐसा ही करते हैं। क्या इसका यह अर्थ नहीं कि आप सुंदर दिखना और देखना चाहते हैं ? अगर आप इसे अपनी रोजाना की आदत बना लेते हैं तो आप के मन में किसी तरह का संकोच कोई हिचकिचाहट क्यों होनी चाहिए। मतलब यह कि आप अपनी तो खातिरदारी करते नहीं और दूसरे की करने में लगे रहते हैं।

जिंदगी का भरपूर मजा तब ही है जब आप नियमित रूप से अपने आप को सजाने सँवारने लगेंगे ठीक उसी तरह जब आप कोई त्योहार मनाते समय अपने को तैयार करते हैं। मेहमान नवाजी कीजिए पर अपनी भी खातिर करते रहिए।

हमारे आसपास ऐसे लोग भी मिलेंगे जो हर वक्त मनोरंजन के मूड में रहते हैं, पार्टी देने और लेने की बात करते हैं और जरा सी बात पर जश्न मनाने लगते हैं। यह जरूरी नहीं कि वे कोई दिखावा करते हों अपनी धाक जमाना चाहते हों या उनके पास खर्च करने को खूब पैसा हो। आम तौर से ऐसे लोग जेब से कमजोर होते हैं लेकिन जीवन में हर समय खुशनुमा माहौल बनाए रखने में यकीन करते है। उनके लिए हँसी मजाक करना या हँसते रहना कोई जबरदस्ती की लादी हुई वस्तु नहीं होती बल्कि जीवन को एक उपहार की तरह लेने की होती है। ऐसे ही लोग किसी रोते हुए गमजदा को हँसाने और उसकी व्यथा को भुलाने में कामयाब होते हैं। इसलिए हमेशा ऐसे लोगों के साथ रहिए जो न खुद कभी किसी बात का गम करते हैं और न ऐसे लोगों की सोहबत करते हैं जो हमेशा मुँह लटकाए रोनी सूरत लिए फिरते हैं।


अनुभव बाँटिए और सैर कीजिए

जिंदगी को उत्सव की तरह जीने का एक बेहतरीन तरीका यह है कि आप अपने अनुभव दूसरों के साथ बिना यह सोचे शेयर कीजिए कि अगला क्या सोचेगा। आपको लगेगा कि आप अपने अगर कड़वे अनुभव भी बाँट रहे हैं तो आप तनाव रहित हो रहे है और आपके सामने अपनी कठिनाई से निकलने का रास्ता भी अपने आप खुल रहा है।
जीवन में अच्छा बुरा दौर हरेक के हिस्से में आता है। इस दौर से अपने आप को घुटन में मत रखिए बल्कि किसी ऐसे व्यक्ति से शेयर कीजिए जो आपको समझता हो। जरूरी नहीं कि वह आपकी कोई मदद कर सके पर आपको इससे अपने मन पर पड़ा हुआ बोझ अवश्य कम होता हुआ लगेगा।

तनाव रहित जीवन का अन्दाज बनाए रखने के लिए और अपने आपको तरोताजा या यूँ कहें कि जवान बनाए रखने के लिए जब भी मौका मिले या ऐसे अवसरों की तलाश कर उन्हें हाथ से जाने मत दीजिए जिसमें कहीं घूमने, नई जगह देखने की तनिक भी सम्भावना हो। यह खास तौर से उन लोगों के लिए रामबाण है जो रिटायर हो चुके हों उनका वक्त नहीं कटता हो और घर परिवार होते हुए भी अकेलापन महसूस करते हों।

 असल में जीवन को त्योहार की तरह जीने की सबसे ज्यादा जरूरत इसी उम्र के लोगों को होती है। इसलिए ऐसे मौकों को तलाशते रहिए और अगर कोई साथ न भी मिले तो अकेले ही निकल जाइए। इस सोच को दूर से प्रणाम कर दीजिए कि बाहर चले गए तो कौन देखभाल करेगा कुछ हो गया तो क्या होगा। इस कौन, कुछ और क्या के दायरे से बाहर निकल कर जिंदगी का जश्न मनाते चलिए क्योंकि यह बात तो तय है कि मौत का वक्त किसी और ने पहले से तय किया हुआ है।

 जब तक वो वक्त नहीं आता किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता। ऐसी सोच बनने पर होगा यह कि जब चला चली का समय आएगा तो तो आप उसका भी स्वागत इस तरह करेंगे जैसे किसी मेहमान के आने पर उसका करते हैं।

जीवन को उत्सव की तरह जीने का अर्थ यही है कि जीवन की आपाधापी में संघर्ष की रेलमपेल में और रोजाना किसी न किसी तरह के उतार चढ़ाव में अपना मानसिक संतुलन और शारीरिक बल बनाए रखते हुए भरपूर उसे जिया जाए। जिस तरह जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी उसी तरह मौत भी दो बार नहीं आनेवाली, यह शाश्वत सत्य है।


गालिब की जुबानी
लाज़िम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और
तनहा गये क्यों अब रहो तनहा कोई दिन और

मिट जाएगा सर, गर तेरा पत्थर न घिसेगा
हूँ दर पे तेरे नासियः फ़़रसा कोई दिन और

आये हो कल और आज ही कहते हो, कि जाऊँ
माना, कि हमेशा नहीं अच्छा, कोई दिन और

जाते हुए कहते हो, क़यामत को मिलेंगे
क्या ख़ूब, क़यामत का है गोया कोई दिन और

हाँ, अय फ़लक-ए-पीर, जवाँ था अभी ‘आरिफ़
क्या तेरा बिगड़ता, जो न मरता कोई दिन और


(भारत)

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