चलो गांव की ओर
अभी तक ज्यादातर यह होता रहा है कि गाँव देहात से शहरों में लोग आते रहे हैं क्योंकि वहाँ शिक्षा हो या रोजगार अधिकतर इलाकों में इसका कोई मजबूत ढाँचा खड़ा करने का गम्भीरता से प्रयत्न किया ही नहीं गया। इस बजह से शहरों में पलायन कभी रुका ही नहीं चाहे कितने भी प्रलोभन सरकारों ने दिए हों।
पिछले कुछ वर्षों में हालात बहुत बदले हैं और उसका एक ही कारण है और वह है सूचना क्रांति जिसमें इंटरनेट की बदौलत दुनिया को घर के दरवाजे पर ला खड़ा किया है। हुआ यह है कि अब एक सामान्य शिक्षा प्राप्त या काबलियत रखने वाले के लिए अपना काम या रोजगार करना बहुत आसान हो गया है, उसके लिए बड़े बड़े दफ्तरों की जरूरत या बाहरी तामझाम की जरूरत न के बराबर रह गयी है।
एक बात और यह है कि शहरों में आए या यहाँ बस चुके लोगों का अपना कोई पुश्तैनी मकान या जमीन जायदाद उनके गाँव में जरूर होता है जिसमें रिटायर होने के बाद रहने का सपना संजोय रहते हैं लेकिन हकीकत में यह होता नहीं था।
अब अगर यह सोच पैदा हो जाए कि न केवल हम वहाँ जाकर खुद रहेंगे बल्कि अपने साथ शहर के बेरोजगार पढ़े लिखे लोगों को भी ले जाएँगे जो वहाँ वे सब काम कर या खोल सकते हों जिनके लिए सिर्फ इंटरनेट की जरूरत हो। अभी तक देहाती इलाकों में मोबाईल फोन की मरम्मत की दुकान देखने को मिलती है। जरा सोचिए यदि आई टी सेक्टर का रुख देहात की तरफ हो गया तो कितनी बड़ी क्रांति हो सकती है। पूरा सर्विस सेक्टर वहाँ शिफ्ट हो सकता है।
मूलभूत सुविधाएं मुफ्त हों
आई टी का सर्विस सेक्टर खेतीबाड़ी में कमाल कर सकता है। किसान को मौसम से लेकर खाद, बीज और उर्वरक की जानकारी से लेकर उसकी जरूरतों को पूरा करना कितना आसान हो सकता है।
सरकार केवल इतना कर दे कि वह किसान को बिजली और पानी की सुविधा हो सके तो बिलकुल मुफ्त या बहुत ही कम दाम पर मुहैया कराने का इंतजाम कर दे। इसी तरह खाद, बीज और कीटनाशक भी या तो मुफ्त अथवा कौड़ियों के दाम पर मिलना सुलभ करा दे।
इससे होगा यह कि किसान खेती पर ध्यान देगा और भरपूर फसल होने की तरफ पूरा ध्यान लगाएगा। उसके लिए कर्जमाफी जैसी घोषणाएँ करने के बजाय उसे खेतीबाड़ी के संसाधन बिना किसी दाम के मिल जायें और इंटरनेट के जरिए बढ़िया पैदावार की जानकारी मिलना आसान हो जाए तो हमारे कृषि क्षेत्र का कायाकल्प हो जाएगा।
अब आप के ध्यान में आएगा कि मुफ्त बिजली पानी कैसे देंगे? बात यह है कि परंपरागत यानी कोयले या पानी से बनने वाली बिजली महँगी भी होती है और उसे उपभोक्ता तक पहुँचाने में खर्चा भी बहुत आता है। इसका सीधा सच्चा विकल्प यह है कि सूर्य और पवन से बिजली बनाने के संयंत्र काफी कम लागत में लग जाते हैं और उसमें भी ऐसे जिनमें ग्रीड की जरूरत न रहती हो उन्हें स्थापित किया जाय। अब जब हमें सूर्य और पवन से मुफ्त में धूप और हवा मिलती है तो उससे पैदा बिजली को मुफ्त में किसान को देने में क्या हर्ज हैं।
जब बिजली मिल जाएगी तो सिंचाई के लिए पानी भी उसे जमीन या नहर या नदी से मुफ्त मिल सकता है।
इसी तरह बीज, खाद और कीटनाशक के लिए उसे जैविक खेती करने का पाठ पढ़ाया जा सकता है। हमारा किसान नया सीखने या कोई नया प्रयोग करने में उस्ताद होता है। जिन्होंने खेती के नए तरीके और आधुनिक औजारों का इस्तेमाल सीखकर उनका उपयोग करना शुरू कर दिया वह किसान आज खुशहाल भी है और मालामाल भी।
जहाँ तक कर्ज लेने की बात है वह खेतीबाड़ी के लिए कम और घर में शादी व्याह जैसे खर्चों के लिए उधार ज्यादा लेता है और वह भी बैंक से नहीं साहूकार से लेता है जो कर्जमाफी के दायरे में भी नहीं आता। अब जब उसे खेतीबाड़ी के साधन लगभग मुफ्त बराबर मिल जाएँगे तो दूसरे पारिवारिक खर्चों के लिए उसकी फसल से होने वाली आमदनी ही काफी है।
गैर कृषि क्षेत्र
