शुक्रवार, 1 मार्च 2019

समुद्र से घिरा अनोखा द्वीपसमूह लक्षद्वीप



जल और जीवन

महान लेखक राहुल सांकृत्यायन कहते हैंमेरी समझ में यदि कोई सर्वश्रेश्ठ वस्तु हैं तो वो है घुमक्कड़ी।जगह-जगह भ्रमण करने से मन और तन दोनों को ताजगी मिलती है और उन चीजों की प्रत्यक्ष जानकारी होती है जिनके बारे में पढ़ते और सुनते रहते है।

विज्ञान प्रसार द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारण होने वाले विज्ञान चैनल के लिए एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए लक्षद्वीप जाना हुआ। विषय था - चैन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियन टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार की गई टेक्नोलॉजी जिससे समुद्र के खारे पानी  से मीठे और पीने योग्य पानी को निकालकर यहां के निवासियां तक पहुंचाया जा रहा है। इस टेक्नोलॉजी को लो टेम्प्रेचर थर्मल डीसेलीनेशन कहा जाता है। इसके जरिये दो से तीन लाख लीटर पीने का पानी प्रति दिन समुद्र के खारे पानी से अलग कर इस द्वीप समूह को मुहैया किया जा रहा है। यह यहां के निवासियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।


इस प्लाण्ट के लगने से पहले जमीन में से पानी निकाले गए पानी  का इस्तेमाल घर गृहस्थी और अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए किया जाता रहा है। खारा होने के कारण यह दूषित जल की श्रेणी में आता था। उल्लेखनीय है कि यह द्वीप समूह पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त है। प्रत्येक घर में शौचालय है और सीवर लाईने बिछी हुई हैं। अब हुआ यह कि सीवर का पानी जमीन के पानी से मिल गया और इस तरह जो पानी निकाला गया वह बीमारियों के फैलने का कारण बना। लगभग प्रत्येक व्यक्ति पेट के रोगों का शिकार हो गया और कैंसर जैसे रोग भी पनपने लगे।


अब स्थिति में बदलाव रहा है और लोग स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था होने से दूषित पानी से होने वाली बीमारियों से बचाव करने में सक्षम है।

समुद्री जल को पीने लायक बनाने के लिए पहले अन्य क्षेत्रों में सफल हो चुकी रिवर्स ओसमोसिस (आर ) पद्धति का इस्तेमाल किया गया। परन्तु वह यहां सफल हो सकी। इसके बाद एनआईओटी ने यह टेक्नोलॉजी विकसित कि जिसमें समुद्र में गइराई से पाईपों के जरिये ठंडे और गरम पानी की निकासी होती है।  इन दोनों के संपर्क में आने से पैदा हुई भाप को पेयजल में बदला जाता है और उसके बाद नलों के जरिये पूरे क्षेत्र में पहुंचाया जाता है। लक्षद्वीप की सड़कों पर जगह जगह नल लगे हुए हैं जहां से निवासी अपनी सुविधानुसार अपनी जरूरत के मुताबिक पानी भरकर ले जाते हैं। इस कारण इसे रोड़ वाटर यानि सड़क का पानी भी कहा जाता है।

घरों में जो पानी है वह ग्राउंड वाटर यानि जमीन से निकाला गया पानी होता है जो आमतौर से पीने लायक नहीं होता और उसका ज्यादातर इस्तेमाल रसोई और पीने के अतिरिकत अन्य कार्यों के लिए होता है। इस प्रकार इस क्षेत्र के लिए पेयजल की व्यवस्था की गई है और लगभग सभी द्वीपों में जिनमें आबादी रहती है इस तरह प्लाण्ट लगाए जाने की योजना है। अभी अगत्ती और कवरत्ती में यह प्लाण्ट काम कर रहे हैं और शीध्र की अन्य क्षेत्रों में भी लगने पर पूरे द्वीप समूह में पेयजल की समस्या दूर होने की व्यवस्था हो जाएगी।

बिजली और संचार की समस्या

लक्षद्वीप की एक दूसरी समस्या यह है कि यहां अभी भी डीजल जनरेटर के जरिए बिजली मिलती है। इस पर काफी अधिक खर्चा आता है और सरकार को लगभग 90 प्रतिशत सब्सीडी देनी पड़ती है। एनआईओटी ने एक और टेक्नोलॉजी विकसित की है जिसे ओटेक अर्थात ओशन थर्मल एनर्जी कनवर्जन कहते हैं। इसके जरिए समुद्र के पानी से बिजली बनाने का प्लाण्ट लगाया जाएगा। इसकी आधारशिला रखी जा चुकी है और कुछ समय में इसके लग जाने से बिजली की समस्या दूर होने की आशा की जा सकती है।

