शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

कोरोना बीमारी से निपटने के बाद के हालात पर सोचना जरूरी है।












जैसा कि कहते हैं कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, मतलब हम जो भी करते हैं, बदले में  कुछ न कुछ होना तय है। इसका अर्थ एक तरफ तो यह हुआ कि आज जो हम कर रहे हैं उसे करने से पहले भली भांति सोच विचार कर लें ताकि उसका परिणाम जब निकले तो उसका अफसोस न हो और दूसरी तरफ यह कि यदि परिणाम अपने अनुकूल न निकले तो अफसोस, चिंता या वाद विवाद न कर उसे नियति का उपहार समझ स्वीकार करें और फिर से अपना लक्ष्य पाने की कोशिश करते रहे।



खतरे की घंटी

अब हम आते हैं इस बात पर कि जब इस बीमारी का फैलाव शुरू हुआ तो सबसे पहले और सबसे बड़ी तादाद में वे देश थे जो विकसित, अमीर, साधन संपन्न और आर्थिक तथा सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने में सबसे आगे रहते थे।

चीन से निकली बीमारी जब अमेरिका, यूरोप, एशिया के अमीर देशों में पहुंची तो उन्होंने अपने घमंड के कारण
चीन इस बीमारी के बारे में जानता था लेकिन उसके हाथ से भी जिन्न निकल चुका था, फिर भी समझदारी दिखाते हुए वुहान शहर की तालाबंदी कर दी जिसका संज्ञान जिन देशों ने लिया उन्होंने भी अपने यहां खतरे को महसूस
रते हुए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए।

फरवरी में जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन बार बार हाथ धोने, खांसते, छींकते रुमाल रखने और फिर मास्क पहनने की बात करने लगे तो लगा कि खतरा आसपास ही है। इस क्रिया की प्रतिक्रिया यह हुई कि लोग सावधान होने लगे।


सरकार क्या, हर कोई जानता है कि हमारी 75 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में है और शहरों की बड़ी आबादी उन लोगों की है जो गांव देहात से रोजगार, शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय के लिए यहां बस गए हैं आम तौर से रिटायर होने या उससे पहले मौका मिलते ही अपने गांव या देस जाने के लिए उतावले रहते हैं।

अब जैसे ही लॉकडाउन हुआ, ये लोग शहरों में कोई इंतजाम न होने से बड़ी संख्या में पलायन करने लगे।

सरकारों की चूक, गलती या दंडनीय अपराध यह था कि तालाबंदी करते ही उसे लोगों को अपनी जगह पर ही रुकने या उन्हें जहां वे जाना चाहे, सुरक्षित पहुंचाने का इंतजाम नहीं हुआ। रुपए पैसे की सरकारी मदद की आधी अधूरी बात भी कई दिन बाद हुई। इस भूल का परिणाम दिखने लगा है और संक्रमित होने वालों की संख्या तेजी  से बढ़ रही है।



चुनौतियों का सामना



जो आया है वह जाएगा, इस के मुताबिक यह बीमारी भी देर सवेर खत्म हो ही जाएगी और इसका इलाज भी निकल आयेगा। लेकिन तब तक अगर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो उसकी प्रतिक्रिया में गरीबी, बेरोजगारी से लेकर अकाल और भुखमरी तक का सामना करना पड़ सकता है।

इसे वरदान ही कह सकते हैं कि हमारे देश में परिवार नियोजन की असफलता का परिणाम देश की तीन चैथाई आबादी का युवा होना है और इस बीमारी से मरने वाले अधिकतर सभी देशों में वे हैं जो 50-60 की उम्र पार कर चुके हैं और क्योंकि उन देशों में आबादी को बढ़ने नहीं दिया गया तो वहां युवा आबादी कम होती गई।

इस महामारी का पहला दुष्परिणाम यह होने वाला है, अगर हम सावधान न रहे,  देश में युवा आबादी के लिए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि करोड़ों की संख्या में लोग, औद्योगिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में जबरदस्त मंदी के कारण बेरोजगार होने वाले हैं।
सरकार तो क्योंकि अपनी लेट लतीफी और वक्त पर सोते रहने के कारण सही समय पर उचित निर्णय न लेने के लिए मशहूर है, इसलिए यह नागरिकों को ही सोचना पड़ेगा कि आने वाले संकट का मुकाबला कैसे करें?