इसी के साथ जरूरी है कि किसान को पशु पालक ही रहने दिया जाय, उसे पशु रक्षक न बनाया जाए। आज हम भैंस के माँस निर्यात में दुनिया में पहले नंबर पर हैं तो यह पशु पालन की वजह से हैं न कि पशु रक्षा के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी की वजह से।
अब गैर कृषि क्षेत्र में इंटरनेट और पढ़े लिखे तबके की मदद से गाँव देहात में अनाज और खाने पीने की चीजों के लिए प्रोसेसिंग और उनके भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज की इकाइयाँ लग जायें तो ग्रामीण इलाकों का कल्याण ही हो जाए।
आज ग्रामीण इलाकों में फ्रिज, टी वी, वाशिंग मशीन और जिंदगी को आसान बनाने वाली दूसरी चीजें विलासिता की वस्तुएँ न रहकर उनकी जरूरत बन गयी हैं जैसे कि शहरों में इनके बिना जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
जब ग्रामवासियों की आमदनी बढ़ेगी तो जरूरी है कि वे यह सब खरीदेंगे ही तो फिर तो न केवल इन चीजों का उत्पादन बढ़ेगा बल्कि उनकी बिक्री से मिलने वाले टैक्स से सरकार का खजाना भी भरेगा।
क्या यह व्यवस्था ऐसी नहीं होगी जिसमें आम के आम और गुठली के भी दाम मिल जायें। एक बात और है कि किसान की खेती की लागत कम होने से सरकार उससे कम दाम में खरीद कर अपना खर्चा जोड़कर उपभोक्ता को भी कम दाम में खाने पीने की चीजें उपलब्ध करा सकती है। इससे महँगाई से मुक्ति और लोगों को खुशी दोनों ही आसानी से मिल सकती हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का यही व्यवहारिक उपाय है। इस उपाय को अमल में लाने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति जरूरी है जिसमें वोट बैंक की राजनीति का कोई स्थान न हो।
भ्रष्ट नेताओं से मुक्ति
चुनाव नजदीक हैं- इसका अर्थ हमारे देश में यह लगाया जाता है कि जो सत्तारुढ़ दल हैं उन्होंने अपने कार्यकाल में जो कुछ भी अपने पंखों में समेटा है उसे इधर उधर सब तरफ इस तरह बिखेरना शुरू कर दें ताकि सत्ता में वापसी हो सके। ऐसी ऐसी घोषणाएँ कर चुके होते हैं या करने लगते हैं जो चाहे असलियत से कोसों दूर हों लेकिन जनता को भरमा सकती हों और उसे चुनाव होने तक भ्रम में रख सकती हों।
यही हाल विपक्षी दलों का है, वे सत्ता में आने के लिए कुछ भी सही गलत उलटा सीधा कदम उठाने लगते हैं, चाहे ओंधे मुँह ही क्यों न गिर पड़ें और कोई उनका नामलेवा भी न रहे।
पिछले दिनों नेताओं की ऐसी ही जुगलबंदी कोलकाता में ऐसे दिखाई दी कि जैसे यह सोया हुआ शहर अचानक जाग गया हो। बस तोते की तरह एक ही रट कि मोदी को हटाओ। यहाँ तक कि जिस ई वी एम की बदौलत सत्ता सुख भोगते रहे, हारने के डर से उसे ही कोसने लगे, संविधान को बदल दिए जाने का खतरा समझाने में लग गए जबकि ये ही लोग जब तब उसमें संशोधनों के जरिए कितने ही जरूरी और कितने ही गैर जरूरी बदलाव कर चुके हैं। सत्तारुढ़ दल के कुछ असंतुष्ट भी वहाँ उनके सुर में सुर मिलाने लगे।
देश की जनता की इस उम्मीद पर कि कुछ बेहतर नीतियाँ सुनने को मिलेंगी या उसकी बहुत सी परेशानियों के हल इस मंच से बताए जाएँगे या फिर ऐसा ही कोई कार्यक्रम होगा जिसमें चाहे कोई दम हो या न हो, मनोरंजन तो हो ही जाएगा, पानी ही फिर गया। सत्य तो यह है कि अपवाद के रूप में कोई एकाध नेता हो तो हो मंच पर सब नेताओं के चेहरों पर घोटालों की कालिख लग चुकी है और वे अपनी कमीज को दूसरे की कमीज से सफेद बताने में लगे रहे।
यह लोग चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर एक दूसरे की जान के दुश्मन होने के बावजूद जनता को मुगालते में रखने के लिए अक्सर एक दूसरे को गले लगाने का नाटक भी करते रहते हैं।
जिस दिन ऐसे लोगों को अलग करना जनता सीख जाएगी वह दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम होगा। स्वार्थ की घेराबंदी से घिरे इन नेताओं की पहचान कर उन्हें सार्वजनिक जीवन से बाहर निकालने का कोई भी उपाय करना ही देशवासियों के हित में होगा।
(भारत)
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