इस क्षेत्र में सोलर एनर्जी प्लाण्ट लगाने के प्रयत्न किए गए और उनसे थोड़ी बहुत बिजली की जरूरत भी पूरी होने लगी लेकिन किन्ही कारणों से इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिली। बिजली के लिए एक सुझाव यह है कि इस क्षेत्र में सौर उर्जा उत्पादन के लिए ऐसे प्लाण्ट लगाए जाएं जिनमें ग्रिड लगाने की जरूरत हो अर्थात ऑफग्रिड सोलर एनर्जी प्लाण्ट लगाने से सौर उर्जा प्राप्त की जा सकती है।

इस क्षेत्र की एक और समस्या यह है कि यहां अभी तक संचार साधनों का विकास बहुत ही सीमित आकार में हुआ है। केवल एयरटेल और बीएसएनएल के ही नेटवर्क काम करते हैं ओर वह भी पूरी तरह भरोसेमंद नहीं हैं। आज जब इंटरनेट क्रांति से पूरा देश लाभान्वित हो रहा है, यह क्षेत्र इस दिशा में अभी बहुत पीछे है। संचार माध्यमों के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने से यहां की सामान्य गतिविधियों पर भी भारी असर पड़ रहा है।


यदि आपके पास यह दोनो नेटवर्क नहीं हैं तब समझ लें कि आप पूरी दुनिया से कट गए हैं। आप किसी से बात कर सकते है और कोई आप तक अपनी बात पहुंचा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि संचार साधनों का तेजी से आधुनिकीकरण हो और यहां जो नेटवर्किंग स्पीड है उसे कम से कम इतना तो किया ही जाए कि देश के साथ संपर्क करना आसान हो जाए।

लक्कद्वीप से लक्षद्वीप का सफर

अब थोड़ा लक्षद्वीप के इतिहास और सौन्दर्य के बारे में भी बात की जाए। यह द्वीप भारत के दक्षिण पश्चिम में फैले अरब सागर में स्थित है। लक्षद्वीप पर कई राजघरानों ने राज किया। इस्लाम धर्म को मानने वाले शासकों ने सबसे अधिक शासन किया, इसलिए यहां के रहन सहन रीति रिवाजों में मुस्लिम-हिन्दु संस्कृति का मिला जुला रूप देखा जा सकता है। पाँचवी छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म के लोग यहां रहते थे और उससे पहले यहां चेरा राजाओं की सत्ता थी। यह क्षेत्र पूर्णतया मुस्लिम बहुल आबादी वाला क्षेत्र है और जब विभाजन हुआ तो डर था कि कहीं पाकिस्तान इस पर अपना दावा कर दे। हमारे तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल की सूझ बूझ से यह क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग बना रहा।


लक्षद्वीप में 36 द्वीप शेष हैं जिनमें से लगभग 11-12 पर आबादी है। यहां की कुल जनसंख्या 75 हजार के आसपास है। कवरत्ती जोकि यहां की राजधानी है उसमें लगभग 11-12 हजार लोग रहते हैं। अगत्ती में एयरपोर्ट है जिसके कारण इसका महत्व बहुत अधिक है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय नारियल की खेती, मछली पालन और जूट से निर्मित वस्तुएं हैं। पर्यटन से भी अच्छी खासी आमदनी होती है।


इस द्वीप में जाने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती है और केरल में कोच्चि से वायुयान अथवा समुद्र में जलयान के जरिए जाना पड़ता है। परमिट व्यवस्था होने से इस क्षेत्र की सुरक्षा चाकचौबन्द रहती है क्यूंकि यह हमारे देश का केन्द्र शासित प्रदेश होने के साथ साथ सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

यहां के निवासी बहुत सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले, एक दूसरे की सहायता को तत्पर औरअतिथि देवो भवकी भावना को साकार करते हैं। रहने के लिए सरकारी गेस्ट हाउस में सीमित व्यवस्था होने से स्थानीय लोग पर्यटकों और यहां व्यवसाय अथवा रोजगार के लिए आने वाले लोगों के लिए पेईंग गेस्ट की सुविधा प्रदान कर रहे है।


पर्यटन के आकर्षण का प्रमुख द्वीप बंगाराम है जहां समुद्र से संबंधित अनेक खेलों की व्यवस्था है। इस द्वीप में पर्यटकों के लिए विश्रामगृह उपलब्ध हैं जहां सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाएं हैं।


लक्षद्वीप का समुद्र बहुत ही स्वच्छ और साफ है। यहां के पानी में समुद्री जीव देखना अपने आप में बहुत ही रोमांच और आश्चर्य पैदा करता है। यह स्थान उन लोगों के लिए भी बहुत पसंदीदा है जिन्हें एकांत में प्रकृति के करीब रहना अच्छा लगता है। इस द्वीप के तट पर बैठकर घंटो समुद्र को निहारा जा सकता है।

लहरों के उठने गिरने का आनन्द अपने आप में अनुपम है। लक्षद्वीप में साफ सफाई को लेकर विशेष सजगता है। हालांकि कुछ स्थानों पर पर्यटकों द्वारा कूड़ा कचरा फेंक देने से समस्या पैदा होती है, यहां आने वालों से यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह इस बात का ध्यान रखें कि उनके द्वारा फेंके गए कचरे से यहां का सौन्दर्य नष्ट हो।

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