शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

दिन अशुभ हो, क्या इसकी कामना की जा सकती है ?

आम तौर पर इस बात की उम्मीद की जाती है कि दूसरे आप के लिए आपका दिन शुभ रहने की बात कहें, ऐसे संदेश भेजें जिनसे लगे कि वे शुभचिंतक हैं, जब कुछ कहीं से खरीदें तो सामान तो मिले ही, साथ में बेचने वाला शुक्रिया कहे। परंतु यदि विक्रेता मुस्कराते हुए कहे कि आपका दिन अशुभ हो तो अटपटा लगना स्वाभाविक है।


अजब गजब संसार

इंटरनेट पर कुछ न कुछ खोजने की आदत सी पड़ गई है। ऐसे ही निगाह पड़ी कि एक दंपति ने न जाने किस परिस्थिति में एक दिन जो 19 नवंबर था, दूसरों को उनका दिन अशुभ होने की कामना करने की शुरुआत कर दी। यह अटपटा तो था लेकिन अपने अंदर छिपी भावनाओं को बिना किसी लागलपेट के कहने का साहस भी लगा। 

अब यह जरूरी तो नहीं कि मन में प्रत्येक व्यक्ति के लिए उनके दिन के शुभ होने की कामना की जाए। दुकानदार या वस्तु विक्रेता द्वारा उसके यहां से कुछ खरीदने पर ग्राहक का दिन खराब होने या अशुभ होने की मुस्कराते हुए की गई कामना अजब है तो गजब भी है और वह भी चेहरे पर मुस्कान के साथ।

अक्सर हम बिना बात किसी को भी और विशेषकर आधुनिक दौर में उसके दिन के शुभ होने की कामना करते हैं । व्हाट्सएप, फेसबुक और दूसरे संवाद साधनों को खोलते ही न जाने किस किस से दिन भर खुश रहने के संदेश मिलते रहने से एक तरह की खीज सी होती है।  कोई काम की बात तो की नहीं, बस शुभ प्रभात, आपका दिन शुभ हो, आप खुश रहें जैसे संदेश और साथ में कैसी भी फोटो जिसका कोई मतलब समझ नहीं आता। इसे मिटाने या डिलीट करने का मन करता है। कुछ ग्रुपों में यह ताकीद भी होती है कि इस तरह के संदेश न भेजें जाएं क्योंकि यह सब एक जैसे होते हैं और इन्हें पढ़ना समय नष्ट करना है।


भगवान भला करे

भारतीय संस्कृति में किसी के अपमान करने, बुरा भला कहने पर या फिर लड़ाई झगड़ा टालने के लिए यह कहने की परंपरा है कि भगवान तेरा भला करे। मतलब कि मेरे साथ अच्छा नहीं किया तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी तरफ से बात समाप्त, अब जो भी है वह ईश्वर या ऊपर वाला है, वह देख लेगा। इस एक वाक्य, इच्छा या कामना से किसी विवाद का अंत न भी हो पर उसकी शुरुआत तो हो ही जाती है। हो सकता है कि वक्त गुजरने के साथ मन की कटुता और बदला लेने की भावना अपने आप धीरे धीरे कमजोर पड़ते हुए गायब ही हो जाए।

जीवन में यह संभव नहीं कि उतार चढ़ाव न हों, इसी लिए कहा जाता है कि वक्त के गुजरने का इंतजार किया जाए। जब समय एक जैसा रहना ही नहीं तो फिर सुख हो या दुःख, क्या अंतर पड़ता है! अगर यह न हो तो जिंदगी एकदम सपाट हो जाएगी, न कोई उत्साह, रोमांच या कुछ नया होने का इंतजार, क्या ऐसा जीवन बोरियत से भरा नहीं होगा ?

इसे इस तरह भी लिया जा सकता है कि जो होने वाला है, उसके बारे में अनुमान तो लगाया जा सकता है लेकिन निश्चित कुछ नहीं कहा जा सकता। यही स्थिति मनुष्य को कुछ न कुछ करते रहने के लिए बाध्य करती रहती है और अगर यह न हो तो जीवन नीरस हो जायेगा जिसे जीने को भी मन नहीं चाहेगा। जब तक मन में यह बात रहती है कि ऊंट किस करवट बैठेगा, तब तक जिंदगी जीने लायक लगती है।

यह एक मनोरंजक स्थिति है कि मन में कुछ और हो और कहना या करना कुछ और पड़े तो सोच कैसी होगी ? ऐसे क्षण अक्सर आते हैं जिनमें चाह कर भी अपनी वास्तविक भावनाओं को व्यक्त करना तो दूर, ऐसा सोचते हुए भी डर लगता है कि अगर गलती से भी यह प्रकट हो गया कि हमारे मन में क्या है तो न जाने कैसा तूफान आ जाएगा। और यही डर हमसे वह करा लेता है जो हम करना नहीं चाहते। शायद ऐसी ही स्थिति रही होगी जब उस दंपति ने शुभ की जगह अशुभ दिन होने की कामना करने की शुरुआत की। कहा जा सकता है कि यह एक तरह से अपने मन में छिपे अंजाने भय से मुक्ति पाने की क्रिया है जो  अक्सर सही समय पर सही बात कहने के लिए तैयार करती है।


न कहने या करने की हिम्मत

यदि इस बात को व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो एक तरह से अपने मन में जो कुछ भी हो, उसे कहने की हिम्मत आ जाए तो बहुत से ऐसे निर्णय लेना आसान हो जाएगा जिनके बारे में मन में दुविधा या संशय रहता है।

मान लीजिए, परिवार के बीच कोई मतभेद है और संकोचवश मन की बात कह नहीं पा रहे हैं तो उससे मिलने वाले लाभ या हानि का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इसी तरह नौकरी, व्यापार या कोई सौदा करते समय अपनी बात रखने में हिचकिचाहट हो गई तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। आपके बारे में गलत राय बन सकती है जो आगे चलकर किसी बड़ी परेशानी या चुनौती का कारण बन सकती है। क्षण भर की चुप्पी जीवन का जंजाल बन सकती है।

इसका और भी विस्तार करें या देशव्यापी संदर्भ में देखें तो व्यक्ति के चुप रह जाने से राजनीति में गलत व्यक्ति का चुनाव हो जाता है। हमारा भ्रम हानिकारक हो जाता है और जो चतुर और चालाक है, वह अयोग्य होते हुए भी हम पर शासन करता है। यहीं से रिश्वत लेने देने तथा भ्रष्ट होने की शुरुआत होती है।  यही स्थिति अगर परिवार में हो तो उसके बिखराव का कारण बन जाती है। अपने ही घर में बेगाना होने का एहसास अनेक समस्याओं को जन्म देता रहता है जिसका परिणाम परिवार में बंटवारा ही होता है।

इस दिन को यदि सही ढंग से मनाया जाए और चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा, बिना मुंह बनाए या नाक भौं सिकोड़े, हलकी सी मुस्कान के साथ जो सोचते हैं, वह कह दिया जाए तो मन में अफसोस नहीं रहेगा। इससे सामने कुछ और, पीछे उसके विपरीत आचरण करने से भी मुक्ति मिल जाएगी।


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