शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

अपराधी बनने की शुरुआत घर से ही होती है

 


अक्सर जब यह देखने, सुनने, पढ़ने को मिलता है और आपसी बातचीत में चर्चा का विषय बनता है कि समाज में अपराध बढ़ रहे हैं, लोग जरा सी बात पर मारपीट, हत्या कर देते हैं, जो बच्चे अभी वयस्क भी नहीं हुए, इन कामों में शामिल हैं, बड़ों की बात मानना या उनका आदर करना तो दूर, उनका अपमान करने से लेकर उनके साथ भी दुश्मन जैसा व्यवहार करने से नहीं चूकते तो सोचना जरूरी हो जाता है कि आखिर गलती कहां हुई है?

हकीकत का सामना

इससे पहले कि आगे बढ़ें, एक अनुभव बताना है और वह यह कि कुछ वर्ष पूर्व एडल्ट एजुकेशन विभाग के लिए फिल्म श्रृंखला बनाते समय एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई जिसकी उम्र पचास के लगभग थी, वह खूंखार जैसा दिखता था, बदन पर कई जगह कटने फटने के निशान थे और स्वभाव झगड़ालू था।

यह व्यक्ति अपने पड़ोसी से लड़ रहा था और उसे धमकी दे रहा था कि अगर जो वह कर रहा है, उससे बाज नहीं आया था तो उसका वह हाल करेगा कि याद रखेगा।

बात बस इतनी थी कि पड़ोसी अपनी 15-16 साल की लड़की को स्कूल जाने से रोक रहा था और अपनी मां के साथ दूसरों के घरों में काम करने जाने और पैसे कमाने के लिए कह रहा था जबकि लड़की पढ़ाई में होशियार थी और उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। इस बात को लेकर घर में रोज कोहराम मचता रहता था।

जब पड़ोसी ने कहा कि उसकी लड़की है, वह जो चाहे उसके साथ करे तो इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि वह क्या उसे जानता नहीं है, लड़की को स्कूल जाने से रोक और फिर देख मैं क्या करता हूं।

यह घटना फिल्म बनाने के लिए बहुत अच्छी थी तो जब उस व्यक्ति से पूछा कि वह क्यों अपने पड़ोसी की लड़की के लिए इस तरह की जिद कर रहा है तो उसका जवाब चैंकाने वाला था। कहने लगा कि जब वह 10-12 साल का था तो अक्सर स्कूल से गैरहाजिर हो जाता था, अध्यापक की तो क्या कहें, मातापिता को भी बहका देता था।

बड़ा होने पर संगत उसके जैसों की ही मिली और पहले तो चोरी चुपके और फिर खुलेआम शराब, सिगरेट, ड्रग्स की लत लग गई। घरवालों ने पैसे देने बंद करने से लेकर यह भी कह दिया कि पेट भरना है तो कमाई करो लेकिन अनपढ़ होने, कोई काम करना न जानने के कारण किसी तरह की आमदनी तो हो नहीं सकती थी, इसलिए चोरी, जेब काटने और दूसरे अपराध करने शुरू कर दिए। इस तरह थाना, पुलिस, कोर्ट कचहरी और जेल आना जाना शुरू हो गया।

पूरा जीवन एक अपराधी की तरह बीतने लगा और अभी भी पीछा नहीं छूटा है। इसलिए अब मैं अगर किसी लड़के या लड़की को स्कूल जाते और पढ़ाई करते नहीं देखता हूं तो मेरा खून खौलने लगता है।

यह किस्सा सुनाने का मतलब इतना ही है कि हमारे देश में जितने भी जुवेनाइल क्राइम होते हैं, उनके पीछे यही एक कारण है कि पढ़ने लिखने की उम्र में जैसे भी हो पैसा कमाने के चक्कर में पड़ गए और इसका ऐसा लालच पड़ा कि सही और गलत समझना ही भूल गए।

युवा वर्ग और अपराध

दौर चाहे वर्तमान हो या पिछले कुछ वर्षों का इतिहास हो, आंकड़े इसी बात की गवाही देते मिलेंगे कि युवा वर्ग में अपराध करने और इसमें औरों को भी शामिल करने की प्रवृत्ति का सबसे बड़ा कारण उनका अनपढ़ या मामूली पढ़ा लिखा होना और किसी भी तरह का काम करने के कौशल का न होना है।

निर्भया, निठारी से लेकर हाथरस या किसी भी स्थान पर किसी भी ऐसे जघन्य अपराध की खोजबीन कर लीजिए जिसमें 15 से 25 साल तक का युवा वर्ग सम्मिलित पाया जाता हो तो लगभग शत प्रतिशत वे ऐसे मिलेंगे जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा या छोड़ दिया या निकाल दिए गए हों।

यही कारण है कि बहुत से विकसित और विकासशील देशों में अगर स्कूल जाने की उम्र का कोई  लड़का या लड़की पढ़ता लिखता नहीं तो उसके लिए माता पिता को जिम्मेदार मानकर उनसे अपने बच्चों के पालन पोषण का अधिकार छीन लिया जाता है।

