हँसी के लम्हें
जीवन कैसा भी हो, संघर्ष करते हुए बीते या आराम से, सूझ बूझ से सुख के दर्शन हों या कमी अथवा गलती के कारण दुःख उठाना पड़े, कर्मठ हो या जैसे तैसे वक्त गुजरता हो, एक बात सभी अवस्थाओं में समान है और वह यह कि या तो व्यक्ति हँसते मुस्कराते हुए इन्हें स्वीकार करता है या फिर दुःख के सागर में डूब जाता है।
विद्वान और दार्शनिक सभी हालात में सामान्य रहने की बात करते हैं लेकिन उसका यह मतलब नहीं कि न सुख में हँसना और न दुःख में रोना है जो व्यवहार में कभी नहीं हो सकता। खुश होना या दुखी होना जिंदगी का दस्तूर है और हँसना या रोना मनुष्य का स्वभाव।
हँसने से न केवल जीव ज्यादा सुखी रहता है बल्कि उसकी उम्र भी बढ़ती है। हालाँकि जहाँ तक उम्र की बात है उसकी अवधि तो पहले से ही विधाता ने निश्चित की हुई है लेकिन हँसने या मुस्कराते हुए जीवन अधिक स्वस्थ जरूर रह सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है की जब हम हँसते हैं तो हमारे चेहरे की बनावट से मस्तिष्क में जो भावनाओं का खेल चलता रहता है उसमें हँसने से प्रसन्नता की भावना में वृद्धि होती है जो शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है। हमारे दिमाग का भावनात्मक केंद्र हमारी माँसपेशियों को संकेत देता है कि सब कुछ अच्छा है और अभी अगर नहीं भी है तो धीरे धीरे अच्छा होता जाएगा।
अगर हँसते नहीं और तनाव या गुस्से में रहते हैं तो माँसपेशियों से नकारात्मक संदेश जाने से शरीर में अकड़न होती है और हाँफने या कम्पन होने लगता है जो सेहत के लिए ठीक नहीं होता। शरीर थकान और कमजोरी महसूस करता है।
मुस्कान से हमारी सोच में सकारात्मक परिवर्तन होता जाता है जिससे जीवन की क्वालिटी में सुधार आता है और हम खुश दिखाई देते है। अपनी खुशी को दूसरों के साथ बाँटने की कोशिश में हँसते या मुस्कराते हुए अपनी बात कहते हैं। इससे स्वयं तो ताज़गी का अहसास करते ही हैं अपने परिवार, मित्रों और सहकर्मियों को भी प्रसन्नता का उपहार देते हैं।
मुस्कान और वातावरण
हमेशा हँसते रहने से आसपास के लोगों को लग सकता है कि इसकी जिंदगी में कोई दुःख ही नहीं हैं या यह तो बहुत ही सुखी है। हमारी और इसकी अवस्था एक जैसी होने के बावजूद यह इतना खुश कैसे रहता है। इसमें आश्चर्य जैसी बात नहीं बल्कि अपने मन को खुशी के ढाँचे में ढालते रहने से सभी मौकों पर प्रसन्नता का भाव चेहरे से झलकता रहता है और किसी विपरीत परिस्थिति में भी खुशी का भाव बना रहता है।
क्रोध जरूरी नहीं
अक्सर देखने में आता है कि कुछ लोगों का स्वभाव हमेशा गुस्से में रहने का होता है, उनकी आँखों और चेहरे पर क्रोध के कारण एक तरह का तनाव सा दिखाई देता है। कई बार तो उनके पास बैठने या उनसे बात करने में भी डर लगता है। वातावरण बोझिल बन जाता है और न केवल वे स्वयं को बल्कि अपने परिवार के सदस्यों या सहयोगियों को हमेशा आतंकित किए रहते हैं।
