शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

समुद्र मंथन से लेकर आजादी के अमृत महोत्सव तक

 

हमारी पौराणिक कथाओं में समुद्र या क्षीरसागर मंथन की महिमा सबसे सबसे अधिक है। देवताओं और असुरों के बीच निरंतर संघर्ष होते रहने के कारण यह उपाय निकाला गया कि समुद्र को मथा जाए और उससे जो कुछ निकले, आपस में बांटकर बिना एक दूसरे के साथ लड़ाई झगड़ा किए शांति से रहा जाए। देखा जाए तो यह मंथन तब की ही नहीं आज की भी सच्चाई है और आपसी द्वेष समाप्त करने का एक स्वयंसिद्ध उपाय है।


टीमवर्क की महिमा

समुद्र मंथन के लिए दोनों पक्षों के बीच बनी सहमति का संदर्भ लेकर यह कहा जाए कि अंग्रेजी दासता से मुक्ति पाने के लिए भारत के सभी धर्मों और वर्गों के लोग स्वतंत्रता रूपी अमृत प्राप्त करने के लिए एकजुट हुए और आजादी हासिल की।  जिस प्रकार तब देवताओं और असुरों ने अपना बलिदान दिया था, उसी प्रकार सभी धर्मों विशेषकर हिंदू और मुसलमान दोनों ने अपनी आहुतियां देकर सिद्ध कर दिया कि वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति समर्पित हैं। यहां तक कि इसके लिए देश का दो टुकड़ों में बांट दिया जाना भी स्वीकार करना पड़ा।

आजादी मिली, साथ में विभाजन की त्रासदी भी और समुद्र मंथन की तरह स्वतंत्रता संग्राम से निकला सांप्रदायिक विष दंगों के रूप में अपना असर दिखाने लगा। इसका पान करने के लिए शिव की भांति आचरण करने के प्रयत्न भी हुए लेकिन सफलता नहीं मिली।

समुद्र मंथन से महालक्ष्मी अर्थात धन, वैभव, सौभाग्य और संपन्नता प्राप्त हुई, उसी प्रकार आजादी के बाद सभी प्राकृतिक संसाधन हमारे लिए उपलब्ध थे। इन पर कब्जा करने की होड़ लगी और जो ताकतवर थे, इसमें सफल हुए और इसी के साथ हलाहल विष अपने दूसरे रूपों भ्रष्टाचार, शोषण, अनैतिकता, बेईमानी और रिश्वतखोरी के पांच फन लेकर प्रकट हुआ। इसका परिणाम गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और वर्ग संघर्ष के रूप में सामने आया।

समुद्र मंथन से जो मिला, उसमें कामधेनु, ऐरावत, सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला कल्पवृक्ष, परिजात वृक्ष अर्थात हमारी वन्य संपदा और साथ में धनवंतरी वैद्य जो जीवन को बीमारियों से बचा सकें तथा अन्य बहुत सी वस्तुएं मिलीं। यहां तक कि भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को देवताओं यानी मानवीय मूल्यों पर चलने वालों के लिए सुगमता से प्राप्त किए जाने का प्रबंध भी कर दिया। दैत्य राहु द्वारा भेष बदलकर अमृत प्राप्त करने की कोशिश को भी उसके दो टुकड़े कर आंशिक रूप से विफल कर दिया। सम्पूर्ण नाश संभव न होने के कारण जब तब मनुष्य में आसुरी शक्तियों के रूप में धार्मिक, सांप्रदायिक और अन्य विनाशकारी रूपों में यह प्रकट होता ही रहता है।

इसके नाश के लिए संविधान और विधि विधान के अनुसार कार्यवाही होती है लेकिन फिर भी पूरी तरह समाप्त नहीं होता क्योंकि कुछ लोग राहु की भांति अमृत पान कर चुके हैं। इसलिए लगता है कि देश को इन बुराईयों को साथ लेकर ही चलना होगा और इन पर नियंत्रण रख कर आगे बढ़ना होगा।


