अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्रह दिसंबर को एक ऐसा दिवस मनाया जाता है जिसका संबंध वेश्यावृत्ति व्यवसाय को आदर और सम्मान दिलाना तथा इसमें शामिल व्यक्तियों के जीवन को सुरक्षित बनाना है । अमेरिका के सीएटल में ग्रीन रिवर किलर रूप में कुख्यात व्यक्तियों द्वारा वेश्याओं की बेरहमी से हत्या की घटनाएं इसकी प्रेरक थीं। सन 2003 से यह दिन सेक्स वर्करों, उनकी पैरवी करने वालों, मित्रों और परिवारों द्वारा मनाया जाता है।
वेश्यावृत्ति के प्रति नज़रिया
वेश्याओं के साथ हिंसक व्यवहार के खिलाफ़ यह दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि दुनिया भर में इस व्यवसाय में लगे लोगों के प्रति नफ़रत दूर करने और उनके साथ दुव्र्यवहार और भेदभाव करने से लेकर हिंसक बर्ताव करने की मानसिकता को कम करते हुए समाप्त किया जा सके। आम तौर से इनके साथ हुई मारपीट, हिंसा और हत्या की घटनाएं सामाजिक चेतना के अभाव में उजागर नहीं हो पातीं और अपराधी को कोई दंड नहीं मिलता।
वास्तविकता यह है कि हम चाहे जो भी कहें, इस व्यवसाय में लगे लोग हमारे आसपास रहने वाले समाज और परिवारों से ही आते हैं। लाल छतरी इनके अधिकारों का एक महत्वपूर्ण चिह्न है और इसका चलन सबसे पहले इटली के वेनिस शहर में सेक्स वर्करों द्वारा सन 2001 में किया गया था। उसके बाद इसे व्यापक रूप से मान्यता मिली।
भारत में वेश्यावृत्ति का इतिहास बहुत पुराना है और राजा महाराजा, नवाब और समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा मान्यता भी मिली। इन्हें नर्तकी, गणिका, देवदासी तथा अन्य जो भी अनेक नाम दिए गए, समाज और परिवार में इनके प्रति घृणा कम नहीं हुई। इनका शोषण, इनके साथ अपमानजनक और अमानवीय व्यवहार तथा हर किसी का इन्हें दुत्कारा जाना, हमेशा से मामूली बात समझा गया।
हमारे देश में ऐसे बहुत से शहर, कस्बे और गांव हैं जहां वेश्यावृत्ति एक व्यवसाय है । परिवार के लोग अर्थात पिता और भाई ही इसे चलाते हैं।
गुजरात का वाडिया गांव जो राजस्थान की सीमा से लगे उत्तरी गुजरात के बनासकांठा ज़िले में है, वहां सरानिया घुमंतु कबीले के पुरुष अपने परिवार की महिलाओं का सौदा करते हैं और लड़कियों को छोटी उम्र से ही वैश्या बनने और लड़कों को इनके लिए ग्राहक ढूंढने का प्रशिक्षण देते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का नटपुरवा गांव है जहां बच्चों को उनके पिता का नाम नहीं मालूम और वे अपनी मां के नाम से जाने जाते हैं। कर्नाटक में बेल्लारी और कोप्पल जिले में देवदासी बस्ती है जहां कन्या के कौमार्य की नीलामी होती है। हालांकि 1982 में देवदासी प्रथा को समाप्त कर दिया गया था लेकिन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में आज भी यह प्रचलन में है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में यह व्यवसाय अनेक रुकावटों के होते हुए भी प्रचलित है और पनप रहा है।
व्यवसाय के रूप में मान्यता
भारत में इस व्यवसाय में लगे पुरुषों और महिलाओं की संख्या कितनी है, इसके बारे में कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने इसे एक व्यवसाय के रूप में हाल ही में मान्यता दी है और पुलिस को हिदायत दी है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से इस व्यवसाय में है तो उसके काम में दखलंदाजी न करे और उसे अपराधी न माने।
