भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय तुर्की को जाता है जो हमलावर के रूप में यहाँ आए थे। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वी राज चौहान को हराकर यहाँ कुतुबुदीन ऐबक को दिल्ली की गद्दी सौंप दी और वापिस चला गया। मोहम्मद गजनी भी तुर्की था जिसने सत्रह बार हमला किया। इस तरह मोहम्मद, तुगलक, खिलजी ने यहाँ मुस्लिम राज्य की नींव डाली और अकबर ने इसे मजबूती दी।
तुर्की में सन् 1923 तक ऑटमन राजशाही थी जिसे अपने निरंकुश और बर्बर शासन के कारण आम नागरिकों के रोष का सामना करना पड़ा। सन् 1881 में जन्मे मुस्तफा कमाल ने इसके खिलाफ मोर्चा बुलन्द किया और 1923 में टर्की गणराज्य की स्थापना की और पहले राष्ट्रपति बने।
एक दौर ऐसा आया कि भारत में कांग्रेस के कुछ युवाओं ने अपने को यंग टर्क कहना शुरू कर दिया जो इस दल में रहकर उसकी नीतियों का विरोधी स्वर था जिसने आगे चलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत तुर्की से चार गुना बड़ा है और दोनों देशों के बीच काफी सांस्कृतिक समानताएँ हैं। हिंदी, उर्दू शब्दों का काफी प्रचलन है। कीमा, कोफ्ता, हलवा, पुलाव, तंदूर, दुनिया जैसे ढेरों शब्द हैं जो समान हैं।
लगभग साढ़े चार हजार किलोमीटर दूर तुर्की के इस्तांबुल हवाई अड्डे पर उतरते समय यही सब बातें मन में थीं। यहाँ मुस्लिम देशों जैसी कट्टरता नहीं है, लोगों का पहनावा आधुनिक भी है और मुस्लिम भी, खानपान, रहन सहन, बातचीत एशिया और यूरोप का मिलाजुला स्वरूप है। यह यूरोप का द्वार भी है और कुछ हिस्सा यूरोप में आता है।
इस्तांबुल से बस यहाँ के प्रसिद्ध शहर कैपादोशिया के लिए चली तो रास्ते भर प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन होते रहे। यह जगह विश्व धरोहर है और यहाँ आकर टर्की के ऐतिहासिक खंडहर देखने से इसकी प्राचीन संस्कृति के दर्शन हो जाते हैं।
ज्वालामुखी प्रभावित क्षेत्र है और लगभग एक करोड़ साल से लेकर अब तक यह फटते रहते हैं, हालाँकि अब काफी कम हो गए हैं। इनसे निकला लावा अनेक धातुओं का मिश्रण है और उससे अनेक तरह की आकृतियाँ बन गयीं हैं। पत्थर की शिलाओं को देखकर आप अपनी कल्पना के मुताबिक उनका आकार सोच सकते हैं। इन्हें काल्पनिक चिमनियों का नाम दिया गया है। एक शिला विष्णु का आकार है तो दूसरी बुद्ध जैसी, तीसरी हैट पहने यूरोपियन की तो चौथी में महिला पुरुष एक दूसरे का चुम्बन लेते हुए लगते हैं।
यह चिमनियाँ घाटियों में दूर दूर तक फैली हैं और मनचाहा आकार दिखाई देने लगता है। कुछ आकार नदी और बरसात के पानी ने अपने मन से बना दिए हैं।
यहाँ पर छोटी और बड़ी गुफाओं से भरे क्षेत्र हैं। इनमें यात्री और व्यापारी ठहरते थे और इनका इस्तेमाल सराय की तरह होता था।
शहरों का आर्किटेक्चर बहुत सुंदर है लेकिन उलझन भरा भी है जिसे समझने के लिए वास्तुविद की जरूरत पड़ती है।
इस क्षेत्र में मृत्यु के बाद शव को गर्भ के शिशु के आकार में घर के फर्श में गाडे जाने की परंपरा थी। इस तरह के अवशेष मिले हैं जिनसे पता चलता है कि दुनिया की पहली ब्रेन सर्जरी यहाँ एक 20-25 साल की महिला की हुई थी।
इस पूरी घाटी में विभिन्न रंगों की छटा बिखरी है जो ज्वालामुखी फटने से निकले लावा से बनी है।
