आखिर वह घड़ी आ ही गई जिससे यह सुनिश्चित हो गया कि भगवान श्री राम का भव्य मंदिर उनके जन्मस्थान अयोध्या में शीघ्र बन जाएगा। इसी के साथ मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि क्या केवल मंदिर बन जाने से ही श्री रान के प्रति हमारे विचार, सोच और उनके पदचिन्हों पर चलने की आकांक्षा भी पूरी हो जाएगी।
कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म बनाने के सिलसिले में अयोध्या जाना हुआ तो वहां मंदिरों के दर्शन भी किए। इस के साथ एक और चीज जो वहां देखी वह थी गंदगी, अशिक्षा और अव्यवस्था का बोलबाला। राम मंदिर का निर्माण करने वालों से उम्मीद है कि वे इसे पहले समाप्त करेंगे क्योंकि तब ही मंदिर की उपयोगिता सिद्ध हो पाएगी।
बापू गांधी के राम
महात्मा गांधी के राम किसी एक धर्म, जाति या संप्रदाय के नहीं थे बल्कि, पूरा संसार ही हमारा परिवार है, इस धारणा की पुष्टि करते थे। उनके अनुसार सत्य, अहिंसा, वीरता, क्षमा, धैर्य और मर्यादा पालन राम के प्रतीक थे और उनके काम करने की विधि ऐसी थी जिसमें निर्बल की रक्षा हो जैसे कि सुग्रीव को उसकी पत्नी उसके ही भाई के चंगुल से छुड़वाने में छिपकर बाली के प्राण लेने का उदाहरण रखा जा सकता है।
कह सकते हैं कि बाली के वध में राम ने मर्यादा का पालन नहीं किया और न्याय प्रक्रिया का उल्लघंन किया।
अगर राम ऐसा करते तो क्या होता इसे समझने के लिए वर्तमान काल का यह उदाहरण ही काफी है जिसमें निर्भया के गुनहगारों को सात साल बाद भी और फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद न्याय न मिलना है। इसी के विपरीत एक और महिला के गुनहगारों को क्या एनकाउंटर में मार दिया जाना न्याय की परिधि में आयेगा? शायद राम होते तो यही करते और तुरंत न्याय देकर सुशासन का उदाहरण प्रस्तुत करते।
रामराज्य की व्यावहारिकता
श्री राम का एक और प्रसंग उनकी न्यायप्रियता को दर्शाता है, वह है रावण का वध। रावण बल, बुद्धि, वीरता और ज्ञान में अतुलनीय था। उसके पास धन, वैभव की कोई कमी नहीं थी और उसने दुर्लभ शक्तियों को पा लिया था। सीताहरण भी उसकी दृष्टि में उचित था क्योंकि वह उसने अपनी बहन के तथाकथित शील की रक्षा के लिए किया था। इसी के साथ वह अधर्मी, अत्याचारी भी था इसलिए उसके गुण अवगुण हो गए थे।
राम के लिए रावण का वध केवल इसलिए संभव हो पाया क्योंकि विभीषण ने शरीर के उस स्थान पर वाण मारने के लिए कहा जो केवल उसी को ज्ञात था। रावण ने राम से मृत्यु के समय यही कहा कि राम के साथ उसका भाई खड़ा हो गया इसलिए वह उसे मारने में सफल हुए।
राम की न्यायप्रियता और न्याय करने की प्रक्रिया को साम, दाम, दण्ड, भेद के दायरे में रखा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि अन्याय, अनाचार, अत्याचार का अंत करने के लिए इनमें से किसी को भी अपनाया जा सकता है।
आज कुछ लोग नैतिकता, मानवीय अधिकार के नाम पर अपराधियों को संरक्षण देने की बात करते हैं तो सही यही है कि अपराधी के साथ साथ उसका साथ देने वालों को भी दण्ड दिया जाए, यही रामराज्य होगा।
आज के संदर्भ में कहें तो पाकिस्तान के साथ दिखाई देने की कोशिश कर रहे कुछ भारतीय क्या देशद्रोही नहीं माने जाने चाहिएं ?
