यह सही है कि हम अंग्रेजों की हुकूमत सह रहे थे और कितने ही संकल्पों और बलिदानों के बाद स्वतंत्र हुए लेकिन उतना ही बड़ा सच यह है कि आज भी ब्रिटेन एक आम भारतीय को यहां आकर रहने, नागरिकता प्राप्त करने के लिए लालायित करता रहता है।
यात्रा वृत्तांत
इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड के संयुक्त रूप ग्रेट ब्रिटेन की यात्रा एक सैलानी के रूप में करने पर अनेक बातें मन में उमड़ती घुमड़ती रहीं। इनमें सबसे अधिक यह था कि आखिर कुछ तो होगा जो अंग्रेज हम पर सदियों तक शासन कर पाए !
इसका जवाब यह हो सकता है कि इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि यहां शताब्दियों से शिक्षा की ऐसी व्यवस्था स्थापित होती रही थी जो विद्यार्थी हो या जिज्ञासु, उसे किसी भी विषय के मूल तत्वों को समझने और फिर जो उलझन है, समस्या है, उसका हल निकालने का सामथ्र्य प्रदान करती है।
पूरे देश में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का जाल फैला हुआ है और दुनिया का कोई भी विषय हो, यहां उसे पढ़ने का प्रबंध है और यही नहीं उसमें पारंगत होना लक्ष्य है। उद्देश्य यह नहीं कि इसका गुणगान किया जाए लेकिन वास्तविकता आज भी यही है और तब भी थी जब हमारे देश के गुलामी की जंजीरों को काटना सीखने से पहले भारतीय यहां पढ़ने आते थे। इनमें बापू गांधी, नेहरू, बोस भी थे तो वर्तमान दौर के अमृत्य सेन भी है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को देखने से लगता है कि जैसे एक पूरा शहर ही शिक्षा का केंद्र हो। यहां के भवन, क्लासरूम, पुस्तकालय इतने भव्य और विशाल हैं कि भारत में उनकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। विद्यार्थियों की लगन भी कमाल की है। सदियों से यहां शोध के लिए संसार के सभी देशों से लोग पढ़ने आते रहे हैं। हमारी गाईड ने एक किस्सा बताया कि जब बिजली नहीं थी तो दोपहर तीन बजे अंधेरा होने से पहले लाइब्रेरी बंद हो जाती थी। एक बार कुछ विद्यार्थी यहां पढ़ते पढ़ते सो गए और दरवाजे बंद होने का उन्हें पता नहीं चला। रात भर में उनके शरीर ठंड से अकड़ गए और सुबह मृत मिले। तब न बिजली थी, न हीटर और न आज की तरह एयरकंडीशन।
जहां तक यहां की शिक्षा प्रणाली है, उसके बारे में इतना कहना काफी है कि यह विद्यार्थियों को ब्रिटेन के तौर तरीके सिखाती है और जो कुछ पढ़ा है उसका पूरा लाभ केवल इसी देश में मिल सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि जो पढ़ने आयेगा, वह शिक्षित होकर यहीं का होकर रहने और अंग्रेजों की प्रशासन व्यवस्था का एक अंग बन जाने को प्राथमिकता देते हुए यहीं बस जायेगा। उसकी पढ़ाई लिखाई की पूछ या उपयोगिता उसके अपने देश में बहुत कम होने से वह लौटने के बारे में नहीं सोचता। यहीं नौकरी, फ़िर शादी भी किसी अपने देश की यहां पढ़ने वाली या स्थानीय लड़की से कर गृहस्थी बसा लेगा। अपने मातापिता को, अगर यह चाहे और वे भी आना चाहें, तो बुला लेगा वरना ख़ुद मुख्तार तो वह हो ही जाता है।
कोई भी भारतीय अपने बच्चों को यहां पढ़ने भेजने से पहले यह सोच कर रखे कि काबिल बनने के बाद वे भारत लौटकर आने वाले नहीं हैं। इसका कारण यह कि उसे पढ़ाई के दौरान पार्ट टाइम जॉब करने की सुविधा होती है, स्कॉलरशिप हो तो और भी बेहतर और सबसे बड़ी बात यह कि नौकरी के अवसर बहुत मिलने लगते हैं। अपने देश में न इतनी जल्दी नौकरी मिलेगी और न ही यहां जितना वेतन और सुविधाएं।
यहां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए लोग बहत अधिक हैं। जहां हमारे देश से पढ़ने के लिए आते हैं, वहां दूसरे देशों से कोई भी काम, जैसे टैक्सी ड्राइवर, खानसामा, वेटर या जो भी मिल जाए, करने वाले आते हैं।
ब्रेन ड्रेन रुक सकता है
