सोमवार, 16 नवंबर 2020

अंतरधार्मिक हो या अंतर्जातीय, विवाह, लव जिहाद नहीं है

 


विवाह को पवित्र बंधन माना गया है जो जीवन भर चलता है और पति पत्नी की कुछ जोड़ियां तो एक दूसरे के प्रति इतनी समर्पित होती हैं कि अगले जन्म से लेकर सात जन्मों तक अपने संबंधों के इसी रूप की कामना ही नहीं करतीं बल्कि उसके लिए मन्नत मांगने से लेकर उपवास, व्रत आदि भी रखती हैं।

रिश्तों का बिगड़ना

जब वैवाहिक संबंध खराब होते होते टूटने के कगार तक पहुंच जाएं तो यह बात मन में तो आती ही है कि कहीं कुछ तो गलत हुआ है, चाहे वह विवाह से पहले की जाने वाली छानबीन में कमी रही हो या फिर बाद में एक दूसरे की प्रकृति से मेल न खाने से हुआ हो या दोनों के परिवारों में से किसी एक की अनावश्यक दखलंदाजी के कारण हुआ हो।

हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं जो अपनी एक से अधिक जातियों या बिरादरियों में बटे हुए हैं। जहां तक कामकाज करने, नौकरी, व्यवसाय, व्यापार करने की बात है, सभी आपस में किसी न किसी रूप से जुड़े होते हैं और अपनी हैसियत, ओहदे, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक स्थिति के अनुसार एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं और अगर थोड़ा विस्तार करें तो यह भावना या रिश्ता वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा तक चला जाता है, मतलब कि संसार में सभी मिलजुलकर और सुरक्षा तथा एक दूसरे के प्रति विश्वास रखते हुए अनेक बातों में बिल्कुल अलग होते हुए भी एक परिवार की तरह रहें।

यह आदर्श स्थिति तब एकदम पलट जाती है जब दो व्यक्तियों के आपस में विवाह करने और जीवन भर साथ रहने का निर्णय करने की बात आती है। उस समय वे सब बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं जिनकी ओर कभी ध्यान नहीं जाता।  जैसे कि जो व्यक्ति शादी करना चाहते हैं, उनकी और उनके परिवार की हैसियत, रुतबा, धन, संपत्ति, जमीन, जायदाद, रहन सहन का ढंग और सबसे अधिक विचारों का मेल होने से लेकर संबंधों के निर्वाह करने के प्रति कमिटमेंट होने तक को जांचा परखा जाता है ताकि बाद में कोई परेशानी न हो और एक आदर्श स्थिति बनी रहे, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो और उसमें कितना भी परिवर्तन हो जाए, मतलब कि साथ तो निभाना ही है।

विवाह में दरार और कानून

अक्सर जब वैवाहिक संबंधों में बिखराव, रिश्तों में कड़वाहट और एक दूसरे के प्रति अविश्वास के  कारण अलग रहने में ही भलाई नजर आने लगती है तो उसके लिए पहले तो व्यक्तिगत या पारिवारिक सलाह मशविरा या आपसी रजामंदी से विवाद को सुलझाने की कोशिश की जाती है और जब किसी भी तरह बात न बने तो कानूनन अलग होने का रास्ता अपना लिया जाता है।

यह तब अधिक आसान हो जाता है जब दोनों पक्षों के धर्म और जाति एक हों लेकिन अगर ये अलग अलग हैं तो फिर बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसका कारण यह है कि सभी धर्मों में विवाह को लेकर अपने अपने कानून हैं, तलाक लेने और देने के तरीके हैं और उसके बाद बच्चों को लेकर एक दूसरे के  अधिकारों को तय करने के कानून है। इसी तरह बाकी चीजों के बारे में निर्णय करने के प्रावधान हैं।

