शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

वैज्ञानिक सोच नास्तिक होना या धर्म को न मानना नहीं है

 

अक्सर यह बात सुनने को मिलती है कि हमारी सोचने समझने की योग्यता का आधार विज्ञान के अनुसार अर्थात वैज्ञानिक होना चाहिए। परंतु यह कोई नहीं जानता कि यह आधार क्या है? क्या यह कोई ऐसी वस्तु हैं जो कहीं बाजार में मिलती है, मोलभाव कर उसे हासिल किया जा सकता है या फिर इसका संबंध परंपराओं, धर्म के अनुसार की गई व्याख्याओं और पूर्वजों द्वारा निर्धारित कर दिए गए जीवन के मानदंडों से है ?


विज्ञान के सरोकार

विज्ञान का अर्थ यह लगाया जा सकता है कि ऐसा ज्ञान जो विशेष हो, उसे प्राप्त करने के लिए तथ्यों और तर्कों की कसौटियों से गुजरना पड़ा हो, वह इतना लचीला हो कि उसमें चर्चा, वादविवाद, शोध के जरिए परिवर्तन और संशोधन किया जा सके।

एक छोटा सा उदाहरण है। तेज़ हवा चलने से घर के खिड़की दरवाजे कई बार बजने, आवाज करने लगते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह कोई भूत है जो खड़कड़ कर रहा है लेकिन दूसरा सोचता है कि कहीं इसकी चैखट तो ढीली नहीं पड़ गई और वह जाकर उसे कस देता है। आवाज़ आनी बंद हो जाती है।

यही वह ज्ञान है जो सामान्य से अलग है इसलिए यह विज्ञान कहा जाता है। हमारे संविधान में भी इस बात की व्यवस्था है जिसके अनुसार हमारे फंडामेंटल कर्तव्यों का पालन वैज्ञानिक ढंग से सोच विचार कर किया जाना चाहिए। इससे ही लोकतंत्र सुरक्षित और मानवीय गुणों का विकास हो सकता है।

जब हमें किसी बात पर उसके सही होने के बारे में संदेह होता है, उसे जांचने परखने के लिए उत्सुकता होती है तो यहीं से वैज्ञानिक सोच की शुरुआत होती है। इसके विपरीत जब किसी बात को केवल इसलिए माना जाए कि उसे पूर्वजों ने कहा है, उनकी परंपरा का निर्वाह कर्तव्य बन जाए, उसमें कतई बदलाव स्वीकार न हो तब यह कट्टरपन बन जाता है और यही लड़ाई झगडे, मनमुटाव और शत्रुता का कारण बन जाता है।

जो लोग यह कहते हैं कि विज्ञान में ईश्वर या परम सत्ता या किसी भी नाम से कहें, उसका कोई महत्व नहीं है तो यह अपने आप को भुलावे में रखने और वास्तविकता को स्वीकार न करने के बराबर है। हमारी सभी वैज्ञानिक प्रयोगशालायें और उनमें शोध और एक्सपेरिमेंट कर रहे सभी लोग चाहे सामने होकर यह न मानें कि परमेश्वर जैसी कोई चीज़ है लेकिन वे भी अपने अंतःकरण में मानते हैं कि कुछ तो है जो उनकी कल्पना से परे है, समय समय पर किसी अदृश्य शक्ति का नियंत्रण महसूस होता है।

कुछ लोग धर्म और धार्मिक विधि विधान को मानना अवैज्ञानिक कहते हैं और उनमें आस्था रखना और हवन, पूजन और कर्मकांड जैसी चीजों का उपहास करते हैं। इस बारे में केवल इतना कहा जा सकता है कि जब यह सब करने के लिए चढ़ावा, दिखावा धन की मांग और न देने पर ईश्वर का प्रकोप, दंड मिलने और अहित होने जैसी बातों के बल पर लूटखसोट, जबरदस्ती और शोषण किया जाए तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। इसका विज्ञान से कोई संबंध नहीं है वरना तो इन सब चीजों के करने से वातावरण शुद्ध होता है, मानसिक और भावनात्मक तनाव कम होता है, मन केंद्रित होता है और शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है।

हमारे जीव, प्राणी और वन विज्ञान ने अनेक ऐसी संभावनाओं को हकीकत में बदला है जिन पर आश्चर्य हो सकता है। औषधियों के तैयार करने में जीवों से प्राप्त किए गए अनेक प्रकार के ठोस और तरल पदार्थ, जड़ी बूटियों के सत्व और प्राकृतिक तत्वों के मिश्रण का इस्तेमाल होता है और बाकायदा बने एक सिस्टम से गुजरने के बाद उनके प्रयोग की इज़ाजत दी जाती है। इसके स्थान पर यदि कोई व्यक्ति झाड़फूंक, गंडे ताबीज़, भभूत जैसी चीजों से ईलाज करने की बात करता है तो यह अपराध है क्योंकि विज्ञान इन्हें मान्यता नहीं देता। कोरोना जैसी महामारी से लेकर किसी भी दूसरे रोग की चिकित्सा दवाई, वैक्सीन, इंजेक्शन से होती है न कि किसी पाखंडी और झोलाछाप लोगों के इलाज़ से, इसलिए यह लोग भी अपराधी हैं।

विज्ञान का आधार हमेशा से तर्क यानी जो है उस पर शक या संदेह करना है। इसका मतलब यह है कि जो चाहे सदियों से चला आ रहा है लेकिन जिसकी सत्यता का कोई प्रमाण नहीं है और जो केवल परंपरा निबाहने के लिए होता रहा है, उसे न मानकर नई शुरुआत करना वैज्ञानिक है ।

यहां इस बात का ज़िक्र करना आवश्यक है कि जो लोग गणेश जी को प्लास्टिक सर्जरी का उदाहरण मानते हैं और इसी तरह की निराधार बातों का समर्थन करते हुए आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी को चुनौती देते हैं, वे समाज का अहित कर रहे हैं और देश को आगे बढ़ाने के स्थान पर पीछे ले जाने का काम कर रहे हैं।


विज्ञान और धर्म

कोई भी धर्म किसी कुरीति या मानवता विरोधी काम का न तो समर्थन करता है और न ही मान्यता देता है, इसलिए धर्म अवैज्ञानिक नहीं है। इसी प्रकार चाहे कोई भी धर्म अपनी निष्ठा किसी भी अवतार, गुरु, पैगंबर, यीशु, तीर्थंकर, बुद्ध आदि महापुरुषों में रखे तो यह विज्ञानसम्मत है। इसलिए विज्ञान और धर्म का गठजोड़ तर्कसंगत है।

भारत तो अपनी प्राचीन संस्कृति, वैज्ञानिक उपलब्धियों और उनकी वर्तमान समय में उपयोगिता के बारे में विश्व भर में जाना जाता है जिसके कारण हम अनेक क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। तब फ़िर उन सब बुराइयों को ढोते हुए चलना कतई समझदारी नहीं है जो हमें दूसरों की नज़रों में हंसी का पात्र बनाती हैं।

वैज्ञानिक सोच और उसके आधार पर जब हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक निर्णय लेने की शुरुआत एक अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में हो जाएगी, तब ही हम गरीबी, बेरोज़गारी और विदेशों में प्रतिभा के पलायन को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठा पाएंगे।  


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