शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

उपभोक्ता के लिए नया कानून लागू होने के अर्थ










पिछले वर्ष संसद द्वारा पारित नए उपभोक्ता संरक्षण कानून को इस महीने की बीस तारीख से लागू कर दिया गया है। जरूरी है कि इसके बारे में सामान्य उपभोक्ता को जानकारी हो ताकि उसके साथ धोखाधड़ी या फरेब या गुमराह किए जाने पर वह सही कदम उठा सके और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए उचित कार्रवाई करने की दिशा में आगे बढ़ सके।



कानून का विस्तार

नए कानून में बाजार में बिकने के लिए आई सभी वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया गया है जिसमें अब टेलीकॉम, हाउसिंग कंस्ट्रक्शन, ऑनलाइन और टेली शॉपिंग के जरिए खरीदी जाने वाली वस्तुएं और सेवाएं भी शामिल कर ली गई हैं।


अनुचित व्यापार के दायरे में अब बिल या रसीद न देना, तीस दिन में वापिस की गई वस्तु को स्वीकार न करना, और व्यक्तिगत जानकारी जो खरीददारी करते हुए दी गई उसे उजागर करना भी शामिल कर लिया गया है।
आम तौर से कोई खरीद करने पर दुकानदार नाम, पता, फोन नंबर, ईमेल जैसी जानकारी लेता है जिसमें कुछ गलत नहीं लगता लेकिन अगर उसकी यह जानकारी दुकानदार किसी और को देता है तो अब उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।



उत्पाद की जिम्मेदारी कोई भी विक्रेता नहीं लेता था, वह उसके खराब निकलने पर निर्माता कंपनी के पास जाने को कहता था और उपभोक्ता उसके चक्कर काटता रहता था। वस्तु के वापिस लेने की कोई व्यवस्था नहीं थी। अब निर्माता, विक्रेता या सर्विस देने वाले पर इस बात की कानूनन जिम्मेदारी है कि वह जो बेच रहा है, वह ठीक न निकलने पर उसकी  शिकायत का निपटारा करने के लिए कदम उठाए।



इसका अर्थ यह हुआ कि अब कोई दुकानदार यह कहकर नहीं बच सकता कि उसे जैसा माल निर्माता कंपनी ने दिया, वह वैसा ही दे रहा है। मतलब यह कि अब विक्रेता को निर्माता से बेचने के लिए उत्पाद लेते समय यह निश्चित करना होगा कि वह वस्तु सभी मानदंडों पर खरी है। अगर कोई गड़बड़ है और वस्तु की जो क्वालिटी  बताई गई है, वह नहीं पाई जाती तो इसकी जिम्मेदारी दुकानदार की भी उतनी ही है जितनी उसे बनाने वाली निर्माता कंपनी की।



इसी के साथ अब यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि खरीदी गई वस्तु से चोट लगती है या शारीरिक नुकसान होता है तो पहले  केवल वस्तु की कीमत का ही मुआवजा मिल सकता था, अब निर्माता को उस वस्तु से हुए सभी तरह के जान माल के नुकसान का भी भुगतान करना होगा। पहले इसके लिए सिविल कोर्ट जाना पड़ता था, अब उपाभोता अदालत में ही इसका फैसला किया जा सकेगा।


कहीं से भी शिकायत करें


अब कहीं से भी उपभोक्ता शिकायत कर सकता है, पहले विक्रेता या सेवा देने वाले के इलाके में शिकायत करने जाना होता था। अब देश में कहीं से भी खरीदी वस्तु के खराब निकलने पर निर्माता, विक्रेता के खिलाफ किसी भी जगह से शिकायत  की जा सकती है। इससे बड़ी राहत मिलेगी। पहले होता यह था कि मान लीजिए आप दिल्ली किसी काम से आए और कुछ खरीददारी कर वापिस अपने शहर चले गए। सामान खराब था तो शिकायत करने दिल्ली आना पड़ता था। अब जहां रहते हैं या काम करते हैं, वहीं पर उपभोक्ता अदालत में शिकायत कर सकते हैं। इसके साथ ही अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी अपनी शिकायत की सुनवाई की जा सकती है, उसके लिए कहीं जाने की जरूरत न रह जाने से समय और पैसे दोनों की बचत होगी।