किसी भी व्यक्ति को वयस्क होने पर अपनी रजामंदी से यह व्यवसाय करने का अधिकार है। उसे भी किसी अन्य व्यक्ति की तरह सुरक्षा, आदर और सम्मान पाने का कानूनी अधिकार है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि इससे उन लोगों को भी राहत मिलेगी जो नारी शोषण और उन्हें इस धंधे में जबरदस्ती या लालच देकर धकेलने के लिए जिमनेदार हैं।
गैरकानूनी न होते हुए भी वेश्यावृत्ति के अंतर्गत आने वाली बहुत सी गतिविधियां दंडनीय है जैसे कि दलाली और वेश्यालय के लिए किराए पर जगह देना।
असल में हमारे देश में वेश्यावृत्ति को लेकर कोई प्रभावी कानून नहीं है जिसके कारण जिसके जो मन में आता है, किसी भी न्यायिक फैसले का अर्थ लगा लेता है। सबसे अधिक असर उन बच्चों पर पड़ता है जो ऐसे माहौल में परवरिश पाते हैं जिसमें उनके साथ भेदभाव होना सामान्य बात है। उनकी शिक्षा का कोई प्रबंध न होने से वे इसी काम में लग जाते हैं। पुलिस और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा छापे की कार्यवाही से इन बच्चों को कुछ राहत मिलती है और एक उम्मीद होती है कि इनका जीवन बेहतर हो।
इस पेशे को अपनी मर्ज़ी या किसी मजबूरी से अपनाने वाले व्यक्तियों के लिए शिक्षा और किसी प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण का प्रबंध होने से ही उनका जीवन बदल सकता है। इसके लिए कुछ ऐसा कानून बनाने की दिशा में पहल की जानी चाहिए कि यदि इस व्यवसाय को छोड़कर कोई महिला कुछ और करना चाहती है और अपनी संतान का भविष्य बनाना चाहती हैं तो उसे सरकार तथा सामाजिक संगठनों द्वारा आर्थिक सहायता मिले। उसके लिए पुनर्वास योजना बनाई जाए और इस तरह का वातावरण बने कि वह सामान्य जीवन जी सके। उसके नाम के साथ जुड़ा सेक्स वर्कर का ठप्पा हटे और गलत काम करने का एहसास हावी न रहे।
यह भी आवश्यक है कि जिन कारणों से कोई महिला इस व्यवसाय को अपनाती है, उन्हें दूर किया जाए। सबसे पहले यह बात आती है कि यदि बहका फुसला कर, दवाब डालकर, लोभ लालच देकर कोई व्यक्ति किसी महिला को इस व्यवसाय में आने के लिए मजबूर करता है तो उसे सज़ा का डर हो। देखा जाए तो हमारे यहां महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को लेकर बहुत से कानून हैं लेकिन उनके प्रावधान इतने लचीले और भ्रम पैदा करने वाले हैं कि दोषी व्यक्ति बच जाता है और जो प्रताड़ित है, साधनहीन है, वह फंस जाता है और सज़ा पाता है।
वेश्यावृत्ति के पनपने का सबसे बड़ा कारण नैतिक मूल्यों का ह्रास, सामाजिक चेतना का अभाव, गरीबी और अशिक्षा है। यदि इस दिशा में काम किया जाए तो इस व्यवसाय को अपनाने के प्रति आकर्षण सहज रूप से कम होते हुए एक दिन पूरी तरह समाप्त हो सकता है। अभी इसे जो अपनाते हैं, उनके लिए यह बहुत आसान लगता है और अधिकतर लोगों के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
बहुत से देशों में यह व्यवसाय सम्मानजनक और कानूनी मान्यता तथा संरक्षण प्राप्त है। सेक्स वर्करों के बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की व्यवस्था है। इन्हें सामाजिक सम्मान प्राप्त है और इनके साथ जबरदस्ती या हिंसक व्यवहार करने पर दण्ड दिया जाता है। इन्हें एक इंसान की तरह देखा जाता है और इनके साथ अपमानजनक शब्द इस्तेमाल नहीं किए जा सकते।
हमारे देश में भी कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इस व्यवसाय के प्रति आकर्षण समाप्त हो। जिन्होंने इसे अपनाया है, उनके प्रति इंसानियत का नज़रिया हो और उन्हें सहज रूप में सामान्य नागरिक अधिकार मिलें।
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