शुक्रवार, 31 मई 2019

स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा,सामाजिक जिम्मेदारी की शिक्षा








गलतियों के नतीजे


अक्सर ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं जिनमें दूसरों की गलतियों या लापरवाही का शिकार निर्दोष नागरिकों को बनना पड़ता है। इन जानलेवा हादसों को केवल मात्र दुर्घटना मानकर उन पर पर्दा भी डाल दिया जाता है। यह सोचना और तय करना कि इनके मूल में क्या वास्तविक कारण है, आम तौर से न तो सरकार या प्रशासनिक अधिकारियों की प्राथमिकताओं में शामिल होता है और न ही समाज और पीड़ितों का इस पर ध्यान जाता है। होता यह है कि थाने, पुलिस, कोर्ट कचहरी और डॉक्टर-अस्पताल के चक्रव्यूह में फँसकर एक दूसरे पर दोष मढ़कर अपने कर्तव्य की पूर्ति के रूप में खानापूर्ति और लीपापोती कर ली जाती है।



ज्यादातर मामले दो कारणों से होते हैं, एक तो यह कि नियमों और कानूनों की धड़ल्ले से धज्जियाँ उड़ाईं गयीं और दूसरा यह कि इस बात की जानकारी आमतौर से दुर्घटना पीड़ितों को रत्ती भर भी नहीं होती कि इनके होने पर कैसे सही सलामत और बहुत ही कम जानमाल के नुकसान के साथ बाहर निकला जाए।
जब कोई आग से घिरा होने पर खिड़की, छत या बालकनी से कूद जाए, भूकम्प आने पर कमरे में पहले की तरह खड़ा या बैठा या लेटा रहे, पानी में डूबने पर उलटे सीधे हाथ पाँव चलाने लगे या किसी पशु के अचानक हिंसक हो जाने पर उसके सामने आ जाए तो उसका परिणाम गम्भीर रूप से घायल होने से लेकर मृत्यु होने तक कुछ भी हो सकता है।


जहाँ तक नियम-कानून की अवहेलना की बात है तो इसका कारण अधिकारियों के अंदर व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी है जिसका इलाज केवल सरकार कर सकती है कि वह ऐसी व्यवस्था बनाए कि किसी भी व्यक्ति को इनके उल्लंघन करते हुए पाए जाने पर अधिकतम सजा मिले और जरूरत हो तो कानून में संशोधन कर उनका कड़ाई से पालन करवाया जाए।



शिक्षा की व्यवस्था


जो दूसरा कारण है जिसमें व्यक्ति अपना विवेक और सोचने समझने की शक्ति खोने लगता है, उसका निदान केवल एक ही है कि इस प्रकार की यदि कोई घटना हो जाती है तो उससे बचने के लिए हमारे स्कूल और शिक्षण संस्थाओं द्वारा अनिवार्य रूप से उचित पाठ्यक्रम बनाकर विद्यार्थियों को बचपन से ही शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाए ताकि  जीवन में कभी भी अगर इस तरह की विकट परिस्थिति का सामना करना पड़े तो वे सुरक्षित रूप से उससे बाहर निकल आएँ।कुछ विद्यालयों में इनके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी दी जाती है जो अक्सर तुरंत भुला भी दी जाती है और केवल एक रस्म अदायगी की तरह इन विषयों को लिया जाता है।



होना यह चाहिए कि डिजास्टर मैनेजमेंट को स्कूल लेवल से ही एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाय, उसके लिए आठवीं-नवीं कक्षा से ही बकायदा अन्य विषयों की तरह पठन पाठन, परीक्षा और ग्रेड दिए जायें जैसे अन्य विषयों के लिए दिए जाते हैं। यह विषय इतना महत्वपूर्ण हो कि इसमें प्राप्त अंक विद्यार्थी की मार्कशीट पर असर डाल सकें और भविष्य में कोई रोजगार या व्यवसाय करने के लिए होने वाले इंटरव्यू आदि में इस विषय में प्राप्त ग्रेड को महत्व मिले।


यह विषय लेकर और इसमें पारंगत होने के बाद रोजगार के असीमित अवसरों की कल्पना इस आधार पर की जा सकती है कि आज कोई भी उद्योग हो, व्यवसाय हो, संस्थान हो, सरकारी या निजी कार्यालय हो -सभी में हादसों से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में कुशल और प्रशिक्षित कामगारों और कर्मचारियों की बेहद कमी है। आम तौर से इस काम के लिए अनपढ़, अधकचरे और बिना कोई शिक्षा और ट्रेनिंग पाए व्यक्तियों को रख लिया जाता है जो वक्त पड़ने पर सही जानकारी के अभाव में बहुत महँगे साबित होते हैं।



