हमारे देश में अक्सर इस तरह के हालात बनने आम हो गए हैं जिनकी व्याख्या ही विवाद पैदा कर देती है।
असल में अंग्रेजी में इस सब के लिए एक ही शब्द है और वह है सेडिशन जिसे लेकर एक कानून उस अंग्रेज मैकाले ने बनाया था जिसने भारत में बाबू बनाने वाले शिक्षा नीति बनाई थी। हमारी राजभाषा हिंदी में इसके लिए दो अलग शब्द राजद्रोह और देशद्रोह हैं लेकिन अंग्रेजी परस्त सरकारों ने पुरानी नीति यानि सेडिशन कानून पर चलने में अपना कल्याण समझा। इसलिए जरूरी हो जाता है कि इसे विस्तार से समझा जाए।
राजद्रोह क्या है
जब राज्य हो या केंद्र की सत्तारूढ़ सरकार हो, उस के किसी काम से जनता में असंतोष हो, उसकी नीति जनविरोधी हो, सामान्य व्यक्ति के लिए जीवन के लिए आवश्यक चीजों का मिलना दूभर हो जाए, पीने का पानी गढ़े खोदकर निकालना पड़े, मीलों दूर जाना हो, साफ सफाई न हो, नालों की गंदगी ने नर्क बना दिया हो, हवा इतनी जहरीली हो कि सांस लेते ही बीमारियां घेर लें, सड़क ऊबडखाबड़ होने से दुर्घटना होना मामूली बात हो और इसी तरह की सभी चीजें जिनसे मानव जीवन प्रभावित होता हो।
कहने का मतलब यह कि एक नागरिक अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए तो उसे सरकार के खिलाफ बोलने, लिखने, इंसाफ की गुहार लगाने और जरूरी हो जाए तो आंदोलन करने का अधिकार हो और उसे देशद्रोह या अराजक मानकर सजा देने के बजाए उसकी परेशानियों को दूर करने वाले कदम उठाए जाएं।
इस बारे में कोई स्पष्ट नीति या कानून अथवा विधिसम्मत तरीका न होने से सरकार जिसकी लाठी उसकी भैंस पर चलती है जिसे मनमानी कहा जाता है।
उदाहरण के लिए जब सरकार अतिक्रमण करने पर बुलडोजर का इस्तेमाल करती है तो उन लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करती जिनकी शह पर या मिलीभगत से यह स्थिति हुई। राजद्रोह का पहला कानून यह बनना चाहिए कि जिस भी व्यक्ति, चाहे अधिकारी हो या नेता, के कार्यकाल में यह सब हुआ उस पर और अतिक्रमण करने वाले पर एक साथ दंडात्मक कार्रवाई हो।
इसी प्रकार मनुष्य के सामान्य जीवन जीने की राह में कांटे बिछाने वाले व्यक्ति के लिए कानून में स्पष्ट प्रावधान हों और किसी के भी इससे बचने की गुंजाइश न हो।
जिस दल के शासन में रिश्वत दिए बिना काम न होता हो, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में कोताही बरती जा रही हो, कुव्यवस्था का बोलबाला हो और अस्तव्यस्त्त हालात हों, यह राजद्रोह माना जाना चाहिए और इसके लिए सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए और कानून इस तरह बनाए जाएं कि दिमाग में यह भय समाया रहे कि इस तरह के किसी भी आचरण जिससे अपने पद का गलत इस्तेमाल सिद्ध होता हो, सख़्त सजा का प्रावधान हो, यहां तक कि मृत्यु दण्ड भी दिया जा सकता है।
इसमें मिलावट करने वाले, जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले शामिल हों और उनके किसी भी गैर कानूनी काम या कानून की धाराओं में किसी प्रकार की विसंगति होने से उसका फायदा उठाने और इससे आम नागरिक का जीवन प्रभावित हो तो यह राजद्रोह के दायरे में लाया जाए।
इसी तरह धर्म और जाति, परंपरा और रीति रिवाज तथा संस्कृति और भाषा के आधार पर बंटवारा करने की नीयत से किए गए किसी भी काम को राजद्रोह माना जाए। इसके लिए कड़े फैसले लेने में यदि सरकार संकोच करती है तो उसके विरुद्ध जनमत तैयार करने को राजद्रोह के दायरे से बाहर रखा जाए।
देशद्रोह क्या है
