शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ










यह दुनिया रंग बिरंगी


संसार की रचना करने वाले ने यही सोचकर पृथ्वी हो या समुद्र, आकाश हो या पर्यावरण इन सब को विविध रंगों से सजाया होगा कि मनुष्य इनकी छवि को निहारता रहे और आनंद का अनुभव करे। जंगल, पहाड, नदियाँ अपने अनेक स्वरूपों में केवल हमें आकर्षित करती हैं बल्कि उनमें रहने और बसने के लिए भी निमंत्रित करती हैं। इसी के साथ यह भी कि हम उनका संरक्षण और पालन पोषण भी करें।

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक सैलानी छिपा होता है। जब भी मौका मिलता है उसे अपने सैलानीपन का बोध होते ही निकल पड़ता है खुली सड़क पर अपना सीना ताने। उसे नहीं पता कि मंजिल कहाँ है और कहाँ रुकना है। यह सब तो बस उपरवाले के भरोसे छोड़ दीजिए और दुनिया की सैर कीजिए।

अपने काम के सिलसिले में या जब भी काम से जरा सी फुर्सत मिलते ही घुमक्कड होने का अहसास मन पर छा जाता है।

अपने देश को पूरा देखने के लिए कई जन्म चाहिए फिर भी कोशिश रहती है कि जितना हो सके उसके प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाया जाए और अनंतकाल से निर्मित हो रही विरासत को निहारा जाए।

विदेश की चर्चा या वहाँ जाने से पहले अपने यहाँ की बात करना जरूरी हो जाता है क्योंकि हम किसी से कम नहीं। उत्तर पूर्वी राज्यों में सुंदरता और रोमांच-रहस्य का अनोखा मिश्रण है। वहाँ के वन और पवित्र वनस्थली तथा गुफाएँ केवल अद्भुत हैं बल्कि भयमिश्रित आश्चर्य का भी संगम हैं।

प्राकृतिक सम्पदा

यहाँ हजारों साल लग गए कुदरत को एक करिश्मा तैयार करने में। घास, मास, फर्न जहाँ पेड़ पौधों का अध्ययन करने वालों के लिए अद्भुत खजाना है वहाँ सैलानियों के लिए मनमोहक दृश्य है। यहाँ से एक पत्ता भी बाहर ले जाने की मनाही है। कहीं इतना अँधेरा कि हाथ को हाथ दिखाई दे तो कहीं पेड़ों से छनकर आती रोशनी। गीलापन लिए दीवारें किसी चित्रकला से कम नहीं और छत से टपकती जल की बूँदे विभोर करने के लिए काफी।
एक गुफा का जिक्र और करते हैं और यह है न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड में वेटोमो गुफा। 

यहाँ हजारों साल से बन रही लाईम की चट्टानें हैं छत से लटकी हुई। इन्हें छूने की मनाही है। छत पर चमकते जुगनुओं की रोशनी अद्भुत और इंसान ने इस दृश्य को दिखाने के लिए की अद्भुत कारीगरी। सीढ़ियाँ बनी हैं और सबसे कमाल की चीज कि नीचे जैसे कि मानो पाताल में पानी पर नाव की सैर। कैसे किया होगा यह सब बहुत काबिले तारीफ और अंधेरे से गुजरते हुए जो बाहर रोशनी में आए तो आश्चर्य चकित हो गए। रास्ते भर बस इतनी टिमटिमाती रोशनी की अंधेरे में आगे बढ़ सकें वरना घुप्प अँधेरा और ऊपर सितारों की तरह चमकते जुगनुओं का झिलमिलाता प्रकाश।


कैसे बनाया होगा यह रास्ता और झील में चलने लायक नाव, सोचकर और जानकर तो इसमें लगे कारीगरों का मन ही मन शुक्रिया अदा किया। बाहर आते ही लगा कि एक रहसमय यात्रा से लौट आए। सामने ही बढ़िया रेस्तराँ जहाँ स्वादिष्ट भोजन से मन तृप्त हो गया।

सोच में गयीं अपने देश की गुफाएँ। एक तो उन तक पहुँचना ही मुश्किल और खाने पीने की तो छोड़िए, शौचालय तक खोजना आसान नहीं। अगर हमारा पर्यटन विभाग सचेत हो जाए और बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर दे तो हमारे देश में ऐसी गुफाएँ कई हैं 