यह सोचना काफ़ी हद तक सही है कि यदि यहां पढ़ने के बाद भारतवासी लौट आएं और नौकरी, व्यवसाय करें तो देश की अर्थव्यवस्था में कितना फर्क पड़ेगा। इसके विपरीत भारत सरकार ने अभी हाल ही में समझौता किया है जिसमें भारत से आने वालों को यहां की नागरिकता प्राप्त करने को बहुत आसान बना दिया गया है। होना तो यह चाहिए कि शिक्षा पूरी होने के बाद उसका अपने देश लौटना अनिवार्य हो ताकि भारत का जो उस पर धन लगा है, उसकी भरपाई हो सके।
यहां शिक्षित व्यक्ति को नौकरी या व्यवसाय करने के लिए सरकार को विशेष योजना बनानी होगी ताकि ब्रिटेन में नौकरी करने का उसके लिए विशेष आकर्षण न हो। यहां गोवा, गुजरात, पंजाब से आए लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं। लंदन, ब्रिस्टल, मैनचेस्टर, कार्डिफ, एडिनबरा, ग्लासगो जैसे शहरों में दूसरे देशों से आए लोग सभी जगहों पर मिल जायेंगे। भारतीय खाने के शौकीन अंग्रेज़ इंडियन रेस्टोरेंट में अक्सर देखने को मिल जायेंगे। हाथ से खाने की आदत नहीं तो रोटी का टुकड़ा दाल या सब्जी में डुबोकर खाते देखना मनोरंजक है, ठीक उसी तरह जैसे कांटे छुरी से खाने का अभ्यास।
लंदन में मैडम टुसाद के संग्रहालय में विश्व के नामचीन लोगों के मोम से बने पुतले आपनी तरह की कारीगरी की बढ़िया मिसाल है। धोखा होता है कि कोई जीवित व्यक्ति तो नहीं खड़ा, उसका चेहरा जैसे कि बस अभी बात करने लगेगा। पुतले बनाने की विधि भी बताई जाती है।
यहां का एक दूसरा आकर्षण हैरी पॉटर म्यूज़ियम है जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को आकर्षित करता है। सिरीज़ बनाने में कितनी मेहनत और कितनी तैयारी करनी पड़ती है, उसका सूक्ष्म विवरण यहां देखने और समझने को मिलता है।
लंदन से कुछ दूरी पर बाथ स्पा शहर है। यहां रोमन स्नानागार अपने प्राचीन रूप में देखने को मिल जायेंगे। उस समय की संस्कृति की झलक दिखाई देती है।
ब्रिटेन में जहां एक ओर विशाल और भव्य गिरिजाघर या कैथेड्रल हैं, जिन्हें देखकर इसकी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का पता चलता है, दूसरी ओर प्राकृतिक सौंदर्य के बेशुमार स्थल हैं। रोची नदी का विशाल पाट अपनी गंगा या नर्मदा जैसा लगता है। निर्मल जल, कभी शांत तो कभी अपने उग्र रूप में बहता हुआ, नाव या क्रूज की सैर को रोमांचक बना देता है।
स्कॉटलैंड को व्हिस्की का देश भी कहा जाता है। सत्रहवीं सदी की डिस्टलरीज आज भी शराब बना रहीं हैं जो पूरी दुनिया में अपने शौकीनों की प्यास बुझा रहीं हैं। मदिरा पीने का अपना अलग अंदाज़ है, उसके स्वाद, महक और रंग रूप का विवरण मोहक है। जौ, पानी और यीस्ट का इस्तेमाल कर बनाई जा रही मदिरा को बनते हुए देखना अपने आप में एक अनुभव है।
यहां के हरे भरे वन, बर्फ से ढकी चोटियां और नंगे पर्वत तथा मैदानी इलाकों का सौंदर्य देखते ही बनता है। दूर तक फैली हरियाली, हल्की बारिश और तेज हवा के झोंके ठंडक का एहसास कराते हैं। सारांश यह कि ग्रेट ब्रिटेन की सैर रोमांचक, शिक्षाप्रद और शानदार रही, यह तो कहा ही जा सकता है।
सच यह भी है कि अंग्रेज़ हमारे बौद्धिक, अद्योगिक और व्यापारिक संसाधनों का तब भी शोषण करते थे, जब यहां शासन करते थे। आज भी हमारे युवाओं को अपनी समृद्धि के लिए इस्तेमाल करते हैं। पहले यहां से कृषि और उद्योग के लिए रॉ मेटीरियल मुफ्त ले जाते थे और उनसे बने उत्पाद हमें ही बेचते थे, आज उच्च शिक्षा के नाम पर हमारे कुशाग्र और परिश्रमी युवाओं को लुभाते हैं। आश्चर्य होगा यदि जैसे तब विदेशी वस्तुओं के खिलाफ़ आंदोलन हुआ था, आज भी ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त कर वहीं न बस जाने को लेकर कोई मुहिम शुरू हो।
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