शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

विश्व मानवाधिकार दिवस पर क्या संदेश होना चाहिए ?

 


दस दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समानता पर आधारित और भेदभाव रहित संसार की कल्पना को साकार करने के लिए विश्व मानवाधिकार दिवस मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत की गई।

मनमानी का अधिकार नहीं

चीन में 2022 के ओलंपिक शीतकालीन खेलों का बहिष्कार दुनिया के बड़े और छोटे देशों द्वारा किया गया है। इसका अर्थ यह है कि चीन की नज़रों में मनुष्य के अधिकार का कोई मूल्य नहीं और इसका एहसास उसे कराया जाना चाहिए कि अगर उसने इसी तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन किया तो उसे दुनिया की बिरादरी में बैठने लायक नहीं समझा जायेगा।

चीन अपनी ज़िद और हठधर्म का पालन करने से अपने इस बहिष्कार पर चाहे ध्यान न दे और अपने आचरण में कोई परिवर्तन न करे, फ़िर भी जगहंसाई और निंदा से तो वह बच नहीं सकता। क्या इसका मतलब यह नहीं कि आप चाहे कितने भी अपने घमंड में चूर होकर अपनी सोच को न बदलें पर अंदर से एक टीस तो उठेगी ही और दिल से आवाज़ भी आयेगी कि मैं जो कर रहा हूं या करने जा रहा हूं , वह गलत है।

अगर अपने देश में देखें तो किसान आंदोलन पर सरकार की माफी और उनकी बातों को सुनना और जो हुआ उस पर अफसोस ज़ाहिर कर मान लेना यही बताता है कि इस मामले में गलती तो हुई है और उसे मान लेने में कोई हानि नहीं बल्कि सरकार का बड़प्पन ही है कि उसने वास्तविकता को समझकर कदम उठाया और इस तरह अपनी गरिमा को कायम रखा तथा किसानों के मानवाधिकारों को भी समझा।

कठिनाइयों से सबक

जहां तक विश्व मानवाधिकार दिवस का संबंध है तो इसकी रूपरेखा उस समय बनाई गई जब दुनिया ने दूसरे विश्व युद्ध में हुए मनुष्यता के पतन को देख लिया था। पूरा संसार उसके परिणामों से उत्पन्न हालात से दुःखी था और भविष्य में कभी इस तरह के युद्ध न हों जिसकी चपेट में सभी देशों को अपनी मर्ज़ी या मजबूरन आना पड़े, इसके लिए विश्व स्तर पर कोई ऐसा संगठन बनाया जाए जो यह सुनिश्चित करे कि अगर किसी देश में मनुष्य के अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उसके विरुद्ध जन मत तैयार किया जा सके ताकि समय रहते वह देश अपनी गलती समझे और जो वह कर रहा है, उसे रोकने की  व्यवस्था करे। हालांकि ऐसा करना उसकी कोई मज़बूरी नहीं, फ़िर भी अगर उसने दुनिया में सिर उठाकर जीना है और भाईचारे के साथ रहना है तो उसे अपने कदम पीछे हटाने ही होंगे और मानवाधिकारों का पालन करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र ने जब विश्व मानवाधिकार संगठन बनाया तो शुरू में इसमें वे देश भी शामिल हो गए जो हत्या, बलात्कार और अन्य जघन्य अपराधों के लिए जाने जाते थे। हो सकता है कि वे अपने दुष्कर्मों पर पर्दा डालने के लिए इसमें सम्मिलित हुए हों लेकिन जब विश्व के शांतिप्रिय देश अधिक मात्रा में इसके उद्देश्यों को मानकर शामिल होने लगे तो उनकी एकता के सामने ऐसे सदस्यों को झटका लगना स्वाभाविक था। इसी का परिणाम आज पूरा विश्व देख रहा है।

मानवाधिकार असल में क्या हैं तो यह बिल्कुल सामान्य और साधारण हैं जिन्हें समझने के लिए दिमाग़ पर ज्यादा ज़ोर डालने की जरूरत नहीं है। संसार से गरीबी मिटाने, सब को समान अवसर देने, शिक्षा, स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए जीवन जीने के अधिकार को समझते हुए ऐसी स्थितियों का निर्माण करना ही तो है जिससे वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का विकास हो और सभी प्रेम, शांति तथा सद्भावना के माहौल में रह सकें।

जन्म से ईश्वर ने किसी भी प्राणी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया, उसका धर्म, जाति तय नहीं की।  पुरुष तथा स्त्री केवल उसके जन्म के साधन मात्र हैं तो फ़िर किस आधार पर धार्मिक, जातिगत, लिंगभेद के कारण उसके साथ भेदभाव ही नहीं करते, बल्कि उसे यह सिखाते भी हैं कि वह भी इन सब बातों को मानते हुए ही बड़ा हो ?

हमारे मानवाधिकारों में नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार ही तो आते हैं जिनका संरक्षण करने की जिम्मेदारी सरकार और संविधान के अंतर्गत उसके बनाए कानूनों द्वारा सुनिश्चित करने की है। इनका उल्लंघन करने पर कानून के मुताबिक न्याय देने की जिम्मेदारी तत्कालीन सरकार और उसके आधीन व्यवस्था की है कि वह एक निश्चित समय में निर्णय लेकर पीड़ित के साथ हुए अन्याय का निराकरण करे।

संघर्ष तब ही होता है जब कोई भी पक्ष मनमानी करने पर उतर आता है और तर्क, न्याय, कानून से लेकर संविधान तक को ताक पर रख देता है और धर्म, जाति, लिंग के आधार पर स्वयं फ़ैसला करने लगता है। यदि न्यायसंगत आधार पर निर्णय किया गया है तब संघर्ष की ज़रूरत नहीं है । यह आधार केवल संविधान के अनुसार बनाए गए कानून का ही हो सकता है। किसी भी अधिकार की मान्यता अथवा उसे अस्वीकार किया जाना न्यायप्रणाली का दायित्व हो जाता है कि वह धैर्य के साथ दोनों पक्षों को न्याय सुलभ कराने में सफल हो।

मानवाधिकारों का यह अर्थ नहीं है कि आप उसे अपने व्यक्तिगत और सामूहिक विरोध का आधार बनाकर अपनी मनमानी करें और कानून व्यवस्था को न मानें। उदाहरण के लिए बोलने की आजादी का मतलब यह नहीं कि जो मन में आया, वह कह दिया बिना इस बात पर ध्यान दिए कि उससे कानून के अंतर्गत मिले अधिकारों का अतिक्रमण तो नहीं हो रहा?  इसी तरह चलने फिरने, आने जाने की आज़ादी का अर्थ यह नहीं कि आप दूसरे के अधिकारों को नज़रंदाज़ कर रास्ते रोक दें, सड़कों पर जाम लगा दें और आवागमन के साधनों पर रुकावटें खड़ी कर दी जाएं।

कहीं भी रहने की आजादी का अर्थ यह नहीं कि दूसरों जीवों का जीना मुश्किल कर दिया जाए। कोई भी व्यवसाय या नौकरी करने का अर्थ यह नहीं कि अपराध, तस्करी करने लगें और देश की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर कर दें। इसमें स्थानीय कानून का वर्चस्व किसी भी मानवाधिकार पर माना जायेगा।

मानवाधिकार दिवस पर यह संकल्प तो लिया ही जा सकता है कि जहां हम अपने अधिकारों की सुरक्षा चाहते हैं, वहां दूसरों के लिए मुसीबतें न खड़ी करें क्योंकि मनमुटाव से शुरू होकर यह धार्मिक और जातिगत दंगों की नींव को ही मज़बूत करता है।

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