शुक्रवार, 14 जून 2019

कृषि, उद्योग, शिक्षा और स्वरोजगार बजट का मूल मंत्र होना चाहिए








वित्त मंत्री ने जनता से पूछा है कि वह बजट कैसा बनायें। यह मात्र औपचारिकता है क्योंकि एक तो सरकार के मंत्रियों अधिकारियों और बाबुओं तक की रुचि ज्यादातर केवल अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित अखबारों में छपे लेखों और सम्पादकीय टिप्पणियों में होती है और भाषाई समाचार पत्रों पर नजर डालने की उनकी कोई इच्छा नहीं होती, दूसरी बात यह कि उद्योग और व्यापार करने वालों के संगठनों को सरकार ज्यादा महत्व देती है 


क्योंकि वे संगठित तो होते ही है, साथ में सरकारी नीतियों और निर्णयों पर अपनी छाप डालने में माहिर होते हैं। इसीलिए अधिकतर योजनाएँ केवल एक वर्ग अर्थात सम्पन्न और प्रभावशाली लोगों तक ही सीमित रह जाती हैं और उनके बीच ही इन योजनाओं की बंदरबाँट हो जाती है। सामान्य नागरिक के हिस्से में वही कुछ आता है जो इन लोगों के या तो किसी इस्तेमाल का नहीं होता या फिर इनके द्वारा लाभ लेने के बाद छीजन के रूप में बच जाता है।

असल में सरकार की योजनाएँ और उनके लिए बजट बनाने की प्रक्रिया अपनाते समय हालाँकि कहा यही जाता है  कि सामान्य नागरिक के हित को ध्यान में रखकर ही इसका प्रारूप तैयार किया गया है लेकिन उसका तानाबाना इतना पेचीदा होता है कि लाभ केवल उच्च वर्ग को ही मिलता है। खैर, जो भी हो वित्त मंत्री के लिए कुछ सुझाव हैं जो एक पत्र के रूप में प्रस्तुत हैं

माननीय वित्त मंत्री, 

किसान और युवा शक्ति को लेकर सरकार हर बार किसानों की दुर्दशा और युवाओं की बेरोजगारी का रोना रोते हुए बजट में खैरात के रूप में कुछ टुकड़े उनकी तरफ उछाल देती है तो सबसे पहले किसान को दी जाने वाली किसी भी सब्सिडी को बंद कर उसके स्थान पर उन्हें लगभग मुफ्त में कृषि कर्म के लिए कुछेक मूल सुविधाएँ प्रदान कर दे।

सबसे पहले बिजली देने का प्रबंध कर दे ताकि वे अपने खेतों में सिंचाई और दूसरी जरूरतों को पूरा कर सकें। 

सरकार को बजट में यह प्रावधान करने की जरूरत है । कृषि क्षेत्रों में ऊर्जा की पूर्ति थर्मल या हाइड्रो प्लांट से करने के बजाय सौर, पवन और बायोमास ऊर्जा उत्पादन के प्लांट लगाने की विशाल योजना बनाई जाए जिसका पूरा खर्च सरकार उठाए और उससे पैदा होने वाली बिजली बिना किसी प्रकार के शुल्क के किसान को दी जाए। ये ऊर्जा प्लांट शुरू कर दिए जाने के बाद इन्हें ग्राम, ब्लाक और जिला पंचायत को उनकी क्षमता के अनुसार संचालित करने के लिए सौंप दिए जाए, उनके रखरखाव का खर्च पंचायत उठाए और बिजली के वितरण की जिम्मेदारी एक सहकारी संस्था को दी जाए जो किसान और पढ़े लिखे ग्रामवासियों को शामिल कर बनाई गयी हो। उसका ऑडिट हो और पारदर्शिता का पालन हो।

