शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

स्टार्ट अप की सफलता के लिए योग्यता का पैमाना







स्टार्ट अप उद्यमी होने अर्थात अपना खुद का कारोबार खड़ा करने का दूसरा नाम है। यह व्यवसाय या काम धंधा क्या हो, इसकी पहचान इस बात पर निर्भर है कि व्यक्ति कितना काबिल है, उसकी सोच कैसी है और पहले से चल रहे उद्योग धंधों से अलग कुछ करने की उसकी मंशा क्या है? यह आँकड़ा कि एक हजार में से केवल एक स्टार्ट अप ही कामयाब होता है, यह बताने और स्वयं के समझने के लिए काफी है कि स्टार्ट अप कोई ऐसी योजना नहीं है कि हर कोई उसे आजमा ले और सफल होने के सपने देखने लगे।


विज्ञान प्रसार के लिए इस विषय पर विज्ञान चैनल पर प्रसारित होने के लिए फिल्म बनाने का अवसर एक ऐसी ही चुनौती थी और इस दौरान जो सुनने, देखने और समझने को मिला, वह ऐसा अनुभव है जो पाठकों के साथ बाँटने से उनकी अनेक शंकाओं का निवारण कर सकता है।



सपने पूरा करना 

आमतौर पर पढ़ाई लिखाई के दौरान स्कूल के बाद कॉलेज और फिर किसी व्यावसायिक या तकनीकी संस्थान में अपने ज्ञान को पैना करने और शिक्षकों द्वारा प्रेरित किए जाने पर युवा मन सपने देखने लगता है कि मुझे कुछ ऐसा बनाना है जो दुनिया से अलग हो। अक्सर होता यह है कि बिना इस बात की परवाह किए कि उसकी सोच वास्तविक धरातल पर उतरने से पहले पूरी तरह मजबूत भी है या नहीं, वह उद्यमी बनने के लिए ऐसी छलाँग मारता है कि औंधे मुँह धरती पर गिर जाता है और असफल लोगों की सूची में स्वयं अपना नाम लिख देता है।



स्टार्ट अप का मतलब यह नहीं है कि जो मन में आया उसे करने के लिए मैदान में कूद गए बल्कि यह है कि अपनी सोच का दायरा बढ़ा कर यह तय करना है कि जो कुछ भी करने की बात मन में आई है उससे क्या समाज की कोई समस्या सुलझ सकती है ? मतलब यह कि इसके लिए गहन अध्ययन करना होगा और सामाजिक सरोकारों से रूबरू होना पड़ेगा और इस बात से जूझना होगा कि मेरी सोच दूसरों से अलग कैसे है और जब यह अपनी समझ में आ जाए तब ही उद्यमी का चोला धारण कीजिए और स्टार्ट अप की दुनिया में पैर पसारिए।


हमारा दौर कलयुग का है अर्थात मशीन का बोलबाला है। हाथ पैर से काम करने के स्थान पर वही काम मशीन से करने पर समय और संसाधन दोनों की ही बचत होती है, ऑटोमेशन इस युग की वास्तविकता है तो फिर किसी भी उद्यम का सपना साकार करने के लिए अनुसंधान और आविष्कार ही वह मूल तत्व है जिस पर स्टार्ट अप की इमारत खड़ी की जा सकती है ।


फेल होने का डर 


सोच या सपना तो है पर उसे पूरा करने के लिए पैसा और संसाधन नहीं हैं, यह कोई नई बात नहीं है, हरेक यही सोचकर बैठ जाता है कि उसके पास पैसा होता तो उसके सपनों को पंख लग जाते लेकिन वह यह नहीं सोच पाता कि क्या वास्तव में वह जो करना चाहता है उसमें गेमचेंजर होने की क्षमता है भी या नहीं !
ज्यादातर स्टार्ट अप इसलिए फेल होते हैं क्योंकि उन्हें शुरू करने वालों में ओवरकॉन्फिडेन्स होता है, वह ऐसे भ्रम में फँस जाते है जिस पर उनका नियंत्रण नहीं होता और किसी भी नतीजे पर पहुँचने के लिए सीमित मात्रा में लिए गए सैम्पल को ही अपनी सफलता का पैमाना बना लेते हैं। वह भूल जाते हैं कि चैका छक्का लगाना कतई आसान नहीं है, हाँ कभी कभार अच्छी किस्मत से लग भी जाता है लेकिन व्यवहार में ऐसा कभी नहीं होता।


