शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

लंदन की सैर का मतलब भारत से तुलना करना भी है

 

प्रत्येक भारतवासी के मन में कभी तो यह बात आती ही होगी कि आखिर अंग्रेज़ी सल्तनत में ऐसा क्या था कि उनका सूरज कभी डूबता नहीं था ? काफी समय से यह बात  मन में थी कि अगर मौका मिले तो एक बार इंग्लैंड ज़रूर जाया जाए और अपने पाठकों को इस मुल्क की सैर कराई जाए । मन में इच्छा थी और वह पूरी भी हो गई और सत्ताईस सितंबर को मुंबई से लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर कदम रख दिए।

सुबह साढ़े सात बजे प्लेन ने लैंड किया और औपचारिकताएं निभाते हुए बाहर आने में दो घंटे लग गए। यह हवाई अड्डा बहुत विशाल है लेकिन भारत के दिल्ली और मुंबई के हमारे भी इसके सामने कुछ कम नहीं लगे। टैक्सी से केंसिंगटन में होटल तक की दूरी तय करने के दौरान इस आधुनिक शहर की झलक मिलने लगी। साफ़ सुथरी सड़कें, यातायात एकदम व्यवस्थित और उससे भी अधिक अनुशासित ढंग से अपने आप चल रहा था। अपनी लेन में चलना है, क्रॉसिंग पर सिग्नल का पालन ज़रूरी है और अगर जल्दबाजी या लापरवाही हुई तो कैमरे की निगाहें आप पर हैं। इसीलिए दुर्घटनाएं न के बराबर होती हैं।

हमारे यहां अभी केवल कुछ ही शहरों में और वह भी खास जगहों पर चालान कटने का डर होने से ट्रैफिक ठीकठाक तरीके से चलता है। वरना तो ज्यादातर जगहों पर नियम पालन करना अपनी हेठी समझी जाती है । कानून के डर के बिना जब तक ट्रैफिक नियम मानने की आदत नहीं बनती और सब कुछ चलता है जैसी मानसिकता रहती है तो सुधार होना ज़रा कठिन है।


यातायात

लंदन में आने जाने के लिए अंडरग्राउंड ट्यूब रेल है जो यहां की लाइफलाइन है, कहीं से कहीं भी जाना बहुत आसान है और वह भी निश्चित समय में। कई स्टेशनों पर नीचे से ऊपर पंद्रह बीस मंजिल तक रेल चलती है । इन स्टेशनों पर लिफ्ट की व्यवस्था है और पैदल इतना ऊपर चढ़ना उतरना परेशानी का कारण बन सकता है, इसकी चेतावनी दी जाती है।

दुनिया की पहली अंडरग्राउंड रेल की शुरुआत लंदन में सन 1863 में सड़कों पर भीड़भाड़ कम करने के लिए हुई थी । तब स्टीम इंजन का जमाना था। उसके बाद इलेक्ट्रिक पावर और लिफ्ट्स का इस्तेमाल शुरू हुआ और 1908 से 1930 तक इसका काफी विस्तार हो गया। इस रेल को चलते हुए 160 वर्ष हो जायेंगे। अब इसकी 11 लाईन हैं और 402 किलोमीटर तक 270 स्टेशनों के बीच फैलाव है। प्रतिदिन पचास लाख यात्री इनमें सफर करते हैं।


दर्शनीय स्थल

लंदन में वेस्टमिंस्टर एक तरह से शहर का केंद्र है। यहां विशाल और अद्भुत कारीगरी, अनोखी वास्तु कला तथा प्राचीन इतिहास की गवाह एक शानदार इमारत के रूप में बना चर्च वेस्टमिंस्टर एबे है। यह सन 1066 से राजशाही और राजतिलक की परंपरा निभा रहा है। अब तक यहां 17 मोनार्क अंतिम विश्राम कर चुके हैं। इनके अतिरिक्त बहुत से गणमान्य और प्रभावशाली और बड़ी हैसियत रखने वाले भी यहां मरने के बाद शान से अपने अपने रुतबे के मुताबिक आराम फरमा रहे हैं । यह पहले काफी छोटी जगह थी । हेनरी तृतीय ने सन 1245 में वर्तमान निर्माण शुरू कराया जो सोलहवीं शताब्दी तक चला। यहां शाही घराने के विवाह भी संपन्न हुए हैं । यहां का प्रशासन किसी आर्चबिशप या बिशप के पास नहीं बल्कि यह सीधे राजसिंहासन के अधिकार क्षेत्र में है।

इस इलाके में यहां की संसद है। इस के साथ थेम्स नदी की सैर भी क्रूज से की जा सकती है। क्रूज से यात्रा के दौरान लंदन ब्रिज, लंदन आई और आसपास की सामान्य ऊंचाई से लेकर बहुमंजिली शानदार इमारतों को देखते हुए वापिस आया जा सकता है।

