शुक्रवार, 20 मार्च 2020

मिस्र के पिरामिड, नील नदी और पर्यटन








इजिप्ट या मिस्र अफ्रीका के उत्तर और मिडिल ईस्ट के बगल में है, मेडिटेरेनियन समुद्र से घिरा और इस क्षेत्र को जीवन देने वाली विश्व की सबसे लंबी नदियों में से एक नील नदी के आगोश में स्थित एक ऐसा देश है जिसकी सभ्यता 4500 वर्ष पुरानी है। अगर नील नदी न होती तो पूरा इलाका रेगिस्तान कहलाता।

मिस्र में गीजा के पिरामिड या स्तूप  दुनिया  के अजूबों में से एक हैं। इन्हें देखने की इच्छा रखने वाले जब इनके करीब होते हैं, तब ही उन्हें एहसास होता है कि वास्तव में ये एक अजूबे ही हैं, वरना ये पिरामिड पत्थरों को जोड़कर रख देने से बनी एक त्रिकोणात्मक आकृति ही लगती है।

यह पिरामिड बनाने में बीस साल लगे और पत्थरों की भारी शिलाओं को यहां तक लाने के लिए केवल मजदूर ही थे, उस समय कोई क्रेन या कोई और तकनीक या मशीनरी नहीं थी। पत्थरों को इतनी ऊंचाई तक ले जाना और उन्हें जोड़े रखना वास्तव में कमाल का काम है। आज तक वोह अपनी जगह से हिले नहीं और  कुछ आक्रमणकारियों ने इन्हे मिटाने की कोशिश की भी तो नाकामयाब ही रहे।

इन पिरामिडों में इन्हें बनवाने वाले राजाओं के शव आज भी ममी के रूप में रखे हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा कारणों से देख पाना संभव नहीं है।

हिन्दू धर्म की भांति इनका भी पुनर्जन्म में विश्वास है। हमारे यहां आत्मा विलीन होकर किसी योनि में दुबारा जन्म लेती है, इनके यहां शरीर के साथ ही फिर से जीवित होने की मान्यता है और इसीलिए उनके साथ जरूरी समान और धन दौलत भी रखी जाती रही है ताकि जब जीवित हो जाएं तो उसी शरीर और राजसी ठाठबाट के साथ जिन्दगी जी सकें।

मिस्र का भारत की प्राचीन सभ्यता के साथ मिलान करें तो कोई समानता तो नहीं है  लेकिन प्राचीन इमारतों और उनके  अवशेषों में जरूर यह बात है कि इनसे दोनों की सभ्यता या सिविलाइजेशन को समझा जा सकता है।


हमारे यहां जीवनदायिनी गंगा है तो मिस्र में नील नदी है। अगर दोनों ही देशों  में ये  नदियां न होती तो क्या हालत होती उसकी कल्पना करना भी भयावह है। गंगा अनेक स्थानों पर बहुत ही प्रदूषित और गंदगी से भरी है जबकि नील नदी की सफाई देखकर तसल्ली होती है। इसी तरह इजिप्ट में गाय को सबसे अधिक सम्मान दिया जाता है क्योंकि उसे एक उपयोगी पशु के रूप में मान्यता दी गई है जिस प्रकार हमारे यहां गाय को विशेष और लाभदायक पशु होने का गौरव प्राप्त है।

क्रूज में बैठकर नील नदी के आसपास लहलहाते खेतों को देखकर इसकी उपयोगिता समझ में आती है। बस से पूरा रेगिस्तान पार कर नील नदी को देखना सुखद अनुभव है।
मिस्र के शासक जमाल अब्दुल नासिर ने इस देश के आजाद होने के बाद एक तरह से यहां की कायापलट ही कर दी और उसे एक ट्राइबल देश की जगह आधुनिक रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नील नदी पर बांध बनाने के लिए ताकि बिजली का उत्पादन हो सके, पहले अमेरिका और ब्रिटेन से मदद मांगी गई लेकिन उनकी शर्तें एक तरह से  उनकी गुलामी करने जैसी थीं, तब नासिर ने रूस का हाथ थामा और रूस इसलिए मदद को तैयार हुआ क्योंकि उसे इजिप्ट में अपने हथियारों के कारोबार की अपार संभावनाएं दिखाई दीं और दोनों ने हाथ मिला लिया और इस तरह अमेरिका को अंगूठा दिखा दिया।

जमाल नासिर और पंडित नेहरू की मित्रता भी इसी आधार पर हुई कि दोनों की आजादी बरकरार रखते हुए रूस ने मदद की जिसका परिणाम दोनों की खुशहाली और बेहतर रिश्तों के रूप में हुआ।

इजिप्ट का सबसे बड़ा टैम्पल कर्णक में है जो अपनी विशालता और पुरातत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मिस्र की पहली रानी का भी स्थान है जिसने देश की समृद्धि में अद्भुत योगदान दिया। इसमें विशाल आकार के 138 खंबे हैं जिन पर इतिहास की व्याख्या करती आकृतियां हैं जो बताती हैं कि कब किस राजा ने साम्राज्य विस्तार के इरादे से दूसरे देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।

सूर्य को शक्ति का प्रतीक माना जाता है और इसीलिए पूर्व को जीवन और पश्चिम को मृत्यु का स्थान मानते हैं।

