शुक्रवार, 10 मई 2019

पढ़िए वही जो रोजगार के काबिल बनाए












इम्तिहान अभी बाकी है


मई का महीना दसवीं और बारहवीं की परीक्षा दे चुके विद्यार्थियों के परिणाम आने का होता है। पिछले कुछ वर्षों से नब्बे से सौ प्रतिशत अंक पाने वालों की संख्या में काफी बढ़ौतरी हुई है। इसका मतलब केवल यह नहीं निकालना चाहिए कि इतने अंक पाकर कोई भी पाठ्यक्रम अपनाया जा सकता है बल्कि यह भी सोचने का वक्त है कि उनके लिए सही कोर्स कौन सा है वरना देखा गया है कि गलत चुनाव की वजह से बहुत से मेधावी विद्यार्थियों की आगे की यात्रा बहुत निराशाजनक हो जाती है।


असली परीक्षा तो अब होती है और इसमें जरा सी चूक जिंदगी पर भारी पड़ जाती है और सही फैसला भविष्य को सुनहरा बना देता है। कहने का मतलब यह है कि अंक चाहे बहुत हों या सामान्य, हर हालत में जरूरी है कि पहले यह सोचें कि आखिर जीवन को कैसे जीना है और हम जिंदगी से क्या चाहते हैं और उसे पाने के लिए कौन से रास्ते पर चलना है जो हमारी मंजिल तक केवल ठीक ठाक पहुँचा दे बल्कि वहाँ पहुँचते ही यह लगे कि ऐसा तो सोचा नहीं था या कि हमने कहीं गलत रास्ते का चुनाव तो नहीं कर लिया? अगर ऐसी भावना मन में आती है तो फिर जीरो से शुरुआत करनी पड़ सकती है या डिप्रेशन हावी हो सकता है।



ऐसे बहुत से उदाहरण हमें अपने चारों ओर बिखरे पड़े मिल जाते हैं जिनमें स्कूल की शिक्षा समाप्त होने पर किसी आकर्षण या दबाव के कारण अपने लिए कोई गलत कोर्स चुन लिये जाने के कारण जीवन भर किसी अनजाने बोझ तले दबे होने जैसा महसूस करने लगते हैं और मजबूरी यह कि किसी को दोष भी नहीं दे सकते और जो लेने का निर्णय कर लिया उससे पीछे भी नहीं हट सकते। 


इतनी हिम्मत, ऊर्जा और शक्ति बहुत ही कम लोगों में होती है कि वे इस मुकाम पर आकर फिर से पीछे लौट जाएँ और एकदम नए सिरे से जिंदगी शुरू करें। ज्यादातर लोग जो मिल गया उसे ही मुकद्दर समझ कर अपना लेते हैं। ऐसे लोग अपने हमउम्र लोगों, जिन्होंने आगे की पढ़ाई के बारे में सही वक्त पर सही निर्णय लिया, उन सभी को बहुत आगे निकलता हुआ देखकर ईर्ष्या और हीनभावना का शिकार हो जाते हैं परिस्थिति कैसी भी हो इस मोड़ पर उसे बदलना मुश्किल ही नहीं हानिकारक भी है।



अपने आप चिंतन करें


वैसे तो दसवीं और फिर बारहवीं की पढ़ाई के दौरान ही यह तय हो जाना चाहिए कि हमें अपनी जिंदगी से क्या चाहिए लेकिन नतीजे आने के बाद तो यह तय करना अनिवार्य हो जाता है कि आगे की पढ़ाई करनी है या नहीं और अगर करनी है तो क्या पढ़ना है और अगर नहीं करनी है तो फिर क्या करना है जिससे जीवनयापन सुगम हो और दोनों ही हालत में बेरोजगार होकर निठल्ले बैठने की नौबत आए।


आँकड़ों के मुताबिक अधिकतर बेरोजगार वही हैं जिन्होंने बिना ज्यादा सोच विचार के जो भी सामने दिखा वही पढ़ लिया और फिर बस कुछ कुछ पढ़ते ही रहे या फिर पढ़ाई छोड़कर घरवालों से लेकर सरकार और समाज पर बोझ बनते चले गए। इन लोगों की पंक्ति में शामिल नहीं होना है तो फिर एकांत में बैठकर जरा ध्यान लगाकर सोचिए कि आगे पढ़ना और करना क्या है ? यह भी सोचिए कि आपकी और परिवार की सामर्थ्य और पढ़ाई का खर्च उठाने की क्षमता क्या है ?