जो रहस्य रोमांच के लिए मशहूर हैं और देशी विदेशी पर्यटकों के लिए जबरदस्त आकर्षण हो सकती हैं।
रोजगार और आमदनी का जरिया सरकार के लिए भी और जो इन स्थानों पर यह सब सुविधाएँ दे सकें उनके लिए भी, बस सोच बदले सरकार और व्यापारी कि अतिथि देव भव भावना साकार हो जाए।


चेरापूंजी के जल प्रपात और काजीरंगा का अभयारण्य दाँतों तले उँगली दबाने को मजबूर कर देता है और हम आँखे फाड़े कुदरत के करिश्मे देखते रहते हैं। ऐसा ही एक जल प्रपात क्वींस टाउन के पास जहाँ जाने के लिए शानदार क्रूज की सुविधा। झरना ऐसा कि बस निगाह हटे और उसकी बौछार से डेक पर बैठे यात्री उससे अपने को बचाएँ या तेज हवा के थपेड़ों से खुद का संतुलन बनाए रखें।

हमारा पिछड़ापन

अपने देश में इस जैसे अनेक झरने हैं लेकिन उन तक जाना आसान नहीं लेकिन पहुँच गए तो सारी थकान दूर हो जाए। क्यों नहीं सरकार और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग इन तक पहुँचने की व्यवस्था करते, यह तब समझ में आया जब किसी तरह वहाँ पहुँचे और अब जब लगभग तीस हजार किलोमीटर दूर अंटार्कटिका महाद्वीप में बसे इस देश में जिसकी कुल आबादी लगभग छियालिस लाख है।

हमारे देश में सैर सपाटे के लिए आने जाने वाले देशी विदेशी सैलानी इतने हैं कि आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ मिल जायें तो पर्यटन केवल शौक नहीं बल्कि एक फलता फूलता उद्योग बन जाए।

अपने देश में कुछेक जगहों को छोड़कर जहाँ पहुँचने के लिए बढ़िया लक्जरी बसे हैं बाकी सब जगह ऐसी बसे हैं जिन्हें खटारा ही कह सकते हैं। विदेशों में बसें ऐसी की उन में बैठकर जाने का मजा ही कुछ और है। प्राकृतिक दृश्य देखने का भरपूर आनंद जबकि अपने यहाँ की बसों में खुद को रास्ते भर संभाल लिया तो गनीमत है कुदरत के नजारे देखने की बात बहुत दूर की है। बसों में नेटवर्क बढ़िया आता है और फोन चार्ज करने की सहूलियत भी रहती है।


यह सोचकर मन को दुःख तो होता ही है कि हमसे बहुत कम आकार और आबादी वाले देशों में सौंदर्य और देखने दिखाने लायक उतनी जगहें नहीं हैं जितनी हमारे यहाँ हैं। तो फिर कमी कहाँ है और गलती कहाँ हो रही है कि हम सैलानियों को बुला नहीं पा रहें।

ज्यादा कुछ नहीं करना, सड़कें और आवागमन तथा संचार साधन ठीकठाक हो जायें, साफ सफाई और सुरक्षा का बंदोबस्त हो जाए, बस इतना ही काफी है।

कितनी गम्भीरता


ऐसा लगता है कि विदेशों विशेषकर योरोप के देशों और ंआस्ट्रेलिया महाद्वीप में पर्यटन को जितनी गम्भीरता से लिया गया उससे यहाँ घूमने जाने से लेकर वहीं बस जाने की इच्छा हो जाना स्वाभाविक है। इसका कारण इन देशों में उपलब्ध वे सुविधाएँ हैं जिनके बारे में हमारे देश में केवल कल्पना ही की जा सकती है। इसी बजह से हम अपने देश को इन देशों से बीसियों साल पीछे मानते हैं। इन देशों की दुकानों पर चीनी और पाकिस्तानी मेक का समान धड़ल्ले से बिकता है। 

उस पर यह भी लिखा होता है कि इस चीज का डिजाइन उनका है पर उसका निर्माण चीन में हुआ है। पर्यटन स्थलों के बाहर दुकानों की बिक्री का अन्दाज इस बात से लग सकता है कि सैलानी कुछ कुछ खरीदता ही है क्योंकि अपने देश जाकर दोस्तों रिश्तेदारों को विदेशी उपहार देने पर जो गर्व का अहसास होता है उसका आनंद ही अलग है। इसकी तुलना में हमारे देश में आए विदेशियों के लिए खरीदारी करने से लेकर खाने पीने तक की गिनी चुनी चीजें ही हैं।


जरा सोचिए अगर यह सब सुविधाएँ हम प्रदान कर दें तो रोजगार के साधन भी बढ़ेंगे और विदेशी मुद्रा की कमाई देश को अलग से होगी।

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