जहां तक हमारे देश की बात है, यहां इस तरह का कोई कानून बनाने की कौन कहे, सोचा भी नहीं  जा सकता क्योंकि राजनीतिक दलों, सरकारों के मंत्रियों और सांसद तथा विधायकों में अनपढ़ों, मामूली पढ़े लिखे और अपराध की दुनिया की सीढ़ी पर चढ़कर सत्ताधारी बने लोगों की तादाद उनसे कहीं ज्यादा है जो राजनीति को देश के विकास और समाज कल्याण के लिए  सेवा का मार्ग समझते हैं।

शिक्षा की गुणवत्ता या क्वालिटी कैसी भी ही, इतना तो निश्चित है कि पढ़ने लिखने से व्यवहार में विनम्रता और किसी भी काम को करने से पहले उसके बारे में भलीभांति सोच विचार करने की बुद्धि का विकास तो होता ही है।

अपराध की मानसिकता

यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि क्या पढ़े लिखे और बड़ी बड़ी डिग्रियां रखने वाले तथा विदेशों से शिक्षा प्राप्त लोग अपराध करते नहीं पाए जाते तो आंकड़े कहते हैं कि इनका प्रतिशत पूरी आबादी के शून्य और एक प्रतिशत के बीच रहता है।

मिसाल के तौर पर माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, सुब्रत राय, हर्षद मेहता जैसे अपराधी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं और इन्होंने जो अपराध किए वे आर्थिक अपराध हैं और उन्हें हमारे सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हुए करने में कामयाब हुए।

इसके अतिरिक्त जो इनके चंगुल में फंसकर अपना बहुत कुछ लुटा बैठे उनमें ज्यादातर अशिक्षित लोग थे। मिसाल के तौर पर सहारा और हर्षद घोटाले जैसे कांड इसलिए सफत हो पाए क्योंकि उन्होंने ऐसे लोगों को अपना निशाना बनाया जो पढ़े लिखे न होने के कारण इनके जाल में आसानी से फंस गए।

अपराध और रोजगार

अपराधी बनने के लिए शिक्षा के बाद जिस कारण की सबसे बड़ी भूमिका है, वह है रोजगार और जो अंततः शिक्षा से ही जुड़ा हुआ है।

बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण शिक्षा का अभाव, कार्य कुशलता यानी स्किल का न होना और संसाधनों का सीमित होना तो है ही, साथ में इसके राजनीतिक और सामाजिक कारण भी हैं।

इनमें सबसे पहले जब साधारण व्यक्ति यह देखता है कि कुछ लोग अनपढ़ या मामूली शिक्षा की ही बदौलत केवल अपने रुतबे और दबंगई के आधार पर नेतागिरी का पेशा अपनाकर अकूत धन और ताकत के मालिक बन रहे हैं तो उन्हें भी पढ़ने लिखने की क्या जरूरत है ?

इस तरह इन नेताओं को अपने समर्थक मिल जाते हैं जो जरा से लालच में आकर कहीं भी धरना, प्रदर्शन, तोड़फोड़, हिंसा, आगजनी से लेकर कुछ भी अनैतिक और गैर कानूनी काम करने को तैयार हो जाते हैं। विडंबना यह है कि इसे ही ये लोग अपना रोजगार मान लेते हैं।

बेरोजगारी के अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन उनका महत्व इतना नहीं है जितना कि इस बात का कि रोजगार करने या पाने के लिए जरूरी शिक्षा और काम करने की इच्छा तथा उसे करने की योग्यता और कुशलता का न होना है।

यहां यह कहा जा सकता है कि सभी प्रकार से काबिल होते हुए भी रोजगार नहीं मिलता तो इससे सरकारों की नीतियों की खामियों को तो जिम्मेदार माना जा सकता है जिन्हें बदलने और रोजगारपरक बनाने के लिए विवश किया जा सकता है लेकिन इससे पढ़ाई लिखाई और कौशल होने के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता।

आम आदमी को इससे कोई ज्यादा मतलब नहीं होता कि सरकार उसके लिए किस तरह की आर्थिक, औद्योगिक विकास की नीतियां बना रही है, उसे केवल इस बात से सरोकार होता है कि उसके रहन सहन और आजीविका के साधन और परिवार के पालन पोषण पर क्या असर होगा।

यदि देश में बचपन से ही अपराधी बनने की राह को रोकना है तो उसके लिए माता पिता और अभिभावकों को यह तय करना होगा कि वे बच्चों को उनके बचपन से ही पैसा बनाने की मशीन यानी एटीएम बनाना चाहते हैं और अपराध की दुनिया में कदम रखने की पहल करते हुए देखना चाहते हैं या फिर कुछ वर्षों का इंतजार करते हुए उनके शिक्षित होकर बेहतर भविष्य के सपने को साकार करना चाहते हैं, इसका चुनाव उन्हें ही करना है, जरा सोचिए !

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