समय का इस्तेमाल

जरूरी है कि तालाबंदी के दौरान घर में बैठकर योजना बनाना  शुरू कर दें कि नौकरी छूट जाने, व्यापार और उद्योग में घाटा हो जाने और जो भी जमा पूंजी है, उसके समाप्त होते जाने की अवस्था में आप को क्या करना है। कोई नया काम धंधा या रोजगार करने के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए जो आप अपनी शिक्षा और योग्यता के बल पर कर सकने का हौसला रखते हैं। यह इसलिए है कि कहीं ‘जब चिड़ियां चुग गई खेत तो पछताने से क्या लाभ, आप पर न लागू हो जाए। इसमें अपने परिवार से भी चर्चा करें क्योंकि सब घर में ही हैं।

दुनिया के जो विकसित और अमीर देश हैं, उनके यहां संसाधन तेजी से कम होने वाले हैं, ऐसे में उन देशों को अपने यहां बनी चीजों का निर्यात करने की अपार संभावनाएं होने वाली है। चीन ने यह काम इस बीमारी से पूरी तरह निजात पाने से पहले ही करना शुरू कर दिया है।

आने वाले दिनों में भारत को चीन से आगे निकलने की चुनौती को स्वीकार कर अपने लिए नए बाजार खोजने होंगे और विज्ञान तथा तकनीक के आधार पर आधुनिक व्यापारिक तरीकों को अपनाने के बारे मैं अभी से सोचना होगा।

एक बात और है और वह यह कि जो बड़ी संख्या में लोग देहात  चले गए हैं तो उन्हें वहीं रोककर उनके लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा कर दिए जाएं ताकि वे वहीं रहने लगें और शहरों में पलायन न करें। इस तरह उनके जाने से शहरों में खाली हुए रोजगार शहरी लोग अपना सकते हैं और शहरों में जो बेरोजगारी बढ़ने वाली है उसका मुकाबला कर सकते हैं।

सरकार और उद्योगपतियों के लिए यह एक अनूठा अवसर है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में कल कारखाने स्थापित करने की योजना बनाकर उस पर अमल  कर सकते हैं। कच्चा माल, मजदूर, कामगार और पढ़े लिखे बेकार बैठे नौजवान उद्योगपति और एंटरप्रेन्योर के सपने साकार कर सकते हैं और यह अपने आप में क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।

यह बात तथ्यों पर आधारित है। जिन देशों में आर्थिक मंदी होने वाली है, वहां ग्रामीण क्षेत्र 20 प्रतिशत से अधिक नहीं है जबकि हमारे यहां उसका उलट है, मतलब 80 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र है। कृषि कर्म को उद्योगों की स्थापना से जोड़कर यह सरकार किसानों की आमदनी दुगुना करने का वायदा पूरा कर सकती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में अद्योगिक क्रांति का फायदा किसान को ही होगा।



इसके बाद उन लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए जिन्होंने अपना धन, जमापूंजी या वृद्धावस्था के लिए बैंकों में रखा है या फंड्स में लगा रखा है तो उन्हें अभी से सावधान होकर अपने इन्वेस्टमेंट सलाहकार से बात करना शुरू कर देना चाहिए। बाजार में लगातार गिरावट आगे भी जारी रहेगी और इससे उबरने में काफी समय लगने वाला है।


इसका अर्थ यह हुआ कि अपनी गांठ का पैसा मजबूती से पकड़ कर रखना है और उसे फिसल कर खो जाने से बचने के उपाय करने हैं।
यह कुछ ऐसी चुनौतियां हैं और इसके साथ ही अनमोल अवसर हैं जो देश का भाग्य बदल सकते हैं। तालाबंदी का इस्तेमाल अपनी आमदनी बढ़ाने के बारे में सोचने और योजना बनाने में सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
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भारत



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