इस विषय की व्यापकता इतनी है कि इसमें सुरक्षा के प्रति जवाबदेही तो प्रमुख है ही, साथ में स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर भी बहुत कुछ पढ़ाया लिखाया और प्रशिक्षण दिया जा सकता है। कार्यालय में किसी की तबियत खराब हो जाए या किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए तो प्राथमिक उपचार के नाम पर दो चार गोलियाँ और मरहम पट्टी के अलावा कुछ नहीं होता और कभी कभी तो यह भी नदारद हो सकता है।


असीमित सम्भावनाएँ


यदि कर्मचारी पहले से ही जागरूक और प्रशिक्षित होंगे तो जरा सोचिए कि जरूरत पड़ने पर उनका ज्ञान न केवल कितने लोगों की जान बचा सकता है बल्कि कार्यक्षमता, उत्पादन और आर्थिक लाभ पर कितना अधिक असर डाल सकता है। इसके अतिरिक्त सभी मानदंडों से परिचित होने के कारण नियमों और कानूनों के पालन की गारंटी भी हो जाएगी। आम तौर कोई भी व्यक्ति इनका उल्लंघन इनकी सही जानकारी न होने और इस विषय को कतई महत्वपूर्ण न समझने के कारण करता है ।

उसे यह भी भरोसा रहता है कि हादसा होने पर बीमा कम्पनी से तो उसकी भरपाई हो ही जाएगी इसलिए अभी से इसके बारे में किस लिए माथापच्ची करना, जब कभी ऐसा होगा तब की तब देख लेंगे।



इस तरह की मानसिकता होने पर कोई भी भवन निर्माण करने पर सब से पहले मन में यह आता है कि सरकारी नियमों को तोड़ मरोड़कर कैसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाए। यदि नियमों का पालन करते हुए निर्माण कर भी लिया तो फिर बाद में गैर कानूनी काम कर के, अतिक्रमण द्वारा या अधिकारियों के साथ साठगाँठ और रिश्वत के बल पर सुरक्षा उपायों की तरफ से मनमानी ढील लेते हुए भीषण हादसों और दुर्घटनाओं को दावत दे दी जाती है। आम तौर से इनके होने पर नियमों का उल्लंघन ही पाया जाता है। बाद में की गयी कोई भी कार्यवाही लकीर पीटने जैसा होता है जिसका परिणाम अदालतों के चक्कर लगने और जिंदगी भर पछताने के रूप में निकलता है।



यदि डिजास्टर मैनेजमेंट की शिक्षा और उचित प्रशिक्षण को स्कूल से ही अनिवार्य पाठ्यक्रम के रूप में शामिल कर लिया जाता है तो स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जरूरी झुकाव तो अपने आप ही हो जाएगा। यह एक तरह से सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का भी पोषण होगा।



इस विषय का महत्व इतना है कि जिस तरह वकालत, चार्टर्ड अकाउंटंट, कम्पनी सेक्रेटेरी, आर्किटेक्ट और दूसरे व्यवसायों की अनिवार्यता किसी भी उद्योग, व्यापार या अपना रोजगार करने के लिए होती है, उसी तरह इसे भी नौकरी की जरूरी शर्त बनाया जा सकता है और इस विषय को लेकर उच्च शिक्षा पर्याप्त करने वालों के लिए नए उद्यम की शुरुआत हो सकती है। जिस तरह अनेक प्रफेशनल लोगों के सर्टिफिकेट चाहिए होते हैं उसी तरह डिजास्टर एक्स्पर्ट का सर्टिफिकेट लेना भी अनिवार्य किया जा सकता है ।



जरा सोचिए, इस प्रकार की व्यवस्था लागू होने पर जन और धन की कितनी बड़ी हानि होने से बचा जा सकता है। अभी तक जो यह होता आया है की मामूली खानापूर्ति करने, पैसे के लेनदेन से कैसा भी नो अब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेकर विद्यार्थियों के जीवन से खिलवाड़ होता रहता है, कर्मचारी असुरक्षित माहौल में काम करने के लिए मजबूर रहते हैं, सुरक्षा साधनों के अभाव में मौत के लिए रास्ता ढूँढना आसान हो जाता है और बड़े पैमाने पर राष्ट्र की धन सम्पत्ति नष्ट होती रहती है, केवल इस विषय की शिक्षा और प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाने से रोका जा सकता है।



यह कोई मुश्किल काम नहीं है, केवल हमारे सांसदों और नीतियाँ बनाने वालों को संवेदनशील होना होगा और सरकार को शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यापक व्यवस्था करनी होगी। नैशनल इन्स्टिटूट आफ डिजास्टर मैनेजमेंट को पूरे देश में अपनी शाखायें खोलकर स्कूल कॉलेज में इस विषय को पढ़ाए जाने के लिए सिलेबस और अध्यापक तैयार करने होंगे। वर्तमान सरकार से यह उम्मीद की जा सकना कोई बहुत बड़ी अपेक्षा नहीं है!



(भारत)


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