ऐसा कोई भी काम जिससे देश की अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्र के गौरव पर चोट लगती हो, वे सब देशद्रोह माना जाए। इसमें भारत से अलग होने की मांग या उसे तोड़ने के प्रयास अथवा विदेशी भूमि से देश को चुनौती देने और भारतीय नागरिकों की एकता को खंडित करने वाले किसी भी काम को इसके दायरे में रखा जाए।
इसी तरह देश का धन, संपत्ति और संसाधन किसी अन्य देश को सौंपने या ले जाने की साजिश हो या कोशिश, यह देशद्रोह है। इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति और उसकी मदद करने वाले दोनों ही पर देशद्रोह कानून के अंतर्गत कार्यवाही हो। इसमें किसी व्यक्ति का रुतबा, ताकत या उसके छल कपट से अर्जित सम्मान या धन दौलत को जब्त किए जाने का प्रावधान हो।
आधुनिक काल में मीडिया की भूमिका में टेक्नोलॉजी का महत्व बहुत बढ़ रहा है, इसका दुरुपयोग भी राष्ट्रद्रोह है। इस तरह की संभावनाओं को रोकने के लिए कानून में स्पष्ट धाराएं हों और जिस किसी पर भी देशद्रोह का आरोप लगाकर उसके खिलाफ कार्रवाई करने पर रोक लगाने की धारा हो, जब तक कि यह साबित न हो जाए। केवल संदेह और कानून की आड़ लेकर डराने धमकाने से लेकर गिरफ्तारी तक करने को देशद्रोह माना जाए और ऐसा करने वाले पर सख्त कार्रवाई हो।
देशद्रोह यह नहीं है कि किसी धार्मिक स्थल की असलीयत को चुनौती देने वाले के खिलाफ यह कानून लागू करने की छूट मिल जाए। राज सत्ता और धर्म सत्ता दो अलग अलग विचार धाराएं हैं। इन दोनों को मिलाने से ही ज्यादातर दंगे हुए हैं। यह किसी भी भारतीय के अस्तित्व को चुनौती देने के समान हैं और यही विवाद का कारण बनती है। यदि कोई व्यक्ति धर्म और राजनीति की मिलावट कर समाज में द्वेष और शत्रुता का वातावरण बनाता है तो यह देशद्रोह है।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर अराजकता क्या है तो इसकी भी व्याख्या राजद्रोह और देशद्रोह दोनों ही कानूनों में होनी चाहिए।
एक सवाल यह भी है कि क्या चुनाव के समय अपना वोट न डालना भी एक अपराध है ? जी हां, यह अपराध है क्योंकि इससे एक सही सरकार बनने में रुकावट आती है। इसके साथ यह भी सच है कि प्रत्येक वोटर के लिए वोट डालना कई बार संभव नहीं होता जैसे कि वोटर सूची में नाम दर्ज न होना, वोटर कार्ड की मान्यता वोट डालने के लिए न होना अथवा वोटर के निर्धारित तिथि पर अपने क्षेत्र में न होना।
ऐसी स्थिति में यह उस विभाग, अधिकारी या प्रशासन द्वारा किया गया देशद्रोह है जिसके कारण कोई वोटर अपना वोट डालने से वंचित रह गया। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कोई भी वोटर जहां भी हो, अपनी पहचान के आधार पर कहीं से भी अपना वोट डालने के अधिकार का इस्तेमाल कर सके। अब क्योंकि मतदान करते समय नोटा बटन दबाकर भी वोट दिया जा सकता है तो यह प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है कि वह उसका इस्तेमाल करे और फिर भी न करे तो यह भी देशद्रोह है।
सरकार क्योंकि अब देशद्रोह कानून को लेकर फिर से एक कवायद करने जा रही है तो बेहतर होगा कि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की राय सार्वजनिक तौर पर ली जाए और गंभीर चर्चा चाहे वह सदन में हो या बाहर, की जाय और तब ही कोई निर्णय हो। जिस तरह देश में संविधान समिति बनी थी उसी तरह की व्यवस्था राजद्रोह और देशद्रोह कानून बनाने में की जाए।
किसी एक व्यक्ति या राजनीतिक दल, चाहे वह कितना भी पुराना या विशाल हो, की सोच, विचारधारा या धारणा के आधार पर यह कानून नहीं बनाया जा सकता, यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतना ही बेहतर होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें