शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

निकम्मापन भाग्य हीनता और कर्म फल किस्मत का लिखा नहीं है

 


अक्सर जब कुछ अपने हिसाब से न हो तो अपने आप से यह कहने का मन करता है कि ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है, मेरी तो किस्मत खराब है, मैंने किसी का क्या बिगाड़ा जो यह देखने को मिल रहा है या फिर जरा सी बात पर क्रोध हो आना, दूसरे को भला बुरा कहना या स्वयं ही रोने लगना जैसे कि अब जीवन में कुछ बचा ही नहीं।

इसके विपरीत कुछ लोग कैसे भी हालात हों, कितनी भी कोई आलोचना करे और जीवन में कैसे भी उतार चढ़ाव आएं, ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि उन पर किसी भी चीज का ज्यादा असर नहीं पड़ता और अगर थोड़ा बहुत पड़ भी जाए तो वह कंधे पर पड़ी धूल या बारिश की बूंद की तरह ऐसे झटक देते हैं कि मानो कुछ हुआ ही न हो और पहले की तरह मस्त मौला जैसा बर्ताव करते रहते हैं।

ज्योतिष का मायाजाल

ऐसे लोग जो निराशा के भंवर में डांवाडोल हो रहे हों या आशा के समुद्र में हिचकोले खाने का लुत्फ उठा रहे हों, उन लोगों के संपर्क में ज्यादातर आते हैं जो उनकी कुंडली के गृह देखकर या हाथों की रेखाएं पढ़कर या फिर भविष्य जानने के दूसरे तरीकों जिसमें टैरो कार्ड, फेंग शुई से लेकर तारामंडल की चाल तक शामिल है, यहां तक कि साधु सन्यासी के पास भी, अवश्य जाते हैं ताकि अपना भविष्य जान सकें।

अब ये लोग जो बताते हैं उसमें कितना सच, कितनी हवाबाजी और कौन सा मनोविज्ञान होता है कि सामान्य व्यक्ति, चाहे  कुछ समय के लिए ही हो, इन पर विश्वास कर उन घटनाओं का होना  निश्चित मान लेता है जो भविष्य में होने वाली हैं, जिनके बारे में विश्वास दिलाकर ये भविष्य बताने का कारोबार करने वाले भारी भरकम फीस लेने के जुगाड में लगे रहते हैं।

अगर इन भविष्यवक्ताओं के बताए अनुसार कुछ नहीं हुआ तो ये अपने सीमित ज्ञान का दोष न मानकर कहेंगे कि जन्म का समय इधर उधर होगा, हाथ की रेखाएं विचारों के अनुसार बदलती रहती हैं और अपना पिंड छुड़ा लेते हैं। इन विद्याओं में कितनी सच्चाई है इसके बारे में कुछ न कहकर यह कहा जा सकता है कि इन पर यकीन करने वाले लगभग निकम्मेपन को स्वीकार कर बस अच्छा वक्त आने का इंतजार करते रहते हैं जो असल में मृग तृष्णा है।

एक मित्र कहने लगे कि उनके ज्योतिषी ने कहा है कि उनका भाग्य दो वर्ष बाद चमकेगा और तब तक वो चाहे कितना भी परिश्रम कर लें, कुछ हासिल नहीं होगा । मित्र ने इस बात पर यकीन करते हुए दो साल तक एक निकम्मे व्यक्ति की तरह कोई भी काम न करने का फैसला कर लिया। अब हुआ यह कि यह समय बीतते बीतते वह पूरी तरह आरामतलब हो गए और इस बात को पांच वर्ष हो गए, वह अब भी कोई काम नहीं करते और भाग्य को दोष देते रहते हैं।

ऐसे न जाने कितने उदाहरण होंगे जिनमें ग्रह दशा बदलने के इंतजार में लोग युवा से अधेड़ और बूढ़े हो जाते हैं।

एक टैरो कार्ड रीडर ने अपने क्लाइंट से कहा कि वह चाहे कहीं भी रहें, वह उन्हें देख सकता है और यहां तक कि वे कहां जा रहे हैं, क्या कपड़े पहने हैं, क्या खा पी रहे हैं, सब जान सकता है। अब वह व्यक्ति पूरी तरह इन महाशय के चंगुल में था और ये उसे मुंहमांगी फीस देते जा रहे थे।