विकसित देशों में कृषि कार्यों के लिए सौर, पवन और बायोमास ऊर्जा का प्रयोग सफल रहा है और अनेक देशों में तो खेतीबाड़ी के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए इसी क्लीन एनर्जी के जरिए उद्योग भी चलाए जा रहे हैं। इससे जहाँ बिजली उत्पादन का खर्च न्यूनतम हो गया है वहाँ पर्यावरण के लिए घातक प्रदूषण से भी मुक्ति मिली है। 

इसका कारण यह है कि कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस से जितनी ऊर्जा का उत्पादन होता है उतना केवल बीस दिन में सूर्य देवता से मिल जाता है।

इसके बाद आती है सिंचाई की व्यवस्था जिसके लिए किसान आज के आधुनिक युग में भी केवल आसमान की ओर ताकता रहता है, वर्षा हो गयी तो बल्ले बल्ले और न हुई तो सूखे की चपेट से मरने तक की नौबत। सरकार को बजट में इसके लिए समस्त देश के कृषि क्षेत्रों के लिए ऐसे संयंत्र लगाने होंगे जिनसे जल संरक्षण हो सके, तालाब, पोखर और कूप के साथ साथ बड़े जलाशय बनें जिनमे पानी के ठहरने का प्रबंध हो और वर्षा का पानी इनमे जमा होता रहे और एक बूँद भी व्यर्थ न जाए। 

इन संयंत्रों के संचालन के लिए सौर या पवन ऊर्जा का इस्तेमाल हो और इस पानी का वितरण करने के लिए भी कृषि सहकारी समिति बिजली के साथ साथ पानी भी सिंचाई की जरूरत के हिसाब से उसका कोटा बनाकर किसानों को दे। इस तरह पानी की आपूर्ति भी किसान को बिना एक भी पैसा खर्च किए हो जाएगी और उसके खेत कभी सिंचाई के बिना सूखे नहीं रहेंगे। 

इसी तरह खाद, उर्वरक, बीज और कीटनाशक भी किसान को लगभग बिना किसी लागत के देने के लिए बजट में प्रावधान कर दीजिए। 

कृषि उत्पादों की खपत के लिए इन पर आधारित उद्योगों की स्थापना ग्रामीण इलाकों से सटे क्षेत्रों में हो जिनका संचालन भी सौर ऊर्जा से किया जाए। खेत से अनाज, दाल, फल, सब्जी और सभी तरह की दूसरी उपज सीधे इन उद्योगों में प्रासेसिंग के लिए आ जाएँ और फिर देश भर में इनके वितरण की व्यवस्था भी सहकारी समिति के माध्यम से हो। भंडारण के लिए कोल्ड स्टोर हों और इस तरह बिक्री में बिचौलियों की जरूरत न रहे। 

इस तरह पूरा ग्रामीण क्षेत्रफल कृषि उत्पादन, कृषिजनित उद्योग और कृषि व्यापार की एक सम्पूर्ण इकाई बन जाएगा और प्रधान मंत्री का किसानों की आमदनी दुगुना करने का संकल्प भी पूरा हो जाएगा। 

इसे इस प्रकार से समझिए कि जैसे सरकार का दायित्व प्रत्येक गाँव में स्कूल, कस्बे में कॉलेज और जिला तथा राज्य में विश्वविद्यालय खोलने का है , उसी प्रकार किसान और ग्राम तथा वनवासियों को विद्युत शक्ति, खाद की उपलब्धता, सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था, प्रमाणित और उन्नत बीज का वितरण और कीटनाशकों की सुगमता देना भी उसका कर्तव्य ही नहीं बल्कि अनिवार्यता है। 

कांग्रेस और कुछ हद तक आपकी पिछली सरकार ने उन्हें पहले कर्ज और फिर उसकी माफी से ग्रामीण क्षेत्रों में निकम्मेपन को बढ़ावा दिया है। इसकी जगह उसे खेती के लिए मुफ्त संसाधन दे दीजिए और लक्ष्य निर्धारित कर दीजिए कि एक निश्चित अवधि जो तीन से चार साल की हो सकती है, उसके बाद उसे इन सब साधनों की वाजिब कीमत चुकाने होगी।