झुँझलाहट में अपनी बात कहते हैं जो दूसरे को भी झुंझला देती है जिसका परिणाम अक्सर बहसबाजी से लेकर लड़ाई और झगड़े में निकलता है जो मनमुटाव और एक दूसरे को नुकसान पहुँचने तक चला जाता है। हमेशा बेचैनी सी भरी रहती जिसका सीधा असर शरीर के संतुलन पर पड़ता है और वे अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों को अनजाने में दावत दे देते हैं। डॉक्टर के पास जाते हैं तो कोई बीमारी नहीं निकलती पर फिर भी बीमार जैसा अनुभव करते हैं और दिन प्रतिदिन अपनी सेहत के गिरने का कारण बनते हैं। जिंदगी के प्रति नकारात्मक रवैया बन जाता है और हर चीज में बुराई देखने की आदत बना लेते हैं। लोग उन्हें झक्की समझने लगते हैं जो उन्हें घरवालों और दोस्तों से दूर ले जाता है।
इसके विपरीत कुछ लोग हमेशा हँसकर या मुस्कराकर अपनी बात कहते हैं तो एक तरह से दूसरे को अपने आकर्षण में बाँध लेते हैं जो बातचीत को आरामदेह बना देता है और किसी भी समस्या का हल निकलने में सुविधा हो जाती है। ऐसे लोग स्वस्थ भी दिखाई देते है। थके होने पर भी थकावट जैसा भाव उनके चेहरे या हाव भाव से प्रकट नहीं होता। विज्ञान के अनुसार उनकी माँसपेशियों से दिमाग को सकारात्मक संकेत जाते हैं जो एक तरह से बीमारियों के आक्रमण से बचने का कवच है और वे हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देते हैं। देखा गया है कि इस तरह के लोगों में गम्भीर रोगों का मुकाबला करने की हिम्मत उनसे अधिक होती है जो हँसने से परहेज करते हैं।
मुस्कराने की प्रैक्टिस
हालाँकि मुस्कान जन्म से ही मिलती है पर बड़े होते होते यह घटते हुए कुछ लोगों के पास इतनी कम रह जाती है कि उन्हें इसे फिर से हासिल करने के लिए प्रैक्टिस की जरूरत पड़ती है। इससे पहले कि यह लुप्त हो जाए हँसने की कवायद करते रहना जरूरी है।
सबसे पहले यह करें कि सुबह उठने के बाद तय कर लें कि आज सब से मुस्कराकर बात करनी है और गुस्सा तो बिलकुल नहीं करना है चाहे ऐसा करने के कितने भी कारण मौजूद हों। आप देखेंगे कि दिन भर काम करने के बाद भी थकान नहीं हुई या पहले के मुकाबले कम हुई। यह इस कारण हुआ कि आज पूरा दिन किसी तरह के तनाव के बिना व्यतीत हुआ। आप खुश रहने लगते हैं और फिर अगले दिन भी इसी तरह करें और एक सप्ताह तक यही दोहरायें तो अपने अंदर ऊर्जा पाएँगे।
जहां मुस्कराना स्वभाव है तो गुस्सा या क्रोध करना भी स्वाभाविक है। जीवन में दोनों को अपनाना होता है तो फिर जिससे शांति और खुशी मिले उसकी मिकदार ज्यादा और जो मन को दुखी करे और दूसरों को भी हानि पहुँचाए उसे कम अपनाने में ही समझदारी है। क्रोध पर नियंत्रण होने से बहुत से विनाशकारी परिणामों से बचा जा सकता है और नतीजे भी उम्मीद के अनुसार निकलते है।
क्रोधित न होने और मुस्कान को अपना साथी बनाने के लिए एक और कवायद की जा सकती है। इसमें यह कहावत ‘एक चुप सौ को हरावे‘ भी कारगर है। अकारण ही जब देखो तब मामूली सी बात पर क्रोधित हो जाने वाले व्यक्ति का सामना करने के बजाए चुप रहकर उसका मुकाबला करना हमेशा बेहतर रहता है।
नव वर्ष संकल्प
यह जिन्दगी बस सिर्फ पल दो पल है,
जिसमें न तो आज और न ही कल है,
जी लो इस जिंदगी का हर पल इस तरह,
जैसे बस यही जिन्दगी का सबसे हसीं पल है।
इस वर्ष इससे बेहतर संकल्प क्या होगा कि हम मुस्कराते हुए पूरा साल बिताएँ। वैसे भी यह चुनाव का वर्ष है। क्रोध, आवेश, उत्तेजना, भड़कना जैसे तत्व हमारे सही निर्णय से लेकर वोट डालने की प्रक्रिया में बाधक हो सकते हैं इसलिए शांत मन से मुस्कराते हुए अपने अधिकार का प्रयोग कीजिए। आप एक बेहतर सरकार चुन सकते हैं।
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