एक विवेचना

वर्तमान समय में समुद्र मंथन को समझना जरूरी है। समुद्र क्या है, और कुछ नहीं, मानवीय मूल्यों का महासागर है जिसमें लहरें और तरंगें उठती गिरती रहती हैं। यह हमारी पीड़ा, प्रसन्नता, भावुकता, स्नेह और सौहार्द का प्रतीक हैं। इसी प्रकार मंदारगिरी ऐसा पर्वत है जो जीवन को स्थिरता प्रदान करता है और समुद्र में उसके हिलने डुलने से होने वाली हलचल को रोकने के लिए कछुए को आधार बनाना मनुष्य की सूक्ष्म प्रवृत्तियों को मजबूत बनाने की भांति है। वासुकी नाग रस्सी अर्थात मथानी के रूप में यही तो प्रकट करते हैं कि मनुष्य का अपनी इच्छाओं पर काबू पाना बहुत कठिन है और केवल साधना अर्थात जन कल्याण के काम करने की इच्छा रखने से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। सर्पराज का मुंह पकड़ना है या उसकी दुम, यह निर्णय करने का काम हमारे अंदर विद्यमान विवेक और बुद्धि का है। गलती होने से विनाश और सही कदम उठाने से निर्माण होता है, यही इसका मतलब है।

यह देव और दानव क्या हैं, हमारे अंदर व्याप्त सत्य और असत्य की प्रवृत्तियां ही तो है जो प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान रहती हैं। यह हम और हमारे परिवेश, संस्कार और वातावरण पर निर्भर है कि हम किन्हें कम या अधिक के रूप में अपनाते हैं। सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक सोच का संतुलन होना आवश्यक है। कोई भी व्यक्ति केवल अच्छा या बुरा नहीं हो सकता, वह दोनों का मिश्रण है, यह स्वयं पर है कि हम किसे अहमियत देते हैं क्योंकि सुर और असुर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

जीवन को एक झटके में समाप्त कर सकने वाला हलाहल विष और अमरता प्रदान करने वाला अमृत कलश, प्रत्येक क्षण होने वाले क्रियाकलाप, मनुष्य की दिनचर्या और सही या गलत निर्णय का परिणाम ही तो हैं। इसे अपने कर्मों का लेखा जोखा या जैसा करोगे, वैसा भरोगे कहा जा सकता है।

कथा है कि भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा था कि वे समुद्र से निकलने वाले विभिन्न रत्नों को हासिल करने के स्थान पर अमृत कलश प्राप्त करने के लिए एकाग्रचित्त होकर प्रयत्न करें। इसका अर्थ यही है कि जीवन में आए विभिन्न प्रलोभनों और बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार के अवसरों पर ध्यान न देकर अंतरात्मा की आवाज सुनकर निर्णय करना ही श्रेष्ठ है।


निष्कर्ष यही है

आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का अर्थ है कि धर्म और संप्रदाय के आधार पर मनमुटाव, नफरत और हिंसा के स्थान पर मानवीय सरोकार और संवेदनाओं को अपनाया जाए वरना तो जो बिखराव की ताकतें हैं, वे हमारा सुखचैन छीनने को तैयार ही हैं। समुद्र मंथन की प्रक्रिया का इस्तेमाल आज शोध, प्रबंधन, प्रशिक्षण और अलग अलग मत या विचार रखने वाली टीमों द्वारा अपने लक्ष्य अर्थात अमृत प्राप्त करने की दिशा में किए जाने वाले प्रयत्न ही हैं।

आज हम कृषि उत्पादन में अभाव की सीमा पार कर आत्मनिर्भर हो गए हैं, विज्ञान और तकनीक में विश्व भर में नाम दर्ज कर चुके हैं, व्यापार और उद्योग में बहुत आगे हैं, अपनी जरूरतें स्वयं पूरा करने में सक्षम हैं, आधुनिक संचार साधनों का इस्तेमाल करने में अग्रणी हैं तो फिर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का क्या कारण है ? इस पर कोई सार्थक बहस इस अमृत महोत्सव में शुरू हो तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

अमृत महोत्सव में हमारे स्वतंत्रता संग्राम के भुला दिए गए नायक और नायिकाओं का स्मरण, आजादी के बाद अब तक विभिन्न क्षेत्रों में हुए परिवर्तन, प्रगति, विकास और संसाधनों के इस्तेमाल के बारे में जानना आवश्यक है। इसके साथ ही इस बात पर मंथन जरूरी है कि आज तक हर बच्चे को शिक्षा और हर हाथ को रोजगार देना क्यों संभव नहीं हो सका ? कुछ लोगों के पास अकूत धन कैसे पहुंच गया और आगे संपत्ति का सही बंटवारा कैसे हो ताकि हरेक को उसका हक मिल सके? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर प्रत्येक भारतवासी को मिलना चाहिए।


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