शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

भोलापन, सादगी और भलमनसाहत कब बेईमान बना देती है ?


मानव का स्वभाव है कि वह जैसे वातावरण और जिन लोगों के बीच रहता है, उसी के अनुसार अपने को ढाल लेता है। अगर वह न भी ढलना चाहे तो उसके साथी, संघाती और परिवार के लोग दूसरों के उदाहरण देकर ढलने के लिए विवश कर देते हैं।

अगर कहीं इसमें सरकार के नियम, उसके कर्मचारी और ओहदेदार शामिल हों तब तो व्यक्ति के पास कोई विकल्प ही नहीं रहता कि वो अपने को यथा राजा तथा प्रजा की कहावत के अनुसार पूरी तरह से समय रहते न बदल ले।

गरीब से गरीबदास

हमारे देश के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की  कहानी का एक पात्र है जिसका नाम उन्होंने गरीब रखा जो बाद में अपने सहयोगियों की कृपा से गरीबदास हो गया।

गरीब एक गांव से शहर आकर चपरासी की नौकरी कर लेता है। यहां उसके साथी उसके भोलेपन और सादगी तथा भलमनसाहत का पूरा फ़ायदा उठाते हैं। वह मेहनत से काम करता है और उसके साथी अपना काम भी किसी न किसी बहाने से उससे कराते रहते हैं और यह बिना किसी विरोध के उनके काम करता रहता है। इस सब के बावजूद उसके साथी उसका अपमान करते रहते हैं और तनिक सी भी भूल होने पर गाली देने से लेकर पिटाई तक कर देते हैं।

एक दिन बड़े बाबू की मेज साफ करते हुए दवात के उलट जाने से स्याही फैल गई और इस बात पर बहुत डांट पड़ी। एक व्यक्ति ने बीच बचाव करते हुए कहा कि इसे माफ कर दें लेकिन तब ही दूसरा साथी बोला कि इसके गांव में इसके खेतों में अनाज, सब्जी, फल खूब होते हैं, पशुधन भी है लेकिन क्या मजाल कि इसके मन में कभी विचार भी आया हो कि यहां अपने साथियों को कुछ लाकर दे, कंजूस ही नहीं मक्खीचूस है।

गरीब अब तक सोचता था कि उसके खेत में जो उगता है, पशु जो दूध देते हैं, वह सब इन शहर में रहने वालों को क्योंकर अच्छा लगेगा बल्कि उसे गंवार कहा जायेगा। उसके पास पुश्तैनी ज़मीन है जिस पर खेतीबाड़ी होती है, दुधारू पशु हैं जिनसे अच्छी खासी आमदनी होती है । गांव में उसके लिए करने को कुछ काम नहीं था तो वह शहर आ गया और यहां चपरासी की नौकरी कर ली ।

यहां तक तो ठीक था लेकिन वह अपने साथ अपनी सादगी और ईमानदारी को भी गांव से ले आया था जिसके कारण उसे हिकारत से देखा जाता था।  घर आते समय उसके ही गांव का एक व्यक्ति मिला और उसे अपनी परेशानी बताई।  उसने सलाह दी कि एक बार वह अपने घर से कुछ समान लाकर इन्हें देकर देख ले कि शायद फिर उसका अपमान न हो।

गरीब ने ऐसा ही किया । दूध, गन्ने का रस और मटर तथा कुछ दूसरी चीजें लेकर दफ्तर पहुंचा लेकिन अंदर जाकर किसी को देने की हिम्मत न हुई। इतने में बड़े बाबू आए और उन्होंने इन चीजों को देखकर डांटा कि यह सब क्या है ? गरीब ने कहा कि आपके लिए लाया हूं। बड़े बाबू ने नकली मुस्कान से उस पर एहसान करते हुए आधी चीजें अपने घर भिजवा दीं और बाकी अन्य साथियों में बांट दी।

इसके बाद उसका नाम गरीबदास हो गया, सब साथी खुश दिखाई दिए और उससे इज्जत से पेश आने लगे। उसे अपने प्रति व्यवहार में हुए बदलाव का मंत्र मिल गया था । वह अब अक्सर जो चीजें बेकार समझकर या उपयोग में न आने से फेंक दी जाती थीं, वह दफ्तर में अपने साथियों और अधिकारियों को देने लगा। जब मन करता छुट्टी कर लेता, देर से पहुंचता और बिना दफ्तर जाए हाज़िरी लगवा लेता।

ऊपरी कमाई का अवसर

एक दिन उसे रेलवे स्टेशन से कुछ पार्सल लाने का काम दिया गया। उसने ठेला किया और बारह आने मजदूरी तय की। दफ्तर पहुंचकर खजांची से पैसे लिए और ठेले वाले को देने से पहले अपने लिए चार  आने मांगे। मजदूरों ने मना किया तो धमकी दी कि अब एक भी पैसा नहीं देगा, जो चाहो कर लो। मज़बूरी में मज़दूरों ने आठ आने लेकर बारह आने की रसीद दी और चले गए।

यह कहानी बहुत साधारण है और आज़ादी के बाद अब से साठ साल पहले लिखी गई थी लेकिन सोच में डालने के लिए काफी है कि तब से लेकर आज तक हमारी सामाजिक व्यवस्था, सोच और कार्यप्रणाली में कोई फर्क ही नहीं पड़ा ।  मनुष्य काईयां, बेईमान, रिश्वतखोर क्यों बनता है और ऊपर की आमदनी को क्यों अपनी प्रमुख आय समझता है, इस सोच में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता । जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट करने से लेकर टैक्स चोरी के नए तरीकों की खोज तथा कर्ज़ लेकर उसे न चुकाने की मानसिकता बनने और आर्थिक घोटालों पर जाकर भी नहीं थमता।

यह एक सच्चाई है कि जिस व्यवस्था में ईमानदारी को मूर्खता समझा जाए और दंड से अनैतिक आधार पर बच जाने को चतुराई तो वहां के निवासियों के सामने विकल्प ही नहीं रहता कि वह नियमों का उल्लंघन और कानून का निरादर न करें।

किसी भी देश, समाज या परिवार का आधार उसकी वर्तमान पीढ़ी होती है, अगर वह चाहे तो समय की विपरीत धारा को भी मोड़ सकती है और न चाहे तो बहती धारा में गोते लगाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति कर सकती है।

आज जो आपाधापी और कोई भी मार्ग अपनाकर दूसरों से आगे निकलने की होड़ है, उसके सामने नैतिक मूल्यों, आदर्शों का कोई मोल नहीं है। गरीबी इतना बड़ा अभिशाप नहीं है जितना कि गरीबदास बनकर छल कपट से अपने लिए सुख साधन और संपत्ति अर्जित करना।


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