शनिवार, 12 जून 2021

लक्षद्वीप का कायाकल्प और प्राकृतिक सौंदर्य को खतरा

 


हमारे देश में जितने भी पर्यटन स्थल हैं, वे अधिकतर ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक हैं। इनमें विशाल किले, राजा महाराजा, नबाब, बादशाह और शहंशाओं द्वारा बनवाए गए अनेक स्थल सदियों से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इसी तरह धार्मिक स्थल हैं जो पूरे देश में आस्था के प्रतीक और प्राचीन वास्तुकला के अद्वितीय भंडार हैं। इनका सौंदर्य अनूठा, अलौकिक और अद्भुत है।

इसके अतिरिक्त प्राकृतिक सौंदर्य के प्रतीक अनेक स्थल हैं जो अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं।

ऐसे ही स्थलों में अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप है जो अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए विख्यात है। अभी तक यह क्षेत्र सैलानियों के लिए एक तरह से प्रतिबंधित रहा है। सरकार अब इसे भी देसी और विदेशी पर्यटकों के लिए खोलना चाहती है। इसका विरोध भी हो रहा है और इसे पर्यावरण संरक्षण में बाधक कहकर अनेक राजनीतिक और सामाजिक कार्यों से जुड़े लोगों द्वारा अनावश्यक बताया जा रहा है।

लक्षद्वीप अनूठा द्वीप समूह

फरवरी 2019 में विज्ञान प्रसार के लिए एक फिल्म बनाने के लिए लक्षद्वीप जाना हुआ। इस फिल्म का विषय था कि समुद्र के पानी से ऊर्जा अर्थात बिजली का उत्पादन करने में हमारी विज्ञान प्रयोगशालाओं ने जो प्रयास किए हैं और उनके फलस्वरूप जो उपलब्धियां हासिल की हैं उन्हें इंडिया साइंस चैनल के माध्यम से दर्शकों को अवगत कराना। फिल्म निर्माण के समय इस क्षेत्र के सौंदर्य को निहारने और इसकी विशेषताओं से परिचित होने का भी यह अवसर था।

सबसे पहले इस अनूठे क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य की बात करते हैं। 32 वर्ग किलोमीटर में फैले लक्षद्वीप में 36 स्थल हैं। इनमें 27 द्वीप हैं जिनमें से दस में आबादी है और 17 में कोई नहीं रहता। तीन रीफ हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से अनमोल धरोहर हैं छः सैंड बैंक हैं जिनका भी इकोसिस्टम की दृष्टि से बहुत महत्व है।

लगभग 70 हजार की जनसंख्या वाले इस केंद्रशासित प्रदेश में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां केवल दस लोग रहते हैं। यह पूरा अनुसूचित जनजाति क्षेत्र है और यहां की आबादी 9प्रतिशत मुस्लिम है। शेष तीन प्रतिशत में अधिकतर प्रशासनिक, सैन्य तथा अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं।

स्थानीय आबादी हालांकि एक ही धर्म से संबंधित है लेकिन उनका व्यवहार इतना धर्म निर्पेक्ष है कि वहां बाहर से आने वाले व्यक्ति को लगता है कि उसमें और इनमें कोई अंतर नहीं है। स्वागत सत्कार, बातचीत से उनके मिलनसार होने का आभास इस धरती पर कदम रखते ही हो जाता है। हर तरह से मदद करने और किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखने की प्रवृति यहां स्थानीय आबादी में इतनी है कि अगर किसी को कहीं रहने की सुविधा न मिले तो उसे यह अपने घर ठहराने तक में कोई असुविधा महसूस नहीं करते और उसकी सुख सुविधा का  ध्यान रखने में कोई कमी नहीं रखते।

राजधानी कवारत्ती में अधिकतर सरकारी कार्यालय हैं और पूरे क्षेत्र का प्रशासन यहीं से चलता है। रहने के लिए जो भी होटल या गेस्ट हाउस हैं वे सरकारी हैं और यहां आने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना होता है कि इनमें रहने के लिए जगह उपलब्ध है और बुकिंग करा ली गई है। कई बार तो इसके लिए कई सप्ताह इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि बहुत सीमित मात्रा में निवास की सुविधाएं हैं।

बिजली और पानी

यह पूरा क्षेत्र जेनरेटर द्वारा उत्पन्न बिजली से चैबीसों घंटे प्रकाश प्राप्त करता है। इसके लिए डीजल समुद्र के रास्ते आता है और काफी खर्चीला है। सोलर एनर्जी से भी बिजली की आपूर्ति होती है लेकिन अभी इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई। हालांकि सौर ऊर्जा से डीजल से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सकता है लेकिन इस दिशा में ज्यादा प्रगति न होने से आश्चर्य होता है कि सूरज महाराज की कृपा का लाभ उठाने से यह क्षेत्र वंचित क्यों है जबकि उनकी तरफ से धूप प्रदान करने में कोई कमी नहीं है ?

