शुक्रवार, 8 जून 2018

प्लास्टिक पॉल्यूशन को मिटाओ ,प्लास्टिक को नहीं



पर्यावरण दिवस

प्रकृति ने मानव को जल, जंगल, जमीन, आकाश और अग्नि का उपहार दिया था ताकि वह सुख शांति से दुनिया मंे रहे लेकिन मनुष्य ने इनके साथ छेड़छाड़ कर कुदरत के नियमों के विपरीत आचरण कर इनका लाभ उठाने के बाद जब दोहन शुरू कर दिया तो प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना ही था। यही प्रदूषण है जिसका सामना आज पूरा विश्व कर रहा है।
जब हालात काबू से बाहर होने लगे और मनुष्य को अपनी गलती का अहसास होने लगा तो उसे यह चिंता हुई कि यदि इसी रफ्तार से प्रदूषण बढ़ता रहा तो मानव जाति के विनाश के लिए यह खतरे की घंटी है।



पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य

44 वर्ष पहले पाँच जून 1974 को अपनी गलतियों को सुधारने के लिए हमने विश्व पर्यावरण दिवस मनाना शुरू किया और प्रदूषण से मुक्ति पाने के उपायों पर अमल करने का संकल्प किया जाने लगा। असल में यह मानव स्वभाव है कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का आदी हो जाता है और अपने लिए जीवनदायिनी वस्तुओं को नष्ट करने का सिलसिला अपनाए रहता है। जंगलों की अंधाधुँध कटाई और जल संसाधनों को अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए जहरीला तक बनाने से हम नहीं चूकते हैं।

कुदरत का नियम है कि उससे जो हमने लिया वह उसे लौटाना भी पड़ता है। उदाहरण के लिए हमने अपनी जरूरत के लिए वनों को काटा तो हमें वृक्षारोपण भी करना चाहिए ताकि वन्य प्रदेश बना रहे। हम वृक्षारोपण समारोह करते हैं और प्रचार पाने के बाद भूल जाते हैं कि पेड़ पौधों को लगाने के बाद उनकी देखभाल करनी आवश्यक होती है अन्यथा कुछ ही दिनों में वह सूख जाते हैं। यही सिलसिला प्रति वर्ष दोहराया जाता है।

देशभर में पर्यावरण दिवस पर लाखों की तादाद में पौधारोपण होता है जिससे देश में भरपूर हरियाली होनी चाहिए लेकिन हकीकत यह है कि बंजर जमीन और मरुस्थल प्रदेश का विस्तार हो रहा है और सूखाग्रस्त इलाकों का विस्तार दिन दूनी रात चैगिनी गति से हो रहा है नतीजे के तौर पर किसान वर्षा के अभाव में अपनी फसलों को चैपट होता देखता रहता है।

यही हाल हमारे जल संसाधनों का है। नदियों का प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। तालाब अपना नामोनिशान खो रहे हैं और पीने का पानी हमें जल की निर्मल धारा के रूप में नहीं बोतलों में मिल रहा है। यह बोतलें प्लास्टिक से बनती हैं और यही प्लास्टिक आज हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है इससे होने वाले प्रदूषण से मुक्ति पाने की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

पर्यावरण दिवस पर संकल्प

इस वर्ष पर्यावरण दिवस पर यही संकल्प लिया गया है कि निकट भविष्य में इसे नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा और हम इससे होने वाले प्रदूषण से मुक्त हो जाएँगे। प्रश्न उठता है कि क्या यह सम्भव है और क्या यह संकल्प भी उसी तरह धरा का धरा रह जाएगा जैसा कि पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले अन्य तत्वों को समाप्त करने के प्रयासों का होता रहा है।

प्लास्टिक का उपयोग

आज प्लास्टिक का उपयोग लगभग हरेक क्षेत्र में किसी किसी रूप में हो रहा है। जो हमारे जीवन की ऐसी हकीकत बन चुका है कि हम कितनी भी कोशिश कर लें इसका इस्तेमाल बंद नहीं कर सकते। जब ऐसा है तो क्या इस तरह की कार्यप्रणाली क्यांे अपनाई जाए जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी टूटे।