इसका अर्थ यह हुआ कि यदि रामराज्य लाना है तो राम के अनुसार न्याय में देरी को अन्याय की श्रेणी में माना जाएगा और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
राम के अनुसार हालात के मुताबिक अपने को बदलना चाहिए और इसी कड़ी में दूसरों से यह अपेक्षा रखने कि वे भी हमारे अनुसार बदलें, इसके स्थान पर उन्हें अपने हिसाब से बदलने दीजिए।
आज के संदर्भ में सरकार और राजनीतिक दल स्वयं चाहे अपने को न बदलें पर जनता से यही चाहते हैं कि वह उनके मुताबिक बदल जाए। उदाहरण के लिए यदि सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है, भेदभाव करती है और अन्याय होने पर आंखें फेर लेती है तो रामराज्य में प्रजा क्या करती? प्रजा ऐसे शासन को उखाड़ फेंकती।
गांधी जी के रामराज्य में ग्राम स्वराज प्रमुख है। उन्होंने यह धारणा इसीलिए बनाई थी क्योंकि भारत ग्रामीण इकाइयों से बना देश है और कस्बे, नगर और महानगर उससे बनी इकाईयां हैं। इसका अर्थ यह है कि ग्राम के विकसित होने पर ही उससे बनी इकाईयां फल फूल सकती हैं। ऐसा न होने का नतीजा यह हुआ कि शासक, जमींदार और पूंजीपति का ऐसा गठजोड़ बना कि गांव खाली होने लगे, हमारी प्राकृतिक और वनीय संपदा को समाप्त किया जाने लगा और आर्थिक असमानता ने भीषण रूप ले लिया।
किसान को मजबूर ही नहीं किया बल्कि उसे एक भिखारी के स्तर पर ला खड़ा किया। रामराज्य में गाँव के स्तर पर ग्रामीण और कुटीर उद्योग खुलते और आसपास जो कच्चा माल होता उससे पक्का माल बनता और इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की नींव डाली जाती।
ऐसा न होने पर गांव देहात में बेरोजगार होने पर शहरों में पलायन शुरू हुआ और उनमें आबादी बढ़ने से जो समस्याएं पैदा हुईं उनमें बेरोजगारी, बीमारी और गरीबी प्रमुख हैं।
रामराज्य में शिक्षा संस्थान और विज्ञान के केंद्र नगरों से दूर वन्य क्षेत्रों में होते थे जहां प्राकृतिक संसाधन होने से शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान और प्रयोग करने की सुविधाएं होती थीं। हमारी वनस्पतियां और वनों से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का वैज्ञानिक ढंग से विकास करने के साधन उपलब्ध होते थे। एकांत में अध्ययन और मनन तथा चिंतन करने की परिपाटी होती थी।
आज लगभग सभी शिक्षा संस्थान या वैज्ञानिक शोध केंद्र अधिकतर शहरों में स्थापित हैं और प्रकृति से संबंध टूट गया है। नतीजा यह हुआ कि जहां प्राकृतिक संपदा को और अधिक समृद्ध बनाने की और ध्यान दिया जाता, वहां उसका दोहन होने लगा और हमारे वन, पर्वत विनाश की ओर बढ़ने लगे।
इसका एक और परिणाम हुआ और वह यह कि हमारी वन संपदा, वनस्पतियों और जैविक संसाधनों पर विदेशियों की नजर पड़ गई और वे क्योंकि उनकी उपयोगिता जानते थे इसलिए इन सब की तस्करी का एक ऐसा अंतहीन सिलसिला शुरू हुआ जो देश की दौलत विदेशियों तक पहुंचा रहा है और वे उससे न केवल मालामाल हो रहे हैं बल्कि दुनिया पर छा रहे हैं। मतलब यह कि पूंजी हमारी और धनवान कोई और हुआ जा रहा है।
राम का दैवीय राज
रामराज्य की कल्पना करते समय हम उसे देवताओं का राज्य जैसा समझने लगते हैं जबकि राम का जीवन एक सामान्य मनुष्य की भांति था। वे सामान्य व्यक्ति की तरह सीता के वियोग में रोते हैं, विलाप करते हैं और क्रोध करते हैं। समुद्र द्वारा रास्ता न देने पर उसे सुखा देना चाहते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के समझाने पर शांत और स्थिर होते हैं।
राम के लिए किसी भी जीव की रक्षा करने के साथ साथ उसे मित्र बना लेना भी आवश्यक है। उनके लिए न कोई छोटा है न बड़ा, सब बराबर है।
जो लोग रामराज्य को हिन्दू राज्य से जोड़ते हैं उनके लिए यह समझना जरूरी है कि रामराज्य किसी एक धर्म या जाति की बात नहीं करता बल्कि सभी को उसमें समाहित मानता है।
राम नीति के परिचायक है और कुटिलता को भी नीति से ही हराना चाहते हैं। कैकई के कुटिल व्यवहार से दुखी न होकर पिता की आज्ञा मानते हैं। परिणाम की चिंता किए बिना वनवास स्वीकार करते हैं। इसी का फल होता है कि कैकई का हृदय परिवर्तन हो जाता है।
आशा है राम मंदिर के साथ साथ रामराज्य की कल्पना भी साकार होगी जिसमें असमानता, निर्धनता और अन्याय का कोई स्थान नहीं होगा।
(भारत)
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