समुद्र के पानी से ऊर्जा प्राप्त करने का काम अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है और उसमें बहुत समय लगने वाला है इसलिए सोलर एनर्जी ही वर्तमान में एकमात्र विकल्प है। यदि इस क्षेत्र का विकास करना है और पर्यटन की सुविधाएं प्रदान करनी हैं तो सबसे पहने ऊर्जा का प्रबंध करना होगा और सोलर तथा पवन ऊर्जा पर आधारित योजनाओं को लागू करना होगा।

यह प्लांट सन 2004 में चेन्नई स्थित एन आई ओ टी नामक वैज्ञानिक संस्थान द्वारा लगाया गया था। इस प्लांट से समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में बदला जाता है। आधुनिक विज्ञान और भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा इस तरह के प्लांट अधिक मात्रा में स्थापित किए जाने से ही पीने के पानी की व्यवस्था हो सकती है।

जहां तक पानी का संबंध है तो अभी भी यहां सब जगह खारा पानी ही उपलब्ध है। पीने का पानी बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध है। यह या तो बोतलबंद बाहर से आता है या फिर डीसैलिनेशन प्लांट से नलों के जरिए प्राप्त होता है। यह नल जगह जगह लगे हुए हैं जहां से पानी भरकर घरों तक लाया जाता है।

अगर इस क्षेत्र का विकास करना है और उसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना है तो सब से पहले बिजली और पानी की समुचित व्यवस्था करनी होगी। वैसे भी यह दोनों स्थानीय आबादी की भी मूलभूत आवश्यकताएं हैं जिनकी पूर्ति किए बिना लक्षद्वीप के शहर कवारत्ती को स्मार्ट सिटी का आकार देना संभव नहीं है।

लक्षद्वीप के पर्यटन की दृष्टि से जो द्वीप विकसित किए जा सकते हैं उनमें बंगाराम पहले से ही सैलानियों का पसंदीदा स्थल है। जिन अन्य द्वीपों पर आबादी है उनका विकास जीवन के लिए आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध करने से ही होगा। इनमें स्कूल, शौचालय, अस्पताल प्रमुख हैं।

नई प्रशासनिक घोषणा से बीफ को प्रतिबंधित करने और उसके स्थान पर मछली और अंडों का सेवन करने पर जोर देना कहीं से भी उचित नहीं है। बीफ का प्रचलन रोकने से स्थानीय आबादी के रोष का कारण बनना ठीक नहीं। यदि गौ रक्षा ही उद्देश्य है तो उसके लिए अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए न कि ऐसा काम किया जाए जिससे विरोध की लहर पैदा हो।

अल्कोहल की अनुमति देना भी तर्कसंगत नहीं क्योंकि अभी तक यह क्षेत्र इस व्यसन से अपरिचित रहा है। पर्यटकों का स्वागत अल्कोहल के स्थान पर किसी अन्य भारतीय पेय पदार्थ से किया जा सकता है। इससे न केवल विदेशियों को एक भारतीय पेय का स्वाद मिलेगा बल्कि वे उसे अपने साथ भी ले जाना पसंद करेंगे।

जहां तक कानून व्यवस्था की बात है, यह प्रदेश अभी तक अपराध से लगभग अछूता है। यहां चोरी, डकैती, लूटपाट जैसी घटनाएं लगभग न के बराबर होती हैं। जनसंख्या एक दूसरे के साथ सहयोग करने और आपसी विश्वास को जीवनचर्या का अंग मानती है।

पंचायत चुनावों में भाग लेने के लिए दो बच्चों की सीमा बना देना न केवल हास्यास्पद है बल्कि गैरकानूनी भी है क्योंकि अभी तक संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

लक्षद्वीप के प्राकृतिक सौंदर्य की बात ही निराली है। यहां समुद्र तट पर टहलना, बीच पर बैठकर पुरुषों और महिलाओं का ग्रुप बनाकर समय बिताना और अठखेलियां करती लहरों के उठने गिरने का आनंद लेना सुखद अनुभव है।

रीफ, कोरल और समुद्री वनस्पति तथा जीव अपनी प्राकृतिक छटा से मन मोह लेते हैं। समुद्र तट साफ सुथरे, स्वच्छ हैं और कूड़े कचरे से गंदे नहीं होते क्योंकि इस मामले में प्रशासन बहुत सख्त है। वैसे भी खाने पीने की दुकानें इन जगहों पर कम ही हैं इसलिए गंदगी भी नहीं है।

विकास की राजनीति

लक्षद्वीप का विकास करने के नाम पर कहीं कोई राजनीतिक एजेंडा तो नहीं, यह संशय उठना स्वाभाविक है। यहां जरूरत इस बात की है कि आवागमन के साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराए जाएं। इनमे सड़क बनाना प्रमुख है। एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक जाने की अभी कोई बढ़िया व्यवस्था नहीं है। इसका भी पर्याप्त प्रबंध करना होगा।

यहां बरसात का पानी जमा करने का कोई साधन नहीं है और वह जितना जमीन में समा सकता है, ग्राउंड वाटर के रूप में जमा हो जाता है, बाकी बहकर समुद्र में चला जाता है। पहले जब आबादी कम थी तो इस ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल पीने के पानी के रूप में हो जाता था। यहां का सीवेज सिस्टम बहुत पुराना होने से जंग खा कर बेकार हो जाने से ग्राउंड वाटर के साथ मिल गया। नतीजा प्रदूषित जल के रूप में हुआ और उसके पीने से अनेक बीमारियों को न्योता मिल गया। अब ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल केवल धुलाई सफाई करने जैसे कामों के लिए होता है।

विकास करना ही अगर उद्देश्य है तो सबसे पहले इस क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकताओं को ही पूरा कर लें तो काफी होगा। यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए बहुत अधिक उपयुक्त नहीं है, इस बात को समझकर नए सिरे से यहीं रहकर स्थानीय लोगों को साथ लेकर विकास योजनाओं को बनाकर अमल में लाने से ही इस क्षेत्र का भला हो सकता है।

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