शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

असफलता की गूँज मिटाने को एक धमक ही काफी है





जीवन में अक्सर ऐसे क्षण आते हैं जब हर ओर निराशा दिखाई देती है, किसी से बात करने, मिलने, कहीं जाने और कुछ काम धंधा, व्यापार तथा नौकरी तक करने का मन न करता हो, उदासी घेरे रहती हो और तनाव इतना महसूस हो कि मृत्यु की कामना सोच पर हावी होते हुए लगती हो।


ऐसे पल तब आते हैं जब हमारा कोई अपना बिछड़ गया हो, पारिवारिक और स्नेहपूर्ण सम्बन्धों में दरार आने लगी हो या फिर व्यापार अथवा नौकरी में असफलता हाथ लग जाए, धन सम्पत्ति, रुपया पैसा डूब जाए और कर्ज वसूलने वालों ने जीना मुश्किल कर दिया हो।

सोच में बदलाव

इसका मतलब यह है कि जो लोग इस दौर से गुजर रहे होते हैं उन पर असफलता ने शिकंजा कस लिया है और सोचने लगते हैं कि उनका अब कुछ नहीं हो सकता या फिर सब कुछ भाग्य या भगवान के आसरे छोड़ देते हैं।
यह जो सफल या असफल होने की बात है इसमें केवल एक ‘अ’ का अंतर है। वर्णमाला के इस पहले अक्षर जो स्वर कहलाता है उसकी गूँज इतनी व्यापक होती है कि बड़े बड़े सूरमा उसके आगे पस्त हो जाते हैं।


इसी के साथ यह भी सच है कि इस अ को हराने का मंत्र उसके बाद के स्वर ‘आ’ में ही है जिससे बना पूरा शब्द ‘आत्मविश्वास ‘ है। जो इस शब्द की महिमा पहचान कर इसे अपने गले का हार बनाने में कामयाब हो जाता है, उसका असफलता तनिक भी बाल बाँका नहीं कर सकती।


असफलता के कई पैमाने हैं। नौकरी न मिलने या छूट जाने अथवा व्यापार कारोबार में जबरदस्त घाटा होने से उसके बंद हो जाने को असफल होने की श्रेणी में डाल दिया जाता है।


इसके विपरीत यह एक ऐसा मौका होता है जो सोच बदल सकता है कि आखिर गलती कहाँ हुई जो ऐसा हुआ कि सब कुछ खत्म होता हुआ लगने लगा। यही नहीं इन हालात के शिकार व्यक्ति को अपनी नौकरी बदलने या व्यापार करने के तरीके में परिवर्तन करने का यह नायाब मौका होता है।


एक घटना है। एक मित्र सरकारी दफ्तर में नौकरी करते थे और वहाँ उनका जो अफसर था वह रिश्वतखोर होने के कारण अपने मातहत लोगों के साथ आतंकी जैसा बर्ताव करता था ताकि उसकी करनी उजागर न हो सके।


अब हुआ यह कि मित्र की ईमानदारी अपने अफसर की बात मानने में आड़े आ रही थी जिसकी वजह से दोनों के बीच ठन गयी। अफसर के व्यवहार से मित्र को हर रोज मानसिक आघात लगता था और उसे डिप्रेशन रहने लगा क्योंकि नौकरी जाने का डर था और परिवार में आर्थिक संकट रहता था। उस अफसर ने वार्षिक रिपोर्ट भी खराब कर दी और उसकी तरक्की के रास्ते बंद कर दिए।


मित्र इतना परेशान कि आत्महत्या तक की बात मन में आने लगी। एक दिन घर आकर बुरी तरह रूलाई निकल गयी, पत्नी ने समझाया तो भी कोई फर्क नहीं और उसके बाद सोचने लगा कि इस तरह तो वो अफसर अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा और वह हमेशा नाकामयाब रहने का कलंक ढोने के लिए मजबूर हो जाएगा।


अगले दिन दफ्तर में उस अफसर ने पूरे स्टाफ के सामने कहा कि अभी भी मित्र उसकी नाजायज बातें मान ले सब कुछ ठीक हो सकता है वरना नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।