यहां पार्लियामेंट स्क्वायर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित है। यहीं पर सबसे आगे विंस्टन चर्चिल का विशालकाय बुत भी है जिसे देखकर याद हो आया कि यही वह शख्स था जिसने भारत विभाजन की रूपरेखा तैयार की थी और लॉर्ड माउंटबेटन को अपनी योजना को अमल में लाने के लिए भेजा था। पीछे खड़े गांधी जी भी उसके इरादों को भांप नहीं पाए। वह तो नेहरू और सबसे अधिक सरदार पटेल थे जिन्होंने चर्चिल के मंसूबों को कामयाब नही होने दिया।  एक बार फिर वह घटनाक्रम घूमने लगा जिसमें स्वतंत्र कहलाकर भी अंग्रेजों की गुलामी करने की गंदी राजनीतिक चाल चली गई थी जो सफल न हो सकी, बेशक उसके लिए बहुत कुछ कुर्बान करना पड़ा।

हमारे नेताओं की समझदारी से देश एक कुचक्र से तो बच गया लेकिन दो टुकड़ों में बांट दिया गया। यह भी चर्चिल की ही सनक थी कि दो अलग देश होकर भी एक दूसरे के विरोधी बने रहें।

सहूलियत वाला शहर

लंदन में भी कभी वायु और जल प्रदूषण हुआ करता था। अब यह बीते दिनों की बात हो गई है। यहां की हवा साफ और सांस लेने पर ताज़गी का अहसास कराती है। थोड़े थोड़े अंतराल पर बहुत से पार्क हैं, उनमें घने पेड़ हैं, रंग बिरंगे फूलों की छटा देखते ही बनती है। नल से साफ पीने का पानी मिलता है।

बकिंघम पैलेस के आसपास और सामने के पार्क में रानी एलिजाबेथ को श्रद्धांजलि देते हुए लोग एक निश्चित स्थान पर फूलों के गुलदस्ते रख जाते हैं। यहां सामने जेम्स पार्क में एक नहर है जिसमें जलपक्षी तैरते रहते हैं। बहुत ही सुन्दर और मनोहारी दृश्य है। पैदल सैर करने वाले लोग बढ़ते जा रहे हैं, हल्की सी ठंडक अनुभव होने से मौसम के बदलाव का संकेत मिल रहा है।

यह शहर प्राचीन वैभव, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक होने के साथ आधुनिक शिक्षा, विज्ञान और साहित्य का भी केंद्र है। वास्तुकला की दृष्टि से यहां के घर अपनी विशिष्ट पुरातन शैली के हैं। उन्हीं के साथ जब बाजार का रुख करते हैं तो वर्तमान शैली के भवन दिखाई देते हैं। प्राचीन और नवीन का संगम अपनी अनोखी अदा से इठलाता नज़र आता है जैसे दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हों।

असल में यही अंग्रेजी शासन का मुख्य आधार रहा है। वे जहां भी गए और शासन की बागडोर अपने हाथ में ली तो उन्होंने उन सब चीजों के साथ तालमेल बिठाने को प्राथमिकता दी जिससे उनके लिए लोगों में विश्वास पैदा हो और वे उन्हें आक्रांता समझने के बजाय मित्र समझें।

भारत पर उनके शासन की जड़ें जमाए रखने में अंग्रेजों की यही तरकीब कामयाब हुई और बहुत से भारतीयों  ने उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में भलाई समझी। अंग्रेज़ तो मुट्ठी भर थे लेकिन साथ हमारे ही लोगों ने दिया।  इसका लाभ हुकूमत ने यहां लोगों को आपस में फूट डालकर राज करने की नीति अपनाकर लिया।

लंदन एक खूबसूरत शहर है, इसमें दो राय नहीं लेकिन इसके साथ साथ यह अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के लोग दूसरों के साथ व्यवहार करते समय एक हो जाते हैं और अपने मतभेद भुला देते हैं। यहीं से इनकी असली मंशा शुरू होती है।  यह एक ओर अपने व्यवहार से अपना बनाए रखते हैं और दूसरी ओर अपनी होशियारी से उनका सब कुछ कब्जाने में सफल हो जाते हैं। इसका प्रमाण यह है कि लंदन में जितने भी म्यूजियम, संग्रहालय और गैलरी हैं उनमें दुनिया भर

से लाई गई नायाब चीजें हैं जिनमें भारत का कोहिनूर हीरा भी है।

कहना होगा कि लंदन समावेशी शहर है। यहां कई जगह पर स्थानीय आबादी से ज्यादा दूसरे देशों से पढ़ने, नौकरी, व्यवसाय या व्यापार करने के लिए आए लोग बस गए हैं। अचानक कोई अपनी भाषा में बात करने लगे तो सुखद आश्चर्य होता है। उसके बाद तो बातों बातों में भारत के किसी भी प्रदेश से यहां आकर बसे हों, अपनेपन के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है जो एक यादगार क्षण रहता है।   


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