शनिवार, 18 अप्रैल 2020

तालाबंदी, कर्ज देने की पेशकश, वसूली और शोषण का जाल










इस समय पूरा देश एक ऐसी आपदा के दौर से गुजर रहा है जिसका कोई उपाय न होने के कारण हर व्यक्ति असहाय हो गया है। ऐसे में जहां मानवीयता के उदाहरण मिल रहे हैं, वहां मुसीबत में फंसे लोगों के साथ स्वार्थी लोग उनका शोषण करने की अमानुषिक हरकत करने की मिसाल भी कायम कर रहे हैं।





कर्ज वसूली का माया जाल

पहले ऐसे कर्ज लेने वालों की बात करते हैं जिन्होंने सरकारी या ऐसी गैर सरकारी संस्थाओं से ऋण लिया है जो रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार काम करने को बाध्य हैं। सरकार की घोषणा के मुताबिक ये कर्जदार चाहें तो जून तक किश्त न चुकाएं और इससे उनकी क्रेडिट रेटिंग पर कोई असर नही पड़ेगा। इसमें झोल यह है कि किश्त पर जो ब्याज लगता है वह तो इकठ्ठा देना ही पड़ेगा पर इस ब्याज पर भी इस छूट की अवधि का ब्याज लगेगा। समझदारी यही है कि इस विकल्प को चुनने के बजाय किश्त का भुगतान पहले की तरह ही करते रहें।
दूसरे कर्जदार वे हैं जो देश में कुकुरमुत्तों की तरह उग आई फाइनेंस कंपनियों के जाल में फंसे हुए हैं। वे कोई सरकारी निर्देश नहीं मानती और अपने ही नियमों और ब्याज की दर पर उन लोगों को कर्ज देती हैं जिन्हें सरकार के निर्देशानुसार चलने वाली संस्थाओं से कर्ज नहीं मिल सकता।


इनका ब्याज वैसा ही होता है जैसा किसी जमाने में गांव के साहूकार का हुआ करता था और जिसका कर्ज पीढ़ियों तक उतरने का नाम ही नहीं लेता था और वह कर्जदार से मनमाना ब्याज तो वसूलता ही था, साथ में उसकी फसल, जमीन,घर से लेकर वह खुद और उसका परिवार तक उसके पास गिरवी रखा रहता था।



आज लॉकडाउन के कारण वेतन न मिलने, खर्च न निकलने और नौकरी छूट जाने या काम धंधा चैपट हो जाने से इन कर्जदारों के पास दिन रात लेनदारों की धमकियां तो आ ही रही हैं, बल्कि उनके दिए रेफरेंस मतलब दोस्तों, रिश्तेदारों तक को धमकियां मिल रही हैं कि या तो किश्त फौरन दो वरना उनकी वसूली ब्रिगेड कुछ भी कर सकती है, दुगुनी चैगुनी पेनल्टी लगा दी जाती है और कर्जदार का जीना मुश्किल करने के लिए सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।



जो लोग लॉकडाउन में जिन्दगी का जोखिम उठाकर भी शहर छोड़कर जाने की कोशिश कर रहे हैं उनमें बहुत बड़ी संख्या में ऐसे कर्जदार भी हैं जो किश्त और ब्याज पर भारी जुर्माना न देने के कारण भागने में ही अपना भला समझ रहे हैं कि किसी तरह इनसे छुटकारा तो मिले।
ये ब्याज कितना होता है उसे सुनते ही होश उड़ जायेंगे और समझा जा सकता है कि जिसने लिया वह कितना बेबस है। ज्यादातर कर्जदार वे है जिन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बैंकों की फॉर्मेलिटी पूरी न कर सकने के कारण इनसे उधार लिया, फिर वे है जिन्होंने शहर में घर का किराया और सिक्योरिटी की रकम जुटाने के लिए पैसा लिया, उनके बाद वे जिन्होंने कोई रोजगार जैसे ऑटो टैक्सी चलाने या गुजारा करने के लिए कोई दुकान या छोटा मोटा काम खोलने के लिए रकम ली और ऐसे ही दूसरे कर्जदार हैं जो इन गैर कानूनी कर्जदाताओं के शिकंजे में फंस गए और अब उनके पास इस सब से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है क्योंकि सब कुछ बंद है।



इनके पास आधी रात से लेकर सुबह होने तक फोन आते हैं, दोस्त रिश्तेदारों को परेशान किया जाता है और किश्त, भारी ब्याज और उस पर जुर्माना वसूलने के लिए बाउंसरों को भेजने की धमकी दी जाती है।


उपाय क्या है !


सबसे पहले तो इन सभी देनदारों को हिम्मत जुटानी होगी, लेनदारों की धमकी का जवाब इन्हीं की जुबान में देते हुए पहले तो इनकी लिखित शिकायत इन्हें भेजनी होगी, जिसका असर इन पर नहीं होगा लेकिन एक कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, उसके बाद रिजर्व बैंक को इनकी शिकायत करनी होगी और फिर स्थानीय प्रशासन, पुलिस में इनके खिलाफ धमकी देने की एफ आई आर करनी होगी। जो डर गया वो मर गया के ब्रह्म वाक्य को अपनाते हुए इनसे डरना छोड़कर इनका मुकाबला करने की हिम्मत जुटानी होगी और उसकी वजह यह कि इनका कर्ज देने और उस पर मनमाना ब्याज वसूलने का पूरा कारोबार ही गैर कानूनी है और यह या तो सीधे रास्ते पर आ जाएंगे अथवा जेल की हवा खाएंगे।