इजिप्ट में भारतीय मान्यता कि पिता ही सृष्टि का निर्माता है, की भांति उसे पिता ही कहा जाता है और वह अंधेरे में रहकर सृष्टि निर्माण करता रहता है।

यहां एक कुएं नुमा महल है जिसकी खोज कहते हैं कि संयोग से एक गधे ने की। उसमें 99 सीढ़ियां हैं और जैसे जैसे नीचे उतरते जाते हैं, इस महल का रहस्य खुलता जाता है। अंदर शवों को ममी के रूप में रखे जाने के लिए खाने बने हुए हैं ।

इजिप्ट में पपारायसस नामक पेड़ के बने पत्रों पर की गई लिखाई हमारे यहां के भोजपत्रों पर लिखी गई पांडुलिपियों की तरह आज भी सुरक्षित हैं। यह पत्र आज भी लिखने और आकृतियां गढ़ने के काम आते हैं और सजावटी सामग्री के रूप में पर्यटकों को लुभाते हैं। लेकिन इनके असली  और नकली होने में भेद कर पाना मुश्किल है, विशेषज्ञ ही फर्क बता सकता है।

इसी पेड़ के तने से बनी नावों पर ही पिरामिडों के लिए पत्थरों को लाने का काम किया जाता था।

इजिप्ट में शेर की आकृति और मनुष्य का चेहरा यहां का प्रतीक चिन्ह है।
यहां भी एक प्राचीन काल की कहानी के अनुसार दो भाइयों में एक भलाई और दूसरा बुराई का प्रतीक है। इससे अपने यहां बाली और सुग्रीव की कथा का स्मरण होता है।

भलाई के प्रतीक एक भाई को समाप्त करने के लिए बुराई के प्रतीक भाई ने सुलह करने का दिखावा करते हुए सभी सभासदों और अपने भाई को आमंत्रित किया। उसने एक खेल रचा जिसमें विभिन्न आकार के कॉफिन बनवाए और कहा कि जो भी अपने आकार के कॉफिन में फिट हो जाएगा, विजेता माना जाएगा। सभी कॉफिन या तो इतने बड़े या छोटे थे कि कोई फिट नहीं आया लेकिन एक कॉफिन बिल्कुल उस भाई के आकार का था जिसे समाप्त करने की चाल उसके ही भाई ने खेली थी।

इसी तरह की अनेक कथाएं इस देश में प्रचलित हैं जिनमें एक यह भी कि चारों ओर केवल पानी ही पानी था और घनघोर अंधेरा था। केवल  पिता ही था जिसने  सृष्टि निर्माण के लिए नमी और वायु की रचना की। फिर आदम की रचना की।  दोनो का संगम हुआ  जिससे दो शिशु जन्मे। उसके बाद यह सिलसिला आगे बढ़ता गया और पृथ्वी पर नर और मादा के  रूप में आबादी बनती गई।

एक और कथा है जिसमें रानी के शरीर को 14 अंगों में काट कर जगह जगह बिखेर दिया गया। 14 में से 13 अंग मिल गए और एक अंग समुद्र में मछली निगल गई। शेष अंग से गर्भ धारण हुआ और उसे प्रसव हुआ तो जिस शिशु ने जन्म लिया वह राजा बना।
इजिप्ट इतिहास और पुरातत्व का अद्भुत संगम है। यहां मीलों में फैले मंदिर और उनमें बनाई गई आकृतियां यहां की कहानी कहती हैं।

अंग्रेजों ने यहां भी शासन किया। जैसा कि उन्होंने अपने पूरे साम्राज्य से बेहतरीन वस्तुओं को अपने देश  ले जाकर संग्रह किया उसी तरह इजिप्ट से भी वे बहुत सी बहुमूल्य वस्तुएं ले गए जिनमें राजाओं के मुकुट, आभूषण या शिलाएं भी हैं।

अंग्रेजों की एक आदत और यहां देखी और वह यह कि जैसा कि उनकी प्रवृति है, अनेक दीवारों और खंबों पर ऊंचाई तक जो भी अंग्रेज पहुंच पाया उसने अपना नाम और सन इन पत्थरों पर खोद दिया।

कह सकते हैं कि इजिप्ट यात्रा का अनुभव रोमांचक और रहस्यमय कथाओं को जानने का रहा। जैसा कि कुछ लोगों की मान्यता है कि यहां का निर्माण करने में एलियंस का हाथ है लेकिन इसका कोई प्रमाण न होने से विश्वास नहीं होता।
अजूबे और अजब रीति रिवाजों के साथ साथ आधुनिक होने की दौड़ में भी यह देश अग्रणी है। पुराने मकानों और बेतरतीब गली मोहल्लों के साथ सरपट सड़कें और तेज गति से चलने वाले वाहन तथा आधुनिक तर्ज पर बने घर भी हैं।

कैरों, आस्वान, लुक्सर जैसे शहर यहां  की मिलीजुली संस्कृति, पहनावे और फैशन का प्रतीक हैं। लोग मिलनसार ज्यादा नहीं है, अपने काम से काम रखने वाले हैं। खानपान में मांसाहारी ही अधिकतर हैं लेकिन उसमें भी कोई अलग पहचान रखने वाला व्यंजन न के बराबर है। एक तरह से यात्रा सुखद ही रही। 

(भारत)


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