पति पत्नी और मारपीट
यह कल्पना करना अच्छा है कि पति पत्नी के बीच मधुर सम्बंध हों, वैवाहिक जीवन एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक व्यतीत हो और दोनों एक दूसरे के पूरक बनकर रहें। लेकिन जब दोनों के बीच हाथापाई होने लगे जिसमें पति की भूमिका ज्यादा हो और लगे कि उनका सुखी संसार टूटने वाला है तो इसका व्यक्तिगत तौर पर तो असर पड़ता ही है, सामाजिक स्तर पर भी बिखराव का व्यापक प्रभाव पड़ता है। आधुनिक दौर में जब पति पत्नी दोनों काम करते हो, उनकी आमदनी का पारिवारिक जरूरतों के लिए आपस में बँटवारे से लेकर मनमुटाव होने और मारपीट की नौबत आ जाए तो इसका असर घर दफ्तर या कामकाज पर भी पड़ता है।
पहले ज्यादातर घरों में पति काम करने जाता था और पत्नी घर संभालती थी। बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी पत्नी की होती थी और जिंदगी की गाड़ी दुःख सुख के हिचकोले खाते हुए चलती रहती थी। उसमें मारपीट का स्थान न के बराबर होता था। वक्त बदला और पति पत्नी दोनों कमाने लगे और अगर कहीं पत्नी की कमाई ज्यादा हुई तो अहम् ने पति के दिमाग में दस्तक दी और जरा सी बात पर उसका हाथ उठ गया। यहीं से जो दरार पड़नी शुरू हुई तो वह जीवन पर भारी पड़ते पड़ते अलग होने, तलाक लेने तक जा पहुँची।
पश्चिमी विकसित देशों में पत्नी के साथ हिंसक व्यवहार की घटनाएँ अब भारत जैसे विकासशील देश में भी काफी बड़ी तादाद में होने लगी हैं और पति पत्नी के बीच लड़ाई और मारपीट घर की देहरी लाँघकर चौराहे पर आने लगी है। जब ऐसा होने लगे तो समझना चाहिए कि पानी सिर से ऊपर निकल गया है और उसके छींटे दूसरे अक्सर शांत दिखाई देने वाले दम्पत्तियों पर भी पड़ने लगे हैं।
समस्या की व्यापकता
इसका सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो पत्नी प्रताड़ना के तीन रूप शारीरिक, आर्थिक और मानसिक होते हैं। जहाँ तक शारीरिक प्रताड़ना की बात है तो कई बार पहली बार का हाथ उठाना ही संबंध टूटने की नौबत ला सकता है जबकि कुछ मामलों में जब चाहे तब और कभी कभी तो बिना बात के पत्नी के साथ मारपीट का भी ज्यादा असर नहीं पड़ता। इसका कारण केवल यह नहीं है कि पति की कमाई से ही घर चलता है,
यह भी है कि पत्नी के मैके में भी इस तरह की घटनाओं को नजरंदाज करने का चलन था और विवाह के बाद अधिकतर पत्नियाँ पिटाई को प्यार करने का इजहार या तरीका मानने लगती हैं। कब और कितनी बार जैसे कि प्रतिदिन, हफ्ते, महीने, साल दो साल में एकाध बार मारपीट करने के परिणाम भी अलग अलग होते हैं।
दो स्त्रियाँ जब आपस में बात करते हुए यह पूछें कि उसे क्यों लगता है कि उसका पति उससे प्यार नहीं करता और जवाब यह हो कि पिछले एक हफ्ते से उसने मुझ पर हाथ ही नहीं उठाया, बात तक नहीं की, छुआ तक नहीं तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाए कि पति पत्नी के बीच कुछ असामान्य है।
इसी तरह अक्सर पत्नी को जब यह लगे कि उसके सीने में दर्द क्यों हो रहा है और हृदय, फेफड़े और माँसपेशियों की जाँच करवाने पर कोई रोग न निकले तो क्या इसका यह अर्थ नहीं कि यह सीने का दर्द शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक है और समझना चाहिए कि पति द्वारा उसे दिमागी तौर पर प्रताड़ित करने की कोशिश की जा रही है।
पत्नी को प्रताड़ित करने का एक तरीका यह भी अपनाया जाता है कि उस पर रुपए पैसों और घर खर्च को लेकर तथा परेशान करने की नीयत से इस तरह की बंदिशें लगाई जायें कि उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगे तो इसके परिणाम भी रिश्तों की समाप्ति के रूप में देखने को मिलते हैं। इसी तरह बिना ऊँगली उठाए और चुप रहकर भी पति पत्नी एक दूसरे को प्रताड़ित करते रहते हैं।