मित्र का आत्मविश्वास जाग चुका था और उसने सब के सामने उस अफसर की पिटाई शुरू कर दी। वह अफसर अपनी जान बचाकर अपने कमरे में घुसा और मित्र सीधे संस्थान के सर्वोच्च अधिकारी के कमरे में और जो कुछ उसके साथ हो रहा था, बयान कर दिया। अधिकारी ने सांत्वना दी और अपने सेक्रेटेरी के पास बैठने के लिए कहा। इधर वो कमरे से बाहर आ रहा था और तब ही वो अफसर अंदर जा रहा था।


कुछ ही क्षण में वो अफसर मुँह लटकाए अधिकारी के कमरे से बाहर निकलता दिखाई दिया। संदेश स्पष्ट था कि मित्र ने अपनी असफलता को सफलता में बदल दिया था। इसी लिए कहा जाता है नाकामयाबी को कामयाबी में बदलने के लिए बस सोच में परिवर्तन का एक धक्का लगाना ही काफी है।


संकल्प में जल्दबाजी

अक्सर हम अपना लक्ष्य या उद्देश्य बिना परिस्थितियों पर भलीभाँति विचार किए बिना तय कर लेते हैं और उसे पूरा करने का संकल्प भी ले लेते हैं। अब क्योंकि ठीक से सोचा विचारा नहीं इसलिए संकल्प टूट गया और अपने को असफल मानने लगे। यह ऐसा ही है जैसे कि हर साल पहली जनवरी को उलटे सीधे या देखादेखी संकल्प ले लेते हैं जो अक्सर अगले दिन ही बिखर जाते हैं इसीलिए यह कहावत कही गयी है ‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए’।


इसलिए संकल्प करने से बचें और अगर कभी लें तो हिम्मत का दामन न छोड़ें। इसके साथ ही किसी के भी सुझाव को सबसे पहले न कहने का साहस दिखाएँ क्योंकि हर कोई अपना मनभावन सुझाव देता है जो दूसरे के लिए कतई भलाई का नहीं होता। वजह यह कि हरेक के सोचने और किसी बात पर अमल करने की अपनी सीमाएँ होती हैं जिनके लाँघते ही असफलता का सामना करना पड़ सकता है।


इसके साथ ही अपनी असफलता के लिए कभी दूसरों को जिम्मेदार न बतायें जैसे कि अगर हमारे मातापिता ने बड़े स्कूल में नहीं पढ़ाया या हमें बढ़िया नौकरी न मिल पाने के लिए उनकी परवरिश को जिम्मेदार ठहराएं या फिर हम जो व्यापार कारोबार करना चाहते हैं उसके लिए वे धन नहीं जुटा पा रहे और ऐसी ही दूसरी बातें जिनका अर्थ यही है कि हम अपनी हार का ठीकरा अपने मातापिता, मित्रों या रिश्तेदारों के सिर पर फोड़ना चाहते हैं जबकि उनका हमारी सोच या हमारे कामधाम से  कोई लेना देना नहीं।

 अक्सर माता पिता अपने बच्चों को हैसियत से ज्यादा सुविधाएं देने की कोशिश करते हैं और उनकी नौकरी या व्यापार के लिए पता नहीं कहां कहां से सिफारिश और रूपया पैसा जुटाते हैं लेकिन जब संतान इतना सब करने पर भी उनके प्रति अविश्वास रखे तो इसका मतलब यही है कि उस व्यक्ति में आत्मविश्वास की जबरदस्त कमी है।  सफल होने के लिए जिस तरह अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता उसी तरह स्वयं अपना रास्ता बनाए बिना मंजिल भी नहीं मिलती।


मानसिक संतुलन बनाए रखना, दूसरों की बजाय केवल स्वयं से उम्मीद रखना, अगर कोई रिस्क या खतरा मोल लेना है तो वह खुद लेना, यह समझना कि आर पार का संघर्ष है तो कुछ भी हो सकता है और अगर फिर भी असफल हो गए तो उसे कंधे पर पड़ गयी धूल की तरह छिटक देना बल्कि उसका जश्न मनाना सफल होने का सरल मंत्र है। यह भी ध्यान रखें कि अक्सर धोखा उन्हीं से होता है जिन्हें आपने बिना पड़ताल किए अपने यहाँ काम पर रखा और बिना विचार किए दूसरे के कहने भर पर उसका भरोसा कर लिया। इसलिए दिल चाहे कितना भी कोमल रखें पर दिमाग जो कहे उसी को प्राथमिकता दें तो असफल होने से निश्चित तौर पर बचा जा सकता है।


(भारत)

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