इसके अतिरिक्त जब देनदार को घर में रहना है तो लेनदार या उसके गुंडों को भी तो घर में ही रहना पड़ेगा क्योंकि जान सभी को प्यारी है।


ऋण की बरसात


अब आगे जो होने वाला है, उसकी एक बानगी यह है कि लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद बैंक और दूसरे संस्थान जो उधार देने के व्यापार से जुड़े हैं, उनके पास इतनी लिक्वडिटी यानी अतिरिक्त धन जुटने वाला है कि वे एक प्रकार से ऋण देने के लिए उत्सुक और तैयार रहेंगे लेकिन यहीं कर्ज लेने वालों को सावधानी बरतनी होगी।

अभी से ऐसे फोन आने शुरू हो गए हैं जिनमें आपकी गाड़ी का लोन उतरने या अगर कोई किश्त बाकी नहीं बची है तो नया ऋण लेने की पेशकश की जा रही है। आपके घर के लोन पर भी नया लोन मिल सकता है। व्यवसाय, कारोबार से लेकर नई गाड़ी या घरेलू और विलासिता की सामग्री खरीदने के लिए पहले से ज्यादा आसान किश्तों की ऑफर आने लगी है।  भ्रामक कम ब्याज की दर का लालच देकर ग्राहकों को भरमाने की पूरी तैयारी के साथ ये सभी बैंकिंग या नॉन बैंकिंग संस्थान आपके घर या दफ्तर का चक्कर लगाने वाले हैं।

यह ऐसा मायाजाल है जिसमें बिना सोचे समझे अगर एक बार फंस गए तो निकलना इतना कठिन है कि आपकी जमापूंजी, बचत समाप्त होने के अतिरिक्त जीवन का जोखिम भी बढ़ सकता है।

ऋण लेना आसान है क्योंकि बैंक वाले अपने इतने एजेंट रखते हैं कि कोई न कोई तो अपने चंगुल में फंसाने में कामयाब हो ही जाता है। इसलिए केवल और केवल बहुत ही ज्यादा जरूरी होने पर ही कर्ज लेने के बारे में सोचें, कर्ज के दस्तावेजों की भली भांति जांच परख कर लें, ब्याज मिलाकर बनाई गई किश्त की स्वयं गणना कर लें क्योंकि धोखे की शुरुआत यहीं से होती है।

बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी योजनाओं के लिए यदि पात्रता नहीं है तो कभी भी अपना घर, जमीन जायदाद या जेवर आदि गिरवी रखकर ऋण न लें क्योंकि ऐसा करना  अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारना होगा।

बच्वों को लेकर न तो ऐसे सपने बुनें और न ही उन्हें देखने दें जो आपकी सामर्थ्य से बाहर हैं। ऐसे एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों और हजारों भी नहीं बल्कि लाखों मां बाप हैं जो नकली और गैर कानूनी तरीके से शिक्षा की दुकान चलाने वालों के जाल में फंसकर अपना सुख चैन गवां चुके हैं। युवा बेरोजगारों में ऐसी ही दुकानों से पढ़ाई कर आने वाले लड़के लड़कियां है जो अक्सर सब कुछ लुटाने के बाद भी होश में नहीं आते।


सरकार की नाकामी


जहां तक सरकार का प्रश्न है तो ऐसा नहीं है कि वह और उसके अधिकारी इन सब बातों को जानते न हों पर उनमें बैंकिंग व्यवस्था को लेकर कोई गंभीरता नहीं है और जनता को सस्ता ऋण और कम ब्याज दर से लुभाने वाली इन कर्ज देने वालों की दुकानों पर ताला लगाने में कोई रुचि नहीं है।

इसका कारण कुछ भी हो लेकिन इससे एक बड़ी आबादी का इतना शोषण हो रहा है कि वह निराश होकर या तो आत्म हत्या की ओर बढ़ने लगती है या विद्रोही होकर हिंसक रूप धारण करने की बात सोचने लगती है। यह दोनों ही स्थितियां बेहद खतरनाक हैं जबकि इनसे निपटने का एक हो रास्ता है कि कड़े कानून बना कर उन पर सख्ती से अमल किया जाए।

आज देश में स्टार्ट अप कंपनियों की विफलता, कौशल विकास योजनाओं की असफलता और युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए बनाई गई आधी अधूरी योजनाओं की नाकामयाबी बताती है कि गरीबी और बेरोजगारी बढ़ने की असली वजह यह है कि राजनीतिक और प्रशासनिक तरीकों में सरकार के मुखिया का ईमानदार और परिश्रमी होने के बावजूद कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

सरकार को गैर कानूनी ढंग से चलने वाली कर्ज की दुकानों को बंद करने के लिए कड़ाई से काम लेना होगा, सरकारी या निजी संस्थाओं से जरूरत पड़ने पर ऋण लेने की शर्तों को आसान बनाना होगा और ज्यादा ब्याज वसूलने वालों पर लगाम लगाने के उपाय करने होंगे। यह होने पर ही तालाबंदी के बाद होने वाली मंदी और बढ़ने वाली बेरोजगारी पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

यह न केवल आज की जरूरत है बल्कि भविष्य का भी संकेत है। 


भारत

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