विभिन्न धर्मों के कानूनों में यह विसंगतियां कभी कभी बहुत बड़े विवाद का कारण बनकर  जघन्य अपराध करने तक के लिए उकसाने का काम करती हैं। असामाजिक तत्वों द्वारा  साम्प्रदायिक तनाव, हिंसा और धर्म का सहारा लेकर नफरत फैलाने तक का वातावरण बनाना आसान हो जाता है। अगर सही समय पर कार्यवाही न हो तो गांव, शहर, कस्बा, प्रदेश और फिर पूरा देश इसकी चपेट में आ जाता है, जबकि बात केवल इतनी सी होती है कि अलग अलग धर्म या जाति के लड़के और लड़की ने विवाह करने का निर्णय कर लिया है। जरा सी बात का अफसाना बन जाता है और यहां तक कि कई बार सरकारें तक केवल इसी मुद्दे पर पलट जाती हैं।

धार्मिक विभिन्नता या लव जिहाद

हमारे देश में जिन धर्मों के बीच काफी समानताएं हैं जैसे कि हिन्दू और सिख तो उनके बीच जब विवाह संबंध स्थापित होते हैं तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता लेकिन जैसे ही  मुस्लिम तथा इसाई धर्म और हिन्दू तथा सिख धर्म के पालन करने वालों के बीच विवाह जैसी घटना  होती है तो अगर समझदारी से काम न लिया गया तो बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती।

इस तरह की परिस्थिति इसलिए बनती है क्योंकि इन धर्मों के नियम, रीति रिवाज, तौर तरीके और वैवाहिक जीवन की अनेक गतिविधियों में बहुत अधिक अंतर होता है, इसलिए जरूरी यह हो जाता है कि यदि मान लीजिए हिन्दू और मुस्लिम लड़के और लड़की के बीच विवाह संबंध तय होता है तो दोनों के परिवारों को सबसे पहले एक दूसरे के धर्म की मान्यताओं को सम्मान देते हुए उन्हें अपनाने की पहल करनी होगी। इसमें ऐसा नहीं हो सकता कि एक पक्ष तो मान ले और दूसरा न माने बल्कि इस कहावत पर चलना होगा कि एक ने कही, दूजे ने मानी, बाबा कह गए दोनों ही ज्ञानी।

धर्म और जाति से अलग हटकर वैवाहिक संबंध स्थापित करने में कोई बुराई नहीं है बशर्ते कि इसका आधार अय्याशी, कट्टरपन और समाज विरोधी गतिविधियां जैसे कि आतंकवाद न हो।

दो धर्मों के मानने वालों के बीच प्रेम संबंध हो जाना और फिर विवाह कर लेने में कोई हर्ज नहीं है और समाज भी इसे इसी नजरिए से देखता है लेकिन जब इसमें निहित स्वार्थों से लेकर  राजनीतिक हितों की पूर्ति देखी जाने लगती है, तब ही भ्रम फैलता है और छोटी सी घटना विशाल आकार धारण कर लेती है।

असल में दोनों धर्मों के बीच आस्था, पूजा और तीज त्योहारों में अंतर को आधार बनाकर जब संघर्ष की स्थिति पैदा करने की नीति अपनाई जाती है तब ही हालात बिगड़ते हैं वरना तो विवाह  एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें दो व्यक्तियों के मिलन के साथ दो आत्माओं का भी मिलन होता है।

इसे  लव जिहाद का नाम देकर कानून बनाने तक का फैसला करने से पहले नेताओं, बुद्धिजीवियों और समाज के प्रबुद्ध लोगों को एक साथ बैठकर चिंतन करना होगा क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि जिस सौहार्द की डाली पर हम सभी बैठे हैं, उसी को काटकर फेंक दें और फिर एक नए विवाद को जन्म दे दिया जाए।

विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित होने से कम से कम किसी का धर्म खतरे में नहीं आता है और न ही ऐसी परिस्थिति बनती है जिसे लेकर ज्यादा चिंता की जाय बल्कि इसे एक सामान्य सामाजिक और पारिवारिक गतिविधि के रूप में देखना ही श्रेयस्कर है।

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