औटोमन पीरीयड में यह क्षेत्र सुख शांति से परिपूर्ण था। ईसाई सम्प्रदाय के लिए चर्च बनाए गए। कुछ मस्जिद और चर्च एक दूसरे से सटे हुए है और दोनों धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव और परेशानी के इनमें आते हैं।
यह देखकर मन में विचार आया कि क्या अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर एक साथ एक दूसरे से सटे हुए नहीं बन सकते।इस इलाके में कुदरती तौर पर ऐतिहासिक और धार्मिक केंद्र बन गए हैं।
इन विशाल इमारतों में अंदर के कमरे चट्टान से अपने आप बन गए और उनमें आने जाने के लिए सीढ़ियाँ और सुरंग भी हैं। पहले जमाने में इनमें काफी चहल पहल रहा करती होगी पर अब सब जगह जाना मुमकिन नहीं है।
यहाँ नाग देवता की पूजा होती थी चित्रकारी अद्भुत है और मनमोहक भी।
गोरेम संग्रहालय घाटियों से घिरा एक विशाल क्षेत्र है इसकी खोज यूरोपियनों ने अठारहवीं शताब्दी में की और दुनिया के सामने एक अजूबे की तरह इसे सराहा गया। अनगिनत आकृतियाँ हैं चित्रकारी है और खूबसूरत कला का संगम हैं।
हमारे यहाँ अजंता एलोरा की गुफाएँ और खजुराहो की चित्रकारी की तुलना इनसे की जा सकती है।
इस्तांबुल शहर हमारे जैसे व्यस्त शहरों की तरह ही है। तकसिम चौराहा मशहूर है। यहाँ मिठाई की दुकान पर भारतीय व्यंजनों की तरह स्वादिष्ट मुकलावा मिलता है।
यहाँ से अगला पड़ाव ग्रीस की राजधानी ऐथेंस का था। यहाँ क्रूज पर ठहरना और समुद्र के रास्ते विभिन्न शहरों को देखना अच्छा अनुभव था।
ऐथेंस की एतिहासिक पहाड़ी और अथीना देवी इस क्षेत्र की रक्षक के रूप में मानी जाती हैं। उनकी प्रतिमा में पंख नहीं हैं। मान्यता है कि पंख न होने से देवी हमेशा यहीं रहेंगी और कभी छोड़कर नहीं जाएँगी।
एक शहर मयकोनोस है जिसकी इमारतें एकदम सफेद रंग की हैं।
यहाँ अनेक द्वीप हैं जिनमें आबादी बसी हुई है। संकरी गलियों और गलियारों से होते हुए ऊपर तक जाया जा सकता है जहाँ से समुद्र का नजारा बहुत ही आकर्षक दिखता है।
ऐसा ही एक द्वीप साँटोरिनी है जो काफी सुंदर है। यहाँ ज्वालामुखी के मुहाने तक जाया जा सकता है।
इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से तुर्की और ग्रीस दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। इन सभी स्थानों पर जाने के लिए वहाँ की सरकारों ने पर्यटन को ध्यान में रखते हुए लगभग सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की हैं।
हमारे देश में भी ऐसे एक नहीं सैंकड़ों इलाके हैं जो इतिहास और पुरातत्व के नजरिए से बहुत ही आकर्षक हैं परंतु खेद है कि इनमें से ज्यादातर जगहों पर आने जाने की सुविधाओं का अभाव है जिसके कारण विदेशी ही नहीं देश के लोग भी वहाँ जाने से कतराते हैं।
उत्तर पूर्व हिमालय की कंदराएँ, लेह लद्दाख की घाटी, खजुराहो की गुफाएं और हिमालय पर्वत की रंग बिरंगी पर्वत श्रंखलाएँ इतनी खूबसूरत और मनमोहक हैं कि उन्हें निरंतर निहारते रहने पर भी थकान नहीं महसूस होती।
हमारे देश में यदि इन सभी स्थानों पर सुगम और सस्ती सेवाएँ प्रदान कर दी जाएँ तो हम भी विदेशियों को बहुत कुछ ऐसा दे सकते हैं जिसे वे कभी भूल नहीं पाएँगे।
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