 

 

कर्म और उसका परिणाम

जिस प्रकार प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है उसी प्रकार हम चाहे अपनी समझ से कोई अच्छा  काम करें या जानबूझकर बुरा काम अथवा अनजाने में ही दोनों में से एक काम हो जाए तो भी उसका परिणाम अवश्य ही निकलेगा और  कर्ता को उसका फल मिलना तय है।

व्यक्ति के तौर पर और समाज में सामूहिक रूप से भी कोई काम किया जाता है तो उसका आधार परवरिश, वातावरण और आर्थिक स्थिति ही होता है। उदाहरण के लिए चोरी डकैती, हत्या, यौन अपराध से लेकर स्वयं का कोई लाभ न होने पर भी दूसरे का अनिष्ट करने तक के कर्म हो सकता है कि विरासत में मिले हों या संगत के नतीजे के तौर पर हों, पर उनका फल मिलना निश्चित है।  इसी तरह अपनी हानि की संभावना को जानते हुए भी सकारात्मक, सहृदयता, जिम्मेदारी के साथ कोई भी कार्य करने पर परिणाम जो भी हो, मन में ग्लानि नहीं रहती।

जहां तक भाग्य का संबंध है, वह हमारा लक्ष्य तो दिखा सकता है लेकिन उस तक पहुंचना तो स्वयं को ही पड़ेगा। इसके अलावा एक भी गलत कदम कभी भी सही मोड़ पर नहीं ले जा सकता।

अपराधी या दुष्कर्म करने वाला परिस्थितिवश बच गया तो इसका मतलब यह नहीं कि वह दंड से हमेशा के लिए बच गया। इसी तरह बदला लेने को न्याय करना मान लेना भी भूल है क्योंकि यदि कोई गलत कदम उठा लिया तो यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं लेगा चाहे पीढ़ियां बीत जाएं।

हमारे कर्म केवल एक अवसर की तरह हैं, उनसे पुरस्कार या दंड तय नहीं होता, एक रास्ता ही दिखाई देता है, और कुछ नहीं।

जहां तक भाग्य का संबंध है तो इसका निर्धारण किसी के वश में नहीं, मिसाल के लिए पहला विश्व युद्ध दो देशों के राजपरिवारों के बीच घटी एक साधारण सी घटना से शुरू हुआ और पूरी दुनिया उसकी चपेट में आ गई। इसी तरह दूसरे विश्व युद्ध में यदि एक नाजी ने सैकड़ों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि इस अकेले को उसका फल भोगना था बल्कि पूरी  दुनिया को भोगना पड़ा।

वर्तमान में जीना

हालांकि यह संभव नहीं है कि जीवन में घटी किसी घटना को मिटाया जा सके लेकिन इतना तो किया ही जा सकता है कि उसे दिमाग के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में एक कोने में रखकर भुला दिया जाय और जो वर्तमान में घट रहा है उसके अनुसार यह सोचकर जिया जाए कि यह भी उसी मेमोरी का हिस्सा बनने वाला है जिसे भुलाया जा चुका है।

ऐसा न करने पर वह बात जो न जाने कब हुई थी आज भी सीने पर एक बोझ की तरह बनी रहेगी। मतलब यह कि पिछला कोई भी संबंध जो चाहे किसी के अच्छे या बुरे व्यवहार के कारण बना हो , उससे अपने आप को अलग रख कर या तोड़कर ही उससे मिली खुशी या गम को भुलाया जा सकता है वरना पुरानी यादें जीने नहीं देंगी और वर्तमान के सुखद क्षणों का मजा भी नहीं ले पाएंगे।

जहां तक ईश्वर का संबंध है, उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि कोई गरीब है या अमीर, कमजोर है या बलवान, शासक है या प्रजा, नर है या नारी, मानव है या दानव, वह किसी के भी कर्म चाहे कैसे भी हों, अपने ही हिसाब से उनके फल देता है। जब यह समझ में आ गया तो फिर बदकिस्मत या भाग्यशाली होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता, केवल कर्म करते जाने को ही अपनी नियति मान लेने में ही समझदारी है।

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