अभी तक कोई अलग से रेगुलेटर अथॉरिटी नहीं थी। अब सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी का गठन होने से उपभोक्ताओं को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। अक्सर दुकानदार और निर्माता अपनी मिलीभगत से उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी करने से चूकते नहीं थे। इसका कारण उन पर कोई वैधानिक नियंत्रण का न होना था। अब यह अथॉरिटी बनने से वे अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे। इसका असर वस्तुओं की जरूरत से ज्यादा रखी और वसूली जा रही कीमतों पर भी पड़ेगा। इसके गठन से उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए बनी संस्थाओं को बेहतर ढंग से काम करने का अधिकार मिलेगा और वे ऐसे मामलों में ठोस कार्रवाई करने के लिए मुकदमा कर सकती हैं जिनका व्यापक असर होता है।

अब एक करोड़ तक के लिए जिला, दस करोड़ तक राज्य और उससे अधिक के लिए राष्ट्रीय आयोग में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।


पहले यह सीमा क्रमशः बीस लाख, एक करोड़ और एक करोड़ से अधिक की थी।
अब निचली अदालत के फैसले पर उससे ऊपर की अदालत में अपील की जा सकेगी। राष्ट्रीय आयोग तक में मामला नहीं सुलझता है तो सुप्रीम कोर्ट में जाया जा सकता है।


ब्रांड एंबेसडर सावधान


गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए दो साल की कैद और दस लाख तक का जुर्माना हो सकता है। अगर दोबारा ऐसा किया तो पांच साल की कैद और पचास लाख का जुर्माना हो सकता है।
अगर कोई ऐसे विज्ञापनों को एंडोर्स करता है तो उसके खिलाफ भी कार्यवाही की जा सकती है। अब ब्रांड एंबेसडर बनने से पहले किसी भी सेलेब्रिटी को उस वस्तु या सेवा के सही और बताई गई क्वालिटी के मुताबिक होने के बारे में पूरी जांच कर लेनी होगी वरना उन पर भी कार्यवाही हो सकती है।



इस नए कानून से उपभोक्ताओं को मुकदमा लड़ने में सहूलियत तो दी गई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस कानून को लागू करने के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं। हमारी जो जिला उपभोक्ता अदालत हैं, उनकी हालत देखकर नहीं लगता कि इस नए कानून के प्रावधानों को पूरी तरह लागू किए जाने के लिए वे सक्षम हैं।
इस कानून से सबसे बड़ी राहत उन उपभोक्ताओं को मिलेगी जो घर बैठकर खरीददारी करते हैं। पहले उनके अधिकारों की रक्षा की ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने पर  कोई व्यवस्था नहीं थी।  अब जैसे आमने सामने बिक्री होती है, उसी तरह इसे भी माना जाएगा और कानून के दायरे में रखा गया है।


अमेजन, फ्लिप्कार्ट, स्नैपडील, मेक माई ट्रिप, स्विगी जैसी कंपनियों से सामान खरीदने पर उन्हें ये वस्तुएं बेचने वाली या सर्विस देने वाली कंपनियों की भी जानकारी देनी होगी। इसके साथ ही रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी जैसी शर्तों का खुलासा करना होगा। अब सामान की डिलीवरी करने के बाद उन्हें माल के सही क्वालिटी का होने और जो ऑर्डर दिया गया था उसी के अनुसार सामान देने की जिम्मेदारी भी लेनी होगी।


इसे इस तरह से समझें पहले नकली सामान मिलने पर यह ई कॉमर्स कंपनियां अपना पल्ला यह कहकर झाड़ लेती थीं कि वे इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। अब नकली सामान बेचने वाली ऐसी  ई कॉमर्स कंपनियों पर कार्यवाही की जा सकेगी।


किसी भी ई कॉमर्स कंपनी को 48 घंटों में किसी भी शिकायत के प्राप्त होने की रसीद देनी होगी और उसके एक महीने के भीतर उस शिकायत का निपटारा करना होगा।
पहले मेडिएशन यानी मध्यस्थता का कोई कानूनी प्रावधान नहीं था, अब अदालत इसके जरिए सेटलमेंट करा सकती है।
उपभोक्ता के अधिकारों में बढ़ौतरी तो हुई है लेकिन इस प्रश्न का जवाब तो समय के साथ ही मिलेगा कि ये उसे राहत देने में कितने सक्षम हैं। 


Email:pooranchandsarin@gmail.com

(भारत)


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