चुनाव भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने वाली ऐसी प्रक्रिया है जो यह तय करती है कि देश की जरूरतें क्या हैं और उन्हें कैसे पूरा किया जा सकता है। इस हकीकत को जानते हुए भी अगर वोटर अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाता तो समझना चाहिए कि चुनाव आयोग ने अपने कर्तव्य का सही ढंग से पालन नहीं किया।
चुनाव परिणाम पर असर
यह जानना या कल्पना करना बहुत दिलचस्प होगा कि यदि चुनावों में शत प्रतिशत या उसके आसपास मतदान हो तो क्या परिणाम होंगे ? जो उम्मीदवार जीता, क्या वह नहीं जीतता या फिर कोई और विजयी होता ? उल्लेखनीय है कि वोट प्रतिशत चालीस से साठ सत्तर तक रहता है और अपवाद स्वरूप एकाध बार कहीं किसी निर्वाचन क्षेत्र में नब्बे फीसदी तक पहुंचा हो ! यह बताता है कि जनता की सही भागीदारी नहीं हुई और यह राजशाही जैसा ही है जिसमें धन, शक्ति और बाहुबल को ही सत्ता पाने और शासन करने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझा जाता है।
इसका मतलब यह है कि राजनीतिक रूप से हमारा देश अभी उतना जागरूक नहीं जितना होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि वोटर की इसी उदासीनता या लापरवाही के कारण अयोग्य, अपराधी और जेल में सजा भुगत रहा उम्मीदवार जीत जाता है और जिसे जीतना चाहिए, वह बुरी तरह हार जाता है।
वोट डालने से परहेज़ करने या न डाल सकने के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे कि यह सोच कि मैं कोई सरकार पर निर्भर थोड़े ही हूं, कोई भी जीते, मुझे अपना काम निकालना आता है। कुछ लोगों को किसी विशेष राजनीतिक दल से लगाव होता है और वे उसके जीतने के बारे में सोचते हैं लेकिन उसका उम्मीदवार उन्हें पसंद नहीं तो वे वोट डालने नहीं जाते। इसके विपरीत कुछ को राजनीतिक दल पसंद नहीं लेकिन उसका उम्मीदवार सही लगता है तो वे यह सोचकर वोट नहीं देते कि इसकी कौन सुनेगा, इसलिए क्यों वोट देने जाएं !
कुछ वोटर इस मज़बूरी में वोट नहीं डाल पाते कि वे नौकरी, व्यवसाय या किसी अन्य कारण से अपने मतदान केंद्र पर वोट डालने पहुंच पाने में असमर्थ हैं और इस तरह अपनी पसंद के उम्मीदवार को चुनने में अपना योगदान नहीं कर सकते। मतदान की तारीख को अपने क्षेत्र में न होने से वे अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाते। ऐसे मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है।
चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह कुछ ऐसा प्रबंध करे कि इन लोगों को अपने अधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिले और वे इससे वंचित न रहें।
जिस तरह पोस्टल बैलेट से कुछ विशेष परिस्थितियों में रह रहे व्यक्तियों को वोट डालने की सुविधा मिलती है, उसी तरह उन लोगों के लिए भी ऐसी व्यवस्था चुनाव आयोग द्वारा की जानी चाहिए जो किसी कारणवश अपने मतदान केंद्र पर नहीं पहुंच सकते।
किसी के लिए भी यह व्यावहारिक नहीं है कि वह अपनी नौकरी या व्यापार या किसी प्रोफेशनल दायित्व को छोड़कर वोट डालने जायेगा और फिर वापिस आकर अपना काम करेगा। उसके लिए यदि वोट डालना संभव कर दिया जाए तो चुनाव परिणामों पर दूरगामी प्रभाव पड़ना निश्चित है। डिजीटल क्रांति के वर्तमान युग में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से यह करना नितांत संभव है, केवल इच्छाशक्ति चाहिए।
अक्सर देखने में आता है कि वोट न डालने वालों में उनकी संख्या बहुत अधिक हैं जो शिक्षित हैं, उच्च पदों पर काम कर रहे हैं और जिनके पास सभी तरह के आने जाने के साधन हैं। ये वे लोग हैं जो सोच समझकर और किसी दल या उम्मीदवार के लुभावने वायदों में आए बिना अपना वोट डालेंगे लेकिन इनकी बेरुखी गलत उम्मीदवार के जीतने का कारण बन जाती है। कहावत है कि भेडचाल में डाले गए वोट के मुकाबले अक्लमंदी से डाला गया एक वोट अधिक कारगर होता है।
मुद्दे बदल जाते हैं
राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को यह अनुमान रहता है कि उनके क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य हुए बिना चुनाव जीतना है तो वे इस तरह का प्रपंच रचते हैं कि मतदाता भ्रमित हो और न चाहते हुए भी उनके पक्ष में वोट डाले। ऐसे में सड़क, बिजली, पानी, रोज़गार, व्यवसाय और अन्य ज़रूरी मुद्दों को भुलाकर धर्म और जाति से लेकर राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति जैसे विषयों को प्रमुखता से भुनाया जाने लगता है।
सरकार और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल हमेशा इस जोड़तोड़ में लगे रहते हैं कि किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे वास्तविक मुद्दों को भुलाकर उन चीजों पर वोट मांगते हैं जिनका वोटर से कोई सरोकार नहीं होता। यहीं से शुरू होने लगता है वोट डालने के प्रति उदासीनता का भाव और इच्छा होते हुए भी लोग मतदान केंद्र नहीं जाते।
वोट न डालने देने के पीछे एक वास्तविकता यह भी है कि वोटर लिस्ट से अपना नाम गायब पाया जाना और कितनी भी दुहाई दी जाए कि पिछली बार तो नाम था और वोट भी दिया था, कोई परिवर्तन भी नहीं हुआ तो फिर नाम क्यों नहीं है, इसका कोई असर नहीं होता। इसकी कोई सुनवाई नहीं और एक बड़ी तादाद अपना मताधिकार इस्तेमाल नहीं कर पाती।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसी भी वोटर का वोट पड़ने से रहने न पाए। यदि ऐसा हो गया और चुनाव में नब्बे प्रतिशत से अधिक वोट पड़ने लगें तो वह दिन देश के लोकतंत्र के लिए स्वर्णिम होगा।
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