प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सड़क निर्माण के लिए सस्ता और मजबूती देने वाला हो सकता है। इसके लिए किए गए प्रयोग केवल सफल हुए हैं बल्कि उनसे धन और श्रम की भी बचत हुई है।

पैकेजिंग उद्योग में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उद्योग से निकलने वाला प्लास्टिक कचरा उसी से जुड़े लघु उद्योगों में इस्तेमाल किया जा रहा है।

प्लास्टिक की खोज

यह मानव द्वारा निर्मित है। कहते हैं कि आयवरी यानि हाथी दाँत के विकल्प के रूप में इसकी खोज हुई और तरल तथा ठोस के मिश्रित आकार में यह सामने आया। इससे पहले प्राकृतिक वस्तुओं जैसे लकड़ी, धातु और मिट्टी और यहाँ तक कि पेड़ों से निकलने वाले रेजिन और रबर से चीजें बनाई जाती थी जिनकी एक सीमा थी। प्लास्टिक की खोज ने मानो दुनिया के सामने कुछ भी बना सकने की सम्भावनाओं को मूर्त रूप देने और कोई भी सपना साकार कर सकने की सहूलियत दे दी। आज लगता है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल किए बिना कोई चीज बन ही नहीं सकती।

इस वास्तविकता को ध्यान में रहते हुए यह कहना तो दूर सोचना भी मूर्खता होगी कि हम प्लास्टिक के बिना सुखी जीवन जीने की कल्पना भी कर सकते हैं। प्लास्टिक कोई समस्या नहीं है बल्कि समस्या यह है कि प्लास्टिक के साथ हम क्या करते हैं और उससे बनाई जाने वाली वस्तुओं को इस्तेमाल करने के बाद जो कचरा निकलता है उसका क्या करते हैं।

क्या है उपाय?

प्लास्टिक से उत्पन्न कचरे को नष्ट होने में पाँच सौ से हजार साल तक लगते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्लास्टिक और उसका कचरा हमारे साथ पीढ़ी दर पीढ़ी रहना ही है। जब ऐसा है तो हम उसे समाप्त करने के उपाय सोचने में अपनी ऊर्जा और सीमित संसाधनों को खर्च करने के बजाय किसी दूसरे रूप में इस्तेमाल करने की टेक्नोलाॅजी का विकास करने की दिशा में काम करें तो यह देश की आर्थिक प्रगति का आधार बन सकता है तथा रोजगार के क्षेत्र में भी उपयोगी होगा।

हमें पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में तेजी से काम करना होगा तभी बिगड़ते पर्यावरण के असंतुलन को संतुलित कर पायेगें ! यदि हम इस्तेमाल किये हुए प्लास्टिक उत्पादों को पुनः उपयोग में लाये तो ये शायद कहीं कहीं प्लास्टिक का उत्पादन नियंत्रित होना आरम्भ हो जाये ! हर क्षेत्र में एक रिसायकल प्लांट लगाना चाहिए जहाँ पर प्लास्टिक वेस्ट एकत्रित कर उसे दोबारा प्रयोग करने के काबिल बनाया जा सके !

जहां पर कोई भी किसी भी प्रकार के प्लास्टिक वेस्ट के बदले में कुछ मूल्य प्राप्त कर सके तो हम मानते हैं कि प्लास्टिक की समस्या खत्म हो जाएगी ! ‘रिड्यूस रीयूज रीसायकल थ्योरीको यदि हम अपनाये तो भविष्य में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का निपटारा हो सकता है और प्रतिवर्ष प्लास्टिक प्रदूषण से समुन्द्र में रहने वाले लगभग 1000,000 जीवों जैसे डॉल्फिंस, कछुए, व्हेल्स, पेंगुइन्स की मरने की संख्या कम हो जाएगी !


हमारा पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आइना होता है। जिसकी देखभाल करना हमारे लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण है यही पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य होना चाहिए।

(भारत)


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