शिक्षा और स्वरोजगार 

वित्त मंत्री जी यह कहावत सुनिए, ऐसी शिक्षा दीजिए कि रोजगार सुगम हुई जाए, को मूल मंत्र बनाकर सबसे पहले उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए योग्य विद्यार्थियों को दस से पच्चीस लाख तक का ब्याज मुक्त ऋण चार साल के लिए देने का प्रावधान इस बजट में कर दीजिए। इस अवधि में विद्यार्थी अपने को इस काबिल बना लेगा कि उसके लिए बढ़िया रोजगार करना या नौकरी पाना आसान हो जाए।

जब तक विद्यार्थी चार वर्ष की अवधि समाप्त करे तो उसके सामने रोजगार की कोई समस्या न हो तो इसके लिए आप इस अवधि में ऐसे इंक्युबेशन सेंटर, ट्रेनिंग संस्थान, वेंचर सेंटर और टेक्नॉलोजी संस्थान बनाने या पहले से स्थापित केंद्रों का विस्तार करने के लिए एक मोटी रकम खर्च कीजिए ताकि शिक्षा प्राप्त करने के बाद विद्यार्थी यहाँ आए और अपने अनुसंधान, व्यावसायिक प्रोजेक्ट, मोडयूल और जीवन में जो करना चाहता है उसे अमली जामा पहना सके। यह सुविधा उसे प्राथमिकता के आधार पर एक या दो वर्ष के लिए मिले और उसके लिए केवल उसकी रुचि को ही पैमाना माना जाए और यह सब उसे बिना किसी शुल्क के प्राप्त हो।

इस प्रकार की ठोस व्यवस्था करने का परिणाम चार या पाँच साल बाद देखने को मिलेगा जब यह युवा शक्ति अपने सपनों को साकार करने के लिए सक्षम हो चुकी होगी। उसके पास नौकरी से ज्यादा स्वरोजगार करने के अधिक अवसर होंगे और इस तरह यह सरकार एक ऐसा माहौल बना सकेगी जिसमें युवाओं को न तो बेरोजगारी का सामना करना होगा और न ही अपनी प्रतिभा के सही मूल्याँकन के लिए विदेशों का रूख करने की इच्छा होगी। 

वित्त मंत्री जी, हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या इसलिए है क्योंकि युवा न तो रोजगार या नौकरी के काबिल बन पाते हैं और इस तरह अधकचरे शिक्षित बेरोजगार हो जाते हैं और न ही अपना कोई व्यवसाय या स्वरोजगार करने के योग्य बन पाते हैं। सरकार को उन्हें केवल काबिल बनाना है, उसके बाद तो वे आपसे न कुछ माँगेंगे और न ही अपेक्षा रखेंगे। वे स्वावलंबी, आत्मनिर्भर और स्वयं पर विश्वास करने वाली पीढ़ी का नेतृत्व करने के लिए भली भाँति तैयार हो जाएँगे और फिर देखिए किस तरह से देश दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है।

इस बार का बजट किसान और युवाओं को समर्पित कर दीजिए, उसके बाद आपको उनके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं रह जाएगी।

वित्त मंत्री जी, एक जरूरी काम यह करना होगा कि इस बजट में आयकर मुक्त आमदनी की सीमा दस लाख कर दीजिए और उसके बाद पंद्रह, बीस और पच्चीस प्रतिशत आयकर के तीन स्लैब बना दीजिए। इसी प्रकार जी एस टी के दो स्लैब जो पाँच और पंद्रह प्रतिशत के हों, उसकी घोषणा कर दीजिए।  वे सभी वस्तुएँ और सेवाएँ जो दैनिक उपयोग की हैं या सामान्य रूप से उनकी जरूरत पड़ती है उन्हें इसके दायरे से मुक्त कर दीजिए।

आशा है आपको यह सुझाव पसंद आएगें और आगामी बजट में इनका समावेश होगा। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपने सुझाव मेरे ई मेल पर या सीधे ही  ूूण्उलहवअण्पद पर भेज दें। 


(भारत)

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