आज हमारे देश में ऐसी सुविधाएँ हैं जहाँ यह बताने और समझाने की व्यवस्था है कि आपके विचार और उसकी सफलता के बीच जो खाई है, उसे कैसे पार किया जाए। विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों से जुड़े ऐसे इंक्युबेशन सेंटर हैं जहाँ अगर आपके विचार में दम है तो उसकी पूरी जाँच परख के बाद जरूरी सुविधाएँ जैसे कि काम करने की जगह, उचित सलाह, ट्रेनिंग से लेकर मार्केटिंग और शुरुआती निवेश तक का इंतजाम है।


यह सेंटर कुछ इस तरह से हैं जैसे कि अंडे के तैयार होने से पहले उसे सेना पड़ता है, इसी तरह यहाँ आकर एक निश्चित अवधि के लिए युवा वैज्ञानिकों, वरिष्ठ वैज्ञानिक, प्रोफेसर, पीएचडी स्कॉलर तथा अपने विचार की प्रामाणिकता सिद्ध कर सकने वालों को वे सभी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं जो उनके सपनों को उड़ान देने के लिए आवश्यक हैं।


निधि, प्रयास, अटल इनोवशन और बिराक जैसे संसाधन आज भारतीय युवाओं को उपलब्ध हैं, जहाँ अगर योग्यता है तो उसे सिद्ध करने के लिए धन से लेकर प्रयोगशालाओं तक की सुविधाएँ हैं। प्रयोगशाला में विकसित टेक्नॉलोजी को मार्केट तक लाने के समुचित प्रबंध हैं।


स्टार्ट अप की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए अनेक संस्थाएँ हैं, सरकार ने आयकर में छूट और सब्सिडी देने की सुविधा दी है और निजी तौर पर फंडिंग देने के लिए दुनिया भर के उद्योगपति और धनवान इस तरह के प्रोजेक्ट तलाशते रहते हैं जिनसे वे स्वयं तो पैसे को कई गुना करें हीं, साथ में लोगों को सहूलियत भी मिले।


शुरुआती तैयारी 


यहाँ लाख रुपए का प्रश्न यह है कि स्टार्ट अप की शुरुआत कहाँ से की जाए, तो इसके लिए अपने आसपास की दुनिया को टटोलिए कि उसे किस चीज की जरूरत है और उस तक उसे कैसे पहुँचाया जा सकता है। जो कुछ भी पहले से मौजूद है उसे अच्छी तरह से खँगालिए कि उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उसमें क्या नया जोड़ा जाए कि उसकी उपयोगिता पहले से कई गुना ज्यादा हो जाए। यह जानने के लिए कि कौन सा उत्पाद या सेवा मार्केट में हिट हो सकती है, उसके लिए देश भर में भ्रमण और जरूरत हो तो विदेश में भी खोजबीन की जाए।


स्टार्ट अप के लिए आम तौर से जरूरी यह भी है कि यह अकेले व्यक्ति का काम नहीं है। अपनी जैसी ही सोच रखने वाले एक से अधिक लोग ही इसमें सफलता की ऊँचाइयाँ छू सकते हैं, उनमें एक दूसरे के प्रति विश्वास जहाँ एक ओर जरूरी है, वहाँ ‘हाँ‘ या ‘न‘ सुनने और समझने की भी मानसिकता होनी चाहिए। ज्यादातर स्टार्ट अप इसलिए फेल हो जाते हैं क्योंकि उनकी शुरुआत करने वालों का मन एक दूसरे से मिला हुआ नहीं होता। वे पहली असफलता को ही अंतिम मान लेते हैं। होना यह चाहिए कि स्थिति और परिस्थितियों के अनुसार अपनी कार्य योजना में परिवर्तन करते रहें और असफल होने के कारणों को पहचान कर आगे की प्लानिंग करें।


आज हमारे देश को एक विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते यह सुविधा है कि यहाँ हर चीज अधिक मात्रा में चाहिए क्योंकि माँग के मुकाबले पूर्ति नहीं हो पाती। किसी भी क्षेत्र में देख लीजिए, यही असलियत है।


ग्रामीण और शहरी लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएँ, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण की समस्याएँ, आने जाने के साधन और परिवहन को आसान बनाने की सुविधाएँ, शारीरिक और मानसिक जरूरतों को पूरा करने के लिए खानपान से लेकर रहन सहन तक को सुगम बना सकने वाले उपकरणों को उपलब्ध कराना तथा और भी बहुत से क्षेत्रों में नयापन लाने के प्रयास करना एक स्टार्ट अप की अच्छी शुरुआत हो सकती है।


जब भी आपको लगे कि आपकी कोई नई सोच है, उसे बेझिझक पूरा करने के लिए पहला कदम उठाने में किसी प्रकार का संकोच न करें क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


(भारत)

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