यहाँ यह समझना जरूरी है कि कब सामान्य सी बात लगने वाली वैवाहिक हिंसा पत्नी प्रताड़ना बन जाती है और कब पत्नी भी बदला लेने के लिए पति जैसा ही व्यवहार करने लगती है। इसकी शुरुआत कोई चीज जैसे रसोई के बर्तन, खाने की थाली फेंकना, कुछ भी उठाकर पीटने लगना, धकिया देना, जकड़ देना, लात घूँसे मारना और चाकू से लेकर बंदूक से मारने और मरने की धमकी देना या इस्तेमाल कर ही देने जैसी बातों से होकर परिवार, रिश्तेदारी से निकल कर समाज के बीच चर्चा का विषय बनने से हो जाती है। आए दिन नामी गिरामी लोगों से लेकर सामान्य परिवारों से निकली ये घटनाएँ मीडिया में छाई रहती हैं।
बच्चों पर असर
विडम्बना यह है कि इनका असर केवल पति पत्नी तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि बच्चों और परिवार के बुजुर्ग और अन्य सदस्यों पर भी पड़ने लगता है।
जिन घरों में पत्नी के साथ मारपीट होती है उनमें माँ बाप या बेटे बेटी कोई भी हो सबके साथ हिंसात्मक व्यवहार होने लगता है। इसका असर जहाँ एक ओर पत्नी पर यह पड़ता है कि वह विक्षिप्त जैसी होने लगती है वहाँ बच्चों में हीन भावना इस तरह समा जाती है कि वे जीवन भर उससे बाहर नहीं निकल पाते। उनमें जीवन के प्रति नकारात्मक भावना आ जाती है और वे योग्य होते हुए भी स्वयं को किसी भी चीज के लिए अयोग्य समझने लगते हैं। यही हीन भावना अगर विपरीत दिशा में चली गयी तो ऐसे बच्चों का व्यवहार हिंसक हो जाता है।
किसी के भी साथ मारपीट करना, हरेक बात का उलटा मतलब निकालना उनका स्वभाव बन जाता है।
परिवार में पत्नी और बच्चों के साथ मारपीट करने या उन्हें सजा देने का मतलब यह कभी नहीं होता कि कुछ सीख देनी होती है बल्कि यह आदतन पीटने की मजबूरी होती है जो एक मनोवैज्ञानिक समस्या है और इसका इलाज मनोचिकित्सक ही कर सकता है।
यह एक तरह का पागलपन ही है कि कुछ लोग घरेलू हिंसा को जायज समझने लगते हैं और यह इसलिए कि उनके परिवार की यह खानदानी परम्परा रही कि पत्नी और बच्चों को पीट पीट कर अधमरा तक कर देने से ही वे अनुशासित रह सकते हैं। जब परिवार और परिवेश में पिटाई को मान्यता मिल जाती है तो कानून भी कुछ नहीं कर सकता है और फिर पुलिस का भी रवैया यह रहता है कि यह घर परिवार का मामला है इसमें वो कुछ मदद नहीं कर सकती।
इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि मारपीट के बाद बात हद से ज्यादा बढ़ जाने पर पति पत्नी साथ रहें या अलग हो जाएँ, यह उनके आर्थिक आधार पर निर्भर है। अगर कानूनन अलग हो जाते हैं तो अधिकतर मामलों में बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी पत्नी पर ही डाल दी जाती है।
झूठी मरदानगी
पति से कानून भी ज्यादा सख्ती नहीं दिखाता जिसका नतीजा यह होता है कि वह पत्नी के साथ मारपीट से लेकर तलाक लेने तक को अपनी मरदानगी समझने लगता है। यह भावना ऐसे मर्दों में बचपन से ही पनपने लगती है जिसमें सबसे बड़ी भूमिका इस बात की होती है कि इन परिवारों में माँ अपने बेटों और बेटियों से किस तरह का व्यवहार करती है। अगर माँ यह सिखाती है कि बेटे को मर्द समझने के लिए उसे यह सिखाया जाय कि वह स्त्री जाति को हीन समझे या यह सिखाए कि स्त्री के प्रति सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाए तो यह उसके अपने निजी जीवन की घटनाओं पर निर्भर है कि उसका अपना पालन पोषण किस वातावरण में हुआ है।
केवल बेटा बेटी समान कहने से काम नहीं चलता बल्कि व्यवहार में समानता लानी होगी तब ही पत्नी प्रताड़ना हो या बच्चों के साथ मारपीट हो उसे दूर किया जा सकता है विशेषकर तब जब परिवार धनी और सम्पन्न होते जा रहे हों।
भारत
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