आज का दौर सूचना और संचार क्रांति का है, विज्ञान और टेक्नॉलजी का है, व्यापार और उद्योग का है, स्वरोजगार और उद्यमशीलता का है। जरूरी नहीं रह गया है की जैसी मिल जाए वैसी नौकरी कर ली बल्कि अपनी मनपसंद नौकरी पाने का है।पर यह सम्भव तब ही है जब अब तक जो पढ़ा उसका सही इस्तेमाल करते हुए ऐसे कोर्स का चयन करना है जिसमें अपना मन लगता हो और दिल उसे करने की गवाही दे  


यह चिंतन करना ही होगा कि हमारी असलियत और अपेक्षाएँ क्या हैं वरना दूर के ढोल तो सब को सुहावने ही लगते हैं और कोई यह तक चाहने लगता है, विशेषकर माता पिता कि आसमान से तारे भी तोड़कर लाए लाए जा सकते हैं और जमीन से ठोकर मारकर पानी भी निकाला जा सकता है।



चिंतन करते समय सब से पहले ख्याली पुलाव पकाना छोड़ना होगा और इस प्रवृत्ति को दूर से ही नमस्कार करना होगा कि दूसरे की कमीज मुझसे सफेद क्यों है ?


आज नौकरी हो या व्यापार, व्यवसाय हो या अपना रोजगार, इतने अधिक अवसर और सम्भावनाएँ हैं कि विद्यार्थी अपनी रुचि के मुताबिक और देखे हुए अपने भविष्य के सपने को साकार कर सकता है  


कॉलेज, विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा संस्थान इसलिए नहीं हैं कि जहाँ ज्यादा भीड़ देखी वहीं कतार में लग गए, बल्कि इसलिए हैं कि क्या वास्तव में वहाँ अपनी सोच के अनुसार भविष्य की इमारत खड़ी करने के लिए सही मात्रा में सामग्री मिल सकती है ? अगर भरोसा है तो लाईन में लग जाइए, वरना कोई दूसरा संस्थान खोजिए।
अब यह जरूरी नहीं रह गया है कि साइंस पढ़ने का मतलब केवल डॉक्टर या इंजीनियर बनना है बल्कि इंटर्नेट खोलिए तो सैंकड़ों की तादाद में ऐसे कोर्स मिल जाएँगे जिनके लिए साइंस पढ़ना जरूरी है। 


इसी तरह कामर्स पढ़ने का मतलब केवल हिसाब किताब करना या एकनॉमिक्स पढ़ना आँकड़ों का अध्ययन नहीं है, बल्कि इनमें भी इतने आयाम हैं कि बढ़िया आमदनी और समाज में प्रतिष्ठा पाई जा सकती है। अब तो आर्ट्स के विषय भी उतने व्यापक हैं जितने कि अन्य लोकप्रिय विषय हैं


यही नहीं सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों, तटरक्षकों और इनसे सम्बंधित विभिन्न सेवाओं में इतनी सम्भावनाएँ हैं कि योग्य उम्मीदवारों का अभाव होने के कारण एक बड़ी संख्या में पद भरे ही नहीं जाते।


इसी प्रकार हमारी विज्ञान प्रयोगशालाओं, कृषि और पशुपालन संस्थानों तथा अन्य सरकारी प्रशिक्षिण संस्थाओं में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या इतनी कम रहती कि इन क्षेत्रों में हजारों की संख्या में पद बरसों तक खाली पड़े रहते हैं।
निजी क्षेत्र में यह शिकायत होना आम बात है कि योग्य उम्मीदवारों के अभाव में उनके यहाँ उपलब्ध रिक्त स्थानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और कोरपोरेट जगत को मानव संसाधनों की  कमी का सामना करना पड़ रहा है।






क्या, क्यों और कैसे

किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिला लेने या कोई कोर्स करने से पहले यह सोचना चाहिए कि क्या उसकी महत्वाकांक्षाओं को वहाँ पंख मिल सकते हैं।

आज विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसे संस्थानों की बाढ़ सी गयी है जो केवल पैसा कमाने का साधन बन गए हैं। इनमें दाखिला लेने से पहले उनकी सुविधाओं और वहाँ पढ़ाने वालों और पढ़ कर निकले विद्यार्थियों के बारे में जानकारी लेना जरूरी है।


स्कूल के बाद लड़का हो या लडकी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक दौर से गुजर रहे होते हैं जिसमें वे निर्णायक रूप से कुछ तय करने में उतने सक्षम नहीं होते जितने वयस्क हो जाने पर होते हैं। यहाँ जरूरत होती है माता पिता, अभिभावक और शिक्षकों की राय और मार्गदर्शन की ताकि विद्यार्थी में भटकाव हो। इसका उपाय केवल यही है कि सभी विचारों को प्लस और माईनस की कसौटी पर कसा जाए और तब ही आगे की पढ़ाई के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए।

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