शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

उपभोक्ता क़ानून में सरकारी अनिवार्य सेवाए भी शामिल हों


प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को उपभोक्ता दिवस मनाये जाने का चलन है। सरकार तथा कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों द्वारा इसे मनाने की ख़ानापूर्ति भी की जाती है। लगभग साढ़े तीन दशक हो गये उपभोक्ता क़ानून बने और तीन साल पहले क़ानून में परिवर्तन भी हुए। हालाँकि उपभोक्ताओं के लिए ये क़ानून काफ़ी अच्छा रहा और और इसके कारण बहुत से लोगों को अपने साथ हुई धोखा धड़ी और जालसाजी से राहत भी मिली लेकिन फिर भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके बारे में बात करना ज़रूरी है।

सबसे पहले तो यह समझना होगा कि एक उपभोक्ता एक करदाता भी है और अगर वह इनकम टैक्स नहीं देता तो भी अनेक प्रकार के टैक्स चुकाता है, मतलब यह कि सरकार को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अवश्य देता है। इसलिए सरकार से बिजली, पानी, सड़क, परिवहन जैसी ज़रूरी सुविधाएँ पाने से वह एक उपभोक्ता है और अगर उनमें कोई ख़ामी पाई जाती है वह भी उसके उपभोक्ता अधिकारों के अंतर्गत आती है।मान लीजिए सड़क पर प्रशासन की लापरवाही से गड्ढे, नालों की सफ़ाई न होने से बदबू, धुएँ से सांस लेने में दिक़्क़त, गंदा पानी पीने से बीमारी, दुकानदारों द्वारा फुटपाथ का अतिक्रमण करने से चलने में परेशानी और इसी तरह की दूसरी असुविधाएं होती हैं तो एक उपभोक्ता होने के नाते प्रत्येक नागरिक को मुआवज़ा पाने का अधिकार है। इसी के साथ संबंधित विभाग तथा उसके कर्मचारियों पर जुर्माना लगाने और उन्हें सज़ा देने का प्रावधान होना चाहिए।

इसी तरह स्वास्थ्य सेवाएँ हैं। सरकार द्वारा नागरिकों को अपनी ओर से निःशुल्क सेवाएँ दी जाती हैं। अस्पताल में मुफ़्त इलाज की सुविधा है। यदि इसमें कोई ख़ामी पाई जाती है तो कोई राहत नहीं मिलती क्योंकि इसके लिए पैसे नहीं दिए गये। यह ग़लत है क्योंकि वह करदाता होने से उपभोक्ता है।

तीन वर्ष पहले जो नया उपभोक्ता क़ानून बना है उसमें पहले की भाँति सभी नियम हैं लेकिन जो बदलाव किए गये हैं वे महत्वपूर्ण होने के साथ असरदार भी हैं बशर्ते कि उनके मुताबिक़ काम हो। कहीं उनका भी हश्र दूसरे बहुत से क़ानूनों की तरह न हो जो जनता की भलाई के लिए होने के बावजूद उन पर सही से अमल न होने से बेकार हो जाते हैं।

उपभोक्ता क़ानून की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसमें ऑनलाइन शॉपिंग में धोखा होने पर उपभोक्ता को न्याय दिलाने के लिए व्यवस्था है जिससे निर्माता, विक्रेता और डिलीवरी करने वाली इकाई, तीनों पर क़ानूनी कार्यवाही की जा सकती है। आजकल डिजिटलीकरण के युग में और ट्रैफिक तथा भीड़भाड़ के कारण लोगों की रुचि ऑनलाइन ख़रीदारी में तेज़ी से बढ़ रही है। यह सुगम तरीक़ा है लेकिन ख़तरे भी हैं और जालसाज़ी की गुंजाइश रहती है, इसलिए केवल उन्हीं वेबसाईट का इस्तेमाल करें जो अधिकृत हैं और जिन पर भरोसा किया जा सकता है। इसमें चूक होने पर क़ानून भी बहुत कम मदद कर पाएगा।

इसके अतिरिक्त अब वह सेलिब्रिटी भी ज़िम्मेदार है जिसका विज्ञापन देखकर ख़रीदारी की गई है। इसमें सबसे बड़ी कमी यह है कि जब तक कोई कार्रवाई हो नुक़सान हो चुका होता है और नक़ली वेबसाईट ग़ायब हो जाती है। इसी तरह बहुत सी नामी कंपनियाँ अपने ग्राहकों के साथ अनुचित व्यवहार करती हैं जैसे कि शिकायत को दबा देना और बहाने बनाते हैं कि समुचित काग़ज़ात उपलब्ध नहीं हैं, यहाँ तक कि पैसे वापिस न करने पड़ें इसलिए स्टाफ की कमी या इधर उधर भटकाती हैं।

सरकार को चाहिए कि क़ानून के अंर्तगत यह नियम बनाये कि प्रत्येक निर्माता और सेवा प्रदाता के लिए अपने यहाँ कंज्यूमर रिलेशन अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य हो। उसके लिए समय सीमा निर्धारित हो जिसमें उसे शिकायत को निपटाना ही होगा और ऐसा न करना क़ानून का उल्लंघन होगा तथा जुर्माना या सज़ा देने का प्रावधान हो।

क़ानून में उपभोक्ता अथॉरिटी का भी गठन किया गया है जो एक बेहतरीन कदम है। इसे बने तीन साल हो जायेंगे लेकिन इसके कार्य के बारे में जानकारी का अभाव है। इस पर इस बात की जवाबदेही हो कि यदि कोई निर्माता गड़बड़ी करता है तो उसके ख़लिाफ़ मामले का संज्ञान लेकर स्वयं कार्यवाही की जाये।

हमारे देश में उपभोक्ता आंदोलन अब काफ़ी परिपक्व हो चुका है और ग्राहक अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते हैं लेकिन नियमों की जानकारी के अभाव और कुछ अपनी लापरवाही के कारण समय सीमा के अंदर शिकायत नहीं करते। ज़रूरी है कि सरकार कि ओर से इनके प्रचार प्रसार के लिये लगातार विज्ञापन और फ़िल्म के ज